साल भर में सूरत पलटी : ब्रिटेन में प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की लोकप्रियता पाताल छू रही

ठीक साल भर पहले जब प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन जबरदस्त जनादेश के साथ सत्ता में ब्रिटेन में लौटे थे, तब ऐसा लगा था कि साल 2020 के नायक वे ही होंगे। उन्हें संसद में इतना बड़ा बहुमत मिला था, जितना हाल के दशकों में किसी और प्रधानमंत्री को नसीब नहीं हुआ। तब कई टीकाकारों ने उम्मीद जताई थी कि जॉनसन ब्रिटिश राष्ट्र की तकदीर बदल देंगे। जॉनसन को ये जनादेश ब्रेग्जिट (यूरोपियन यूनियन से ब्रिटेन के अलगाव) को तुरंत संभव बनाने के उनके वादे पर मिला था। लेकिन साल भर बाद अब सूरत उलटी है। अब अपने देश में जॉनसन की लोकप्रियता पाताल छू रही है।

ब्रेग्जिट समर्थक समुदाय ने तब जॉनसन की जीत पर उत्सव मनाया था। अब वे शिकायत कर रहे हैं कि उनके साथ विश्वासघात हुआ है। ब्रेग्जिट समझौता आज भी उतना ही दूर लगता है, जितना एक साल पहले था। ब्रेग्जिट वार्ताओं में कामयाबी ना मिलने के बाद बीते शुक्रवार को जॉनसन ने व्यक्तिगत पहल की। उन्होंने यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उरसुला वॉन डेर लियेन से सीधी बातचीत की। लेकिन कोई हल नहीं निकला। बताया जाता है कि जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल और फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों ने उन शर्तों को मानने से इनकार कर दिया है, जिन्हें जॉनसन समझौते में शामिल करवाना चाहते हैँ।

इस वार्ता के क्रम में जॉनसन के लिए यह अपमानजनक स्थितियां पैदा हुई हैं। टीवी चैनल यूरो न्यूज के मुताबिक जब डेर लियेन से बातचीत में कामयाबी नहीं मिली, तो जॉनसन ने सीधे मैर्केल और मैक्रों से बातचीत करने की कोशिश की। लेकिन दोनों नेताओं ने उनका फोन लेने से इनकार कर दिया। दोनों की तरफ से उन्हें यही संदेश दिया गया कि बातचीत यूरोपीय आयोग के दायरे में ही होनी चाहिए। यूरोपीय आयोग से बाहर जाकर हल निकालने की जॉनसन की कोशिश की नीदरलैंड्स के प्रधानमंत्री मार्क रुट ने भी कड़ी आलोचना की है। उधर डे लियेन ने यूरोपियन यूनियन के सदस्य 27 देशों को अपना यह आकलन बताया है कि ब्रेग्जिट समझौता हो पाने की संभावना बेहद कम है। 

ब्रेग्जिट के साथ- साथ कोविड-19 महामारी से निपटने में नाकामी के कारण भी जॉनसन अपने देश में आलोचनाओं का पात्र बने हुए हैँ। खुद उनकी कंजरवेटिव पार्टी के कई नेताओं ने बार- बार लॉकडाउन लागू करने और सरकारी कोष से कंपनियों को बेलआउट पैकेज देने के जॉनसन के फैसलों की आलोचना की है। ब्रिटिश और अंतरराष्ट्रीय मीडिया जॉनसन और उनकी पार्टी के बीच बढ़ती जा रही विश्वास की खाई की खबरों से भरा पड़ा है। अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन ने कुछ कंजरवेटिव नेताओं के हवाले से कहा है कि पार्टी में मतभेद जॉनसन के डोमिनिक कमिंग्स अपना सलाहकार बनाने के फैसले से ही पैदा होने लगे थे। पिछले महीने कमिंग्स ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। लेकिन कंजरवेटिव नेताओं का कहना है कि उनकी वजह से जॉनसन, उनकी सरकार और पार्टी को काफी नुकसान पहुंचा।

कमिंग्स ने पहले लॉकडाउन के दौरान खुद सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का उल्लंघन किया था। तब पार्टी के अंदर से उन्हें हटाने की मांग उठी थी। लेकिन जॉनसन उनके बचाव में खड़े रहे। इससे आरोप लगा कि जॉनसन एक चौकड़ी से घिर गए हैं और पार्टी की भावनाओं का अनादर कर रहे हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर टिम बेल ने सीएनएन से कहा- ‘कंजरवेटिव पार्टी के सांसदों में यह भाव भर गया है कि उनका कोई महत्त्व नहीं है। सारे फैसले डाउनिंग स्ट्रीट (प्रधानमंत्री कार्यालय) में चंद लोगों का एक समूह ले रहा है। सांसदों से उम्मीद की जाती है कि वे खामोश रहें और सरकार जो करती है उसका समर्थन करें।’

कोरोना महामारी आने पर जॉनसन ने पहले इसका मजाक उड़ाया था। फिर उन्होंने विवादास्पद बयान दिया कि हर्ड इम्युनिटी से इसका इलाज होगा। तभी उन्होंने बड़े असंवेदनशील ढंग से कह दिया कि ये इम्युनिटी विकसित होने के पहले आठ लाख लोगों की जान जा सकती है। कुछ ही दिन बाद जॉनसन खुद कोरोना संक्रमित हो गए और उनकी अवस्था गंभीर हो गई। जब वे ठीक होकर अस्पताल से निकले तब उन्होंने सख्त पाबंदियां लगाने की नीति अपना ली।

इससे जनता में उनकी लोकप्रियता गिरी, जबकि कंजरवेटिव पार्टी के भीतर गंभीर सवाल उठने लगे। ब्रेग्जिट संभव बनाने में नाकामी और कोरोना महामारी से निपटने में दिखे उनके विवादास्पद रुख की उनकी छवि को धूमिल करने में खास भूमिका रही है। अब जबकि 2020 अपनी समाप्ति की तरफ है, ब्रिटिश मीडिया में ऐसे कयास खूब लगाए जा रहे हैं कि अगले साल कंजरवेटिव पार्टी में जॉनसन को बगावत का सामना करना पड़ सकता है। 

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