सरस्वती धाम की बदहाली अब जल्दी ही दूर होगी। धाम के कायाकल्प के लिए आइआइटी रुड़की ने डिजाइन तैयार किया है। सरोवर में गंदे पानी के बहाव को रोकने के लिए बांध बनाया जाएगा। सरोवर व मंदिर के बीच में सीसी वॉल बनेगी ताकि दूषित तालाब का पानी सरोवर में न आए। इसकी ङ्क्षसचाई विभाग के अधिकारियों ने तैयारी कर ली है।
सरस्वती हेरिटेज डेवलपमेंट बोर्ड के एसडीओ नितिन गर्ग का कहना है कि आइआइटी रुड़की से तैयार डिजाइन हमें मिल चुका है। बांध के लिए 28 लाख रुपये का टेंडर लग चुका है। तालाब व सरोवर को अलग किया जाएगा, जिसके बाद दूषित पानी से मुक्ति मिलेगी। सुरक्षा के लिए सरोवर पर सीसी वॉल बनाई जाएगी। बरसाती व अतिरिक्त पानी मुख्य नदी से अलग का रास्ता होगा। इस काम पर करीब दो करोड़ रुपये का खर्च आएगा। उसके बाद यहां पर किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं रहेगी। सरकार इस मामले में गंभीर है।
खंड संपर्क प्रमुख राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व सरस्वती महोत्सव के सदस्य सुरेंद्र गोयल व सरस्वती विकास समिति के चेयरमैन व बोर्ड के सदस्य विश्वामित्र अग्रवाल का कहना है कि सरस्वती धाम पर सभी सुविधा हो। इसके लिए वे सीएम से 2 जनवरी 2017 को चंडीगढ़ में मिले थे। उसी वक्त सीएम ने अधिकारियों को धाम के कार्यों में तेजी लाने के निर्देश दिए थे। तभी से इस दिशा में काम हो रहे हैं। नए डिजाइन में धाम की परिक्रमा के लिए बने रास्ते की भी मरम्मत होगी। काम पूरा होने पर धाम को देखने के लिए दूर दराज से लोग आएंगे।
सरोवर का पौराणिक महत्व
ये पवित्र सरोवर सतयुग में सोमसर के नाम से जाना जाता था, जो आकार में दूज के चंद्रमा समान है। यह अब कपालमोचन सरोवर के रूप में प्रसिद्ध है। प्रचलित है कि कलियुग के आगमन पर ऋषि मुनियों ने महायज्ञ का आयोजन हुआ। यज्ञ में अंतिम आहुति के समय प्रजापति ब्रह्मा जी ने कहा कि मैं सबसे बड़ा हूं क्योंकि में संसार का रचयिता हूं। इसलिए आहुति मेरे हाथों डाली जाएगी, लेकिन विष्णु भगवान ने कहा कि संसार का पालक हूं। आहुति मेरे हाथ से डाली जाएगी। इस पर भगवान शंकर ने कहा कि मैं संसार का संरक्षक हूं। आहुति मेरे हाथ से डाली जाए। इस पर शिव नाराज होकर आदिबद्री चले गए, जिस कारण आहुति नहीं डाल सके। उस यज्ञ के सार से कन्या का जन्म हुआ, जिसका नाम सरस्वती रखा गया। ब्रह्मा जी इस कन्या के धर्म पिता बने। ये बताया जाता है भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के बाद भीष्म पितामाह के पिंडदान सरस्वती धाम पर किए। 1947 में बंटवारे के बाद यहां के ब्राह्मण पिहोवा चले गए, जिस कारण यहां की पहचान कम हो गई। यहां पर सरस्वती मंदिर के अलावा 12 भव्य मंदिर हैं। लक्ष्मी और भगवान विष्णु की प्राचीन ङ्क्षपडी भी है।