सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में व्यवस्था दी है कि नौकरियों के लिए सामान्य और आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों के साक्षात्कार अलग-अलग नहीं लिए जा सकते। ऐसा करना गैरकानूनी है। यह कहकर शीर्ष न्यायालय ने शिमला स्थित हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर के लिए हुए साक्षात्कार को रद्द कर फिर से इंटरव्यू का आदेश दिया।

जस्टिस एल नागेश्वर राव और हेमंत रस्तोगी की पीठ ने यह फैसला ओबीसी वर्ग में चुने गए उम्मीदवार की अपील पर दिया जिसमें उसने हिमाचल हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने इस उम्मीदवार के चयन के खिलाफ दायर रिट याचिका को स्वीकार कर लिया था।
पीठ ने फैसले में कहा कि हम देख रहे हैं कि ओबीसी श्रेणी के उम्मीदवारों के चयन के लिए अलग से साक्षात्कार किया गया है। यह गलत है, हालांकि किसी भी पक्ष ने इस मुद्दे को नहीं उठाया है लेकिन चूंकि यह प्रक्रिया अपने आप में ही त्रुटिपूर्ण है इसलिए हम इसे जारी नहीं रहने दे सकते। पीठ ने कहा कि हर व्यक्ति सामान्य उम्मीदवार है।
आरक्षण का लाभ सिर्फ एससी, एसटी और ओबीसी या अन्य ऐसे वर्ग को दिया है जिसे कानून के अंदर इसकी इजाजत हैं। कोर्ट ने कहा कि इंदिरा साहनी केस(1992) लेकर अब तक यह इस कोर्ट का सतत दृष्टिकोण रहा है कि यदि आरक्षित वर्ग का छात्र मेरिट में है, तो वह सामान्य वर्ग के उम्मीदवार की सीट लेगा, बशर्ते उसने आरक्षित वर्ग को मिलने वाली अन्य विशेष रियायतें (उम्र सीमा में छूट, कम पात्रता अंक और कम आवेदन फीस) न ली हों।
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