बैंक कर्मचारी संगठनों ने सरकार की ओर से निजीकरण की योजना के विरोध में शुक्रवार को सभी राज्यों की राजधानियों में विरोध प्रदर्शन किया। कर्मचारी संगठनों ने कहा कि यदि उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं तो वे मार्च में संसद का घेराव करेंगे।
मालूम हो कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस महीने की शुरुआत में अपने बजट भाषण के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र के दो बैंकों के निजीकरण की घोषणा की थी। अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ (एआईबीईए) ने एक बयान में कहा कि यूनाइटेड फोरम ऑफ यूनियंस के बैनर तले नौ यूनियनों एआईआईबीए, एआईबीओसी, एनसीबीई, एआईबीओए, बीईएफआई, आईएनबीईएफ, आईएनबीओसी, एनओबीडब्ल्यू और एनओबीओ के लगभग 10 लाख बैंक कर्मचारी और अधिकारी मिलकर सरकार के प्रस्ताव के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं। एआईबीईए ने कहा कि शुक्रवार के धरने के बाद बैंक संगठन अगले 15 दिनों के दौरान देश भर में विरोध प्रदर्शन करेंगे।
एआईबीईए के महासचिव सी एच वेंकटचलम ने कहा कि सरकारी बैंकों के सामने एकमात्र समस्या खराब कर्ज की है, जो अधिकांश कॉरपोरेट और अमीर उद्योगपतियों द्वारा लिए जाते हैं। सरकार उन पर कार्रवाई करने के बजाय, बैंकों का निजीकरण करना चाहती है।
बयान में कहा गया कि हम 10 मार्च को बजट सत्र के दौरान संसद के सामने धरना प्रदर्शन करेंगे। इसके बाद 15-16 मार्च 2021 को बैंकों के 10 लाख कर्मचारी और अधिकारी दो दिन की हड़ताल करेंगे। अगर सरकार अपने फैसले पर आगे बढ़ती है, तो हम आंदोलन तेज करेंगे और लंबे समय तक हड़ताल और अनिश्चितकालीन हड़ताल करेंगे। बयान के मुताबिक, हम मांग करते हैं कि सरकार अपने फैसले पर फिर से विचार करे।
एआईबीईए के महासचिव सी एच वेंकटचलम ने कहा कि हमने आईसीआईसीआई बैंक में समस्याओं को देखा है। इसलिए कोई यह नहीं कह सकता है कि निजी क्षेत्र की बैंकिंग बहुत कुशल है। एआईबीईए ने कहा कि इसके अलावा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने युवा बेरोजगारों को स्थायी नौकरियां दी हैं, जबकि निजी बैंकों में केवल अनुबंध की नौकरियां हैं।