सिल्‍क सिटी में 150 साल पुरानी रामलीला, के साथ साथ कई अन्य चीजे भी है बहुत मशहूर

भागलपुर रेशम यानि सिल्क के लिए मशहूर है, लेकिन केवल ‘सिल्क सिटी’ होना ही इसकी खासियत नहीं है। इसकी पहचान और खूबियां और भी बहुत सी हैं। यहां दर्शनीय स्थलों की भरमार है। सैर करने के लिए जहां एक तरफ गंगा पुल की खूबसूरती आपको अपनी ओर आकर्षित करेगी वहीं बरारी स्थित कुप्पाघाट की गुफाएं घूमने का अलग ही आनंद होता है। यहां एक बहुत ही पुराना राधाकृष्ण मंदिर भी है। सावन के महीने में हर साल बिहार सहित अन्य राज्यों और देश-विदेश के लाखों तीर्थयात्री यहां सुल्तानगंज स्थित जान्ह्वी गंगा तट से जल भरकर बाबा वैद्यनाथ की नगरी देवघर जाते हैं। वहीं सुल्तानगंज में गंगा नदी के बीच में अजगैबीनाथ मंदिर एक छोटी सी पहाड़ी पर बसा प्राकृतिक खूबसूरती वाला मनोरम स्थान भी है।

भागलपुर की दुर्गा पूजा और रामलीला की है अपनी अलग शान

मध्यकाल से दुर्गा पूजा

जिस प्रकार बंगाल के लोग सर्वशक्ति स्वरूपा महिषासुर मर्दिनी मां दुर्गा पर अपना अधिकार मानते हैं और स्वीकार करते हैं कि बंगाल मां का नैहर है, ठीक वही उत्साह और विश्वास यहां के निवासियों में भी है। पुराणों के अनुसार चूंकि यह तंत्र साधना का क्षेत्र है, इसलिए इसकी महत्ता और बढ़ जाती है। यूं तो पूरे शहर में सौ के करीब मां दुर्गा की प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं पर तंत्र साधना के लिहाज से इस क्षेत्र में तिलडिहा, तेतरी, माणिकपुर स्थित पंचवटी दुर्गा स्थान सहित कई स्थानों में यंत्र की स्थापना भी की जाती है। इन स्थानों में मिथिला और बांग्ला पद्धति से मां की पूजा होती है। बांग्ला पद्धति की पूजा का सबसे पुराना स्थान चंपानगर महाशय ड्योढ़ी को माना जाता है। कहते हैं कि यहां मां दुर्गा प्रतिमा की स्थापना मुगल बादशाह अकबर के शासन काल से ही हो रही है। जब से महाशय ड्योढ़ी निवासी श्रीराम घोष अकबर के कानूनगो बने, तब से पूजा और भव्य तरीके से होने लगी। पहले यहां सुबह-शाम शहनाई वादन भी हुआ करता था। महाशय ड्योढ़ी की रानी कृष्णा सुंदरी शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा से साक्षात्कार करती थीं। महाशय परिवार के वंशजों द्वारा पौराणिक परंपराओं के साथ पूजा का आयोजन आज भी बरकरार है। सात दिन पहले बोधन कलश की स्थापना होती है। चतुर्थी एवं सप्तमी पूजा को कौड़ी उछाला जाता है। जो यह कौड़ी पाते हैं वे अपने को धन्य समझते हैं। यहां कंधे पर प्रतिमा के विसर्जन की परंपरा है। बंगाली पूजा पद्धति से जुड़े अन्य प्रमुख स्थान दुर्गाबाडी और कालीबाड़ी हैं।

 

अनूठी हैं ये प्राचीन रामलीला

रेशमी शहर के कर्णगढ़ मैदान और गोलदारपट्टी में रामलीला का डेढ़ सौ वर्ष पुराना इतिहास है। यहां पहले भजन-कीर्तन और रामचरित मानस के पाठ से शुरुआत हुई थी। कुछ वर्षो बाद कलाकारों ने रामलीला का नाट्य मंचन शुरू कर दिया। रामलीला समिति ने आधुनिक दौर में भी अपनी परंपरा को नहीं बदला है। रामलीला मैदान तक आने के लिए कलाकारों को टमटम से लाया जाता है। रावण और राम की सेना के बीच युद्ध दर्शकोंं के आकर्षण का केंद्र रहता है। शहर में और कहीं ऐसे आयोजन नहीं होते हैं। इसी तरह गोलदारपट्टी रामलीला समिति ने अपनी डेढ़ शताब्दी प्राचीन परंपरा को बरकरार रखा है। यहां रावण दहन को देखने के लिए दूर-दराज से लोग कर्णगढ़ मैदान पहुंचते हैं। दो दशक पूर्व तक दर्शक बैलगाड़ी और तांगे पर सवार होकर विजयदशमी की सुबह को जुटते थे।

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com