सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि जब ये सिद्ध हो जाए कि सार्वजनिक पदों पर नियुक्तियां गैरकानूनी रूप से हुई हैं तो ऐसे लोगों को वेतन, पेंशन और अन्य भत्ते नहीं नहीं दिए जा सकते। जस्टिस एल नागेश्वर राव की पीठ ने यह आदेश देते हुए कर्मचारियों की याचिका खारिज कर दी।
याचिका से जुड़े कई कर्मचारी ऐसे हैं जिन्होंने 25-25 साल तक सेवा की है। कर्मचारियों ने कहा कि मानवीय रुख लेते हुए उनके बारे में पास किए गए हाईकोर्ट के आदेश को रद्द किया जाए। यह मामला बिहार के स्वास्थ्य विभाग में तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की अवैध नियुक्ति का है। इन कर्मचरियों की संख्या हजारों में हैं।
पीठ ने पटना हाईकोर्ट की फुल बेंच के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि वेतन का अधिकार आवश्यक रूप से एक कानूनी अधिकार है जो वैध नियुक्ति से पैदा होता है। यह पद पर वैध नियुक्ति से मिलता है इसलिए जहां यह जड़ ही अनुपस्थित है वहां वेतन की शाखा नहीं आ सकती।
सार्वजिनक सेवा में वेतन, पेंशन और अन्य लाभ आवश्यक रूप से कानूनी अधिकार हैं। इसलिए ये अधिकार वैध और कानूनी सेवा से ही उत्पन्न होंगे, एक बार जब ये सामने आए कि नियुक्ति अवैध है तथा कानून की निगाह में व्यर्थ है तो ऐसे में वेतन, पेंशन और अन्य कानूनी वित्तीय लाभों का सवाल ही पैदा नहीं होता।
पीठ ने कहा कि मौजूदा मामले में नियुक्तियां बिना स्वीकृत पदों, बिना विज्ञापन निकाले, बिना अन्य योग्य व्यक्तियों को मौका दिए बगैर की गई। ये नियुक्तियां पीछे के दरवाजे से की गई नियुक्तियां हैं जो भाई भतीजावाद और पक्षपात का नतीजा हैं। इन्हें किसी भी न्यायिक मानक से नियमित नियुक्तियां नहीं कहा जा सकता।
ये अवैध गैरकानूनी और पूर्ण रूप से मनमानी है जिन्हें उचित नहीं कहा जा सकता। गौरतलब है कि पिछले दिनों कोर्ट ने बिहार सरकार की अपील पर इन सभी नियुक्तियों को अवैध घोषित कर दिया था। लेकिन कुछ अपीलें वेतन और पेंशन लाभ के लिए लंबित थीं।