सीएम धामी ने नकल विरोधी कानून बनाकर नकल माफिया पर कसा शिकंजा

देहरादून : 21 सितंबर को उत्तराखंड के विभिन्न शहरों और कस्बों में उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की स्नातक स्तरीय भर्ती परीक्षा चल रही थी। हरिद्वार जिले के लक्सर कस्बे में एक केंद्र पर परीक्षा दे रहा खालिद मलिक वहीं से पर्चे के तीन पेज बाहर एक सहायक प्रोफेसर को भेजता है, जो इन पन्नों में छापे सवालों को हल करके व्हाट्सअप से वापस खालिद को भेजती है, साथ ही उन तीन पृष्ठों को एक नेता को भेजती है ताकि उस परीक्षा में व्यवधान डाला जा सके और प्रदेश में हंगामा खड़ा किया जा सके। इसके बाद ये तीनों पेज एक घंटे के भीतर सोशल मीडिया में वायरल कर दिये जाते हैं। दूसरे दिन पूरे प्रदेश में धरना-प्रदर्शनों का दौर शुरू हो जाता है। धामी सरकार ने तत्काल परीक्षा स्थगित करवा दी और उच्च न्यायालय के अवकाशप्राप्त जज की देखरेख में विशेष जांच दल से जांच शुरू करवा दी।

खालिद कैसे मोबाइल फोन परीक्षा भवन में ले गया, कैसे उसने उसे व्हाट्सअप्प से बाहर भेजा, कैसे उस महिला शिक्षक ने पर्चा हल करके वापस भेजा और खालिद उसके आधार पर नकल कर पाया कि नहीं, इस पूरी साजिश में खालिद के साथ और कौन-कौन लोग मिले हुए हैं, परीक्षा केंद्र से बाहर कहां—कहां तक तार जुड़े हुए हैं, ये सब जांच के विषय हैं। और जांच के बाद ही पता चलेंगे। इस तरह की हरकत की जितनी भर्त्सना की जाए कम है। इस घटना पर मुख्यमंत्री धामी स्वयं बेहद संवेदनशील हैं। चूंकि उनके ही नेतृत्व में देश का सबसे सख्त नकलविरोधी कानून बना और इसके बावजूद खालिद जैसे अपराधी इस तरह की हरकत करने की जुर्रत करते हैं, मुख्यमंत्री किसी भी तरह इस समस्या का हल चाहते हैं। इस घटना से प्रभावित हर युवा के साथ सरकार खड़ी है। लेकिन जिस तरह से पेपर परीक्षा केंद्र से बाहर आया और आधे घंटे के भीतर वायरल हो गया, और देशभर के आन्दोलनजीवी इकट्ठा होकर मुख्यमंत्री से इस्तीफा मांगने लगे, उससे लगता है कि इस हंगामे के तार कहीं दूर तक जुड़े हुए हैं।

इस बीच. सरकार पूरी तरह से बेरोजगार युवाओं के साथ खड़ी है। उनकी हर उस मांग को मानने को तैयार है, जिसमें उनका हित हो। लेकिन वह यह भी नहीं चाहती कि उनके आंसुओं का फायदा कुछ राजनेता अपने हितों को चमकाने में करें। कुछ भाड़े के लोगों ने जिस तरह के अतिवादी और देश विरोधी नारे लगाए हैं, वह भी बर्दाश्त के बाहर है। चूंकि इस समय देशभर में एक ऐसा टूल किट काम कर रहा है, जो चुनी हुई लोकप्रिय सरकारों को अस्थिर कर रहा है, जो भारत को ही अस्थिर करना चाहता है। इसमें न उत्तराखंड के युवाओं का हित है और न ही यहां की राजनीति का। देवभूमि का तो कतई नहीं।

मुख्यमंत्री धामी स्वयं अब तक के सबसे युवा मुख्यमंत्री हैं और पिछले चार साल में उन्होंने जितने काम युवाओं के हित के लिए किए हैं, उतना कोई नहीं कर पाया है। उन्होंने सत्ता में आते ही देश का सबसे सख्त नकल विरोधी कानून बनाकर प्रदेश के नकल माफिया पर नकेल कसी। और पिछले चार वर्षों में बेहद पारदर्शी तरीके से अब तक की सर्वाधिक नियमित भर्तियां (25 000 से अधिक) लोक सेवा आयोग और कर्मचारी चयन आयोग के जरिये हुईं। दरअसल वही एक ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिसने एनडी तिवारी के बाद सबसे अधिक समय तक स्थिरता से सरकार चलायी है और हर संकट के समय ग्राउंड ज़ीरो पर नजर आते हैं। इसलिए कुछ लोगों को यह स्थिरता नहीं सुहाती और वे हर घटना पर उनका इस्तीफा मांगने का बहाना ढूंढते रहते हैं।इसलिए युवा प्रदेश की इस हकीकत को समझें और तत्काल सरकार से वार्ता करने को आगे आयें। इसी में उनका हित है और प्रदेश का भी।

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