बेबसी, दर्द, गुस्सा, डर और मजबूरी ऐसी कि किसी से कोई बात नहीं करना चाहता। यह हालात सरहद सटे गांव के हैं। यहां दो दिन से रुक-रुककर रिहायशी इलाकों पर पाकिस्तानी गोले गिर रहे हैं। इनके जमीन पर गिरते ही तेज धमाका होता है और मोर्टार में लगे लोहे के टुकड़े सौ मीटर की रेंज में बिखर जाते हैं। ये बिखराव इतना तीव्र होता है कि इंसान हो या मवेशी, जिसे लगता है उसका बचना नामुमकिन हो जाता है।
दोपहर के दो बजे हैं। आरएस पुरा सेक्टर के गांव कोरोटाना में है। हर तरफ खामोशी है। दूर दूर तक कोई नहीं दिख रहा। गांव में केवल गोलों के छर्रों से छलनी दीवारें दिख रही हैं। ज्यादातर मकानों के बाहर ताले लटके हैं। पसरे सन्नाटे के बीच गोलों की गूंज दूर-दूर तक सुनाई दे रही है। सरहद से सटे गांवों में जाने वाले किसी शख्स को यह कहकर कोई रोकने वाला नहीं मिला कि आगे मत जाना, तुम्हारी जान को खतरा है।
अचानक शुरू हुई गोलाबारी में कुछ लोग अपने घरों में ही फंस गए। कुछ को मोबाइल बंकरों से बाहर निकाला गया। रह रह कर पाकिस्तान गोले दाग रहा था। हर पंद्रह मिनट के बाद एक गोला आकर गिरता। इन पंद्रह मिनट में कई ग्रामीणों को डर के माहौल में भागते हुए देखा। गांव में घायल मवेशियों का उपचार करने जा रही पशु चिकित्सा विभाग की टीम भी उल्टे पांव दौड़ आई।
फोन पर पूछा आ जाऊं
दूध बेच कर आ रहा एक व्यक्ति कोरोटाना कलां के पास आकर खड़ा हो गया। उसने अपने घर पर फोन किया और पूछा कि गोले बंद हुए या नहीं। आगे से जवाब आया कि अभी पंद्रह मिनट पहले बंद हुए हैं। यह जानकर वह आगे बढ़ा। यह शख्स सुचेतगढ़ का रहने वाला है।
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