सरकार से अनबन के बीच उर्जित पटेल ने लिया बड़ा फैसला ,गवर्नर पद से दे सकते हैं इस्तीफा

केंद्र सरकार से तनातनी के बीच भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल जल्द ही अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पटेल इस बात पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं। हालांकि आरबीआई की तरफ से इस तरह की कोई जानकारी नहीं मिली है। 

सरकार ने लगाया सेक्शन 7

केंद्र सरकार ने आरबीआई एक्ट के सेक्शन 7 को लगा दिया है। इस सेक्शन के अनुसार केंद्र सरकार आरबीआई के गवर्नर को सीधे तौर पर आम जनता से जुड़े मामलों में दिशा-निर्देश दे सकती है। हालांकि आरबीआई के अभी तक के इतिहास में केंद्र सरकार ने कभी भी इस सेक्शन का प्रयोग नहीं किया है। 

इस वजह से बढ़ गई दूरियां

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल के शुरुआती महीनों में सरकार और आरबीआई के बीच दूरियां बढ़ी हैं। यहां तक कि सरकार और आरबीआई के बीच संवादहीनता की स्थिति तक बनती जा रही है।

बचा है अभी 11 महीने का कार्यकाल

कहा जा रहा है कि वर्तमान हालात का असर उर्जित पटेल के भविष्य पर भी पड़ सकता है। रिपोर्ट का कहना है अगले साल सितंबर में उर्जित पटेल के तीन साल का कार्यकाल पूरा हो रहा है। पटेल के सेवा विस्तार की बात तो दूर की है उनके बाकी के कार्यकाल पर भी सवाल उठ रहे हैं।

पीएनबी घोटाले से पैदा हुआ तनाव

रिपोर्ट का कहना है कि केवल 2018 में ही कम से कम आधे दर्जन नीतिगत मसलों पर मतभेद उभरकर सामने आए। सरकार की नाराजगी ब्याज दरों में कटौती नहीं किए जाने को लेकर भी रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि नीरव मोदी की धोखाधड़ी सामने आने के बाद भी सरकार और केंद्रीय बैंक में तनाव की स्थिति पैदा हुई थी। पटेल चाहते हैं कि सरकारी बैंकों पर नजर रखने के लिए आरबीआई के पास और शक्तियां होनी चाहिए।
विरल आचार्य ने उठाया था सवाल

आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने शुक्रवार को कहा था कि केंद्रीय बैंक की स्वायत्ता को नजरअंदाज करना विनाशकारी हो सकता है। आरबीआई की नीतियां नियमों पर आधारित होनी चाहिए। उनके भाषण को आरबीआई की वेबसाइट पर भी पोस्ट किया गया है।

सरकार के दखल से पड़ता है असर

विरल ने कहा कि सरकार के केंद्रीय बैंक के कामकाज में ज्यादा दखल देने से उसकी स्वायत्ता प्रभावित हो रही है। केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए सरकार से थोड़ा दूरी बनाकर रखना चाहती है, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। सरकार की तरफ से बैंक के कामकाज में सीधा हस्तक्षेप किया जा रहा है, जो कि घातक हो सकता है। 

बाजार हो सकता है नाराज

अगर सरकार केंद्रीय बैंक की आजादी का सम्मान नहीं करेगी तो उसे जल्दी  या बाद में आर्थिक बाजारों की नाराजगी का शिकार होना पड़ेगा। सरकारें केंद्रीय बैंक की आजादी का सम्मान नहीं करेंगी तो उन्हें बाजारों से निराशा ही हाथ लगेगी। उन्होंने कहा कि इसके बाद सरकार को पछतावा होगा कि एक महत्वपूर्ण संस्था को कमतर आंका गया। आरबीआई का काम सरकार को अप्रिय लेकिन क्रूर ईमानदार सच्चाई बताने का है और वो सरकार का एक ऐसा मित्र है, जो अर्थव्यवस्था के बारे में सचेत करता रहता है। 

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