कोरोना महामारी के कारण स्कूलों में अभी तक प़़ढाई सामान्य नहीं हो पाई है। इस बात को लेकर खासी चिंता रही कि स्कूलों में बच्चों के आने से उनमें कोरोना संक्रमण के प्रसार का जोखिम ज्यादा होगा। इस अंदेशा में स्कूल बंद कर दिए गए और वैकल्पिक व्यवस्था के तहत ऑनलाइन कक्षाएं चलाई जा रही हैं। लेकिन मिसौरी में हुए एक पायलट अध्ययन का निष्कषर्ष राहत पहुंचाने वाला है। इसमें बताया गया है कि यदि स्कूलों में मास्क पहनने को अनिवार्य किए जाने के साथ ही शारीरिक दूरी रखने और बारंबार हाथ धोने जैसे ऐहतियाती उपाय किए जाएं तो वहां संक्रमण फैलने का खतरा बेहद कम होता है। हां, एक बात और कि कांटैक्ट ट्रेसिंग का भी विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। यह अध्ययन महामारी के दौरान प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों को सुरक्षित तरीके से खोलने के उपाय तलाशने के मकसद से किया गया।
इस अध्ययन में तो यहां तक कहा गया है कि यदि जरूरी सावधानी बरती जाए तो कोरोना पॉजिटिव के निकट संपर्क में आने पर भी कोई खास जोखिम नहीं होता है। यहां निकट संपर्क का आशय कोरोना संक्रमित व्यक्तियों से छह फीट के दायरे में 24 घंटे में 15 मिनट से ज्यादा समय तक रहना। यह अध्ययन सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी), वाशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसीन, सेंट लुइस यूनिवर्सिटी के मिसौरी विभाग के प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा, सेंट लुइस काउंटी स्वास्थ्य विभाग तथा मिसौरी क्षेत्र के सेंट लुइस व स्प्रिंगफिल्ड स्कूल डिस्टि्रक्ट के सहयोग से किया गया। इसका निष्कर्ष सीडीसी के जर्नल मोर्बिडिटी एंड मॉर्टेलिटी वीकली रिपोर्ट में प्रकाशित हुआ है।
कोरोना संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए ऐहतियाती उपाय कारगर हो सकते हैं
यह निष्कषर्ष उम्मीद जगाता है कि छात्रों, शिक्षकों और स्टाफ में कोरोना संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए ऐहतियाती उपाय कारगर हो सकते हैं। अध्ययन के वरिष्ठ लेखक जोहान्न एस. सल्जेर का कहना यह शोध इस मायने में अहम है कि बच्चों को स्कूल भेजने से न सिर्फ उन्हें शैक्षणिक तौर पर समृद्ध करता है बल्कि सामाजिक, मनोवैज्ञानिक तथा भावनात्मक स्वस्थ्य की दृष्टि से भी फायदेमंद है। खासकर उन बच्चों के लिए तो और भी जो पोषषण, शारीरिक गतिविधियों और मानसिक स्वास्थ्य के लिए स्कूल पर निर्भर होते हैं।
अध्ययन में शामिल किए गए 57 स्कूल
सेंट लुइस काउंटी तथा दक्षिण-पश्चिम मिसौरी के ग्रीन काउंटी स्थित स्प्रिंगफिल्ड पब्लिक स्कूल डिस्टि्रक्ट के साथ ही कुल 57 स्कूलों में यह पायलट अध्ययन किया गया। इन सभी स्कूलों में छात्रों, शिक्षकों, स्टाफ, तथा आंगतुकों के लिए कैंपस और बसों में मास्क को अनिवार्य किया गया। अन्य ऐहतियातों में हाथ की स्वच्छता, सफाई की पुख्ता व्यवस्था, कक्षाओं में शारीरिक दूरी, कोरोना के लक्षणों की दैनिक स्क्रीनिंग, शिक्षकों और छात्रों के बीच फिजिकल बैरियर, वर्चुअल लर्निग का विकल्प तथा ज्यादा वेंटिलेशन की भी व्यवस्था की गई। उत्साहजनक रहे परिणाम अध्ययन में सहभागी 57 में से 22 स्कूलों के 37 लोग कोरोना पॉजिटिव हुए और 156 लोग उनके करीबी संपर्क में आए। कोरोना पॉजिटिव पाए गए 24 (65 फीसद) छात्र और 13 (35 फीसद) शिक्षक या स्टाफ थे। जबकि करीबी संपर्क में 137 (88 फीसद) छात्र और 19 (12 फीसद) शिक्षक या स्टाफ के सदस्य थे। करीबी संपर्क में आए लोगों में से 102 लोग सलाइवा टेस्ट के लिए तैयार हुए और उनमें से सिर्फ दो में ही स्कूल आधारित सेकंडरी संक्रमण के संकेत मिले। दिसंबर में तेजी से फैले संक्रमण के बावजूद अध्ययन के अन्य सहभागियों में संक्रमण का प्रसार नहीं देखा गया।