लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद समाजवादी पार्टी खुद को नए कलेवर में ढालने की तैयारी कर रही है। पार्टी में युवा कार्यकर्ताओं की भागीदारी बढ़ाने के अलावा सोशल इंजीनियरिंग को मजबूती दी जाएगी। पार्टी कार्यालय में प्रमुख नेताओं ने राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ इस बारे में मंथन भी किया है।
पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और बसपा से गठबंधन का प्रयोग फेल होने के बाद समाजवादी पार्टी संगठन की ओवर हालिंग पर अधिक फोकस कर रही है। सपा को अस्तित्व बचाने के लिए कई मोर्चो पर मुकाबला करना होगा। कुनबे की कलह लोकसभा चुनाव में सपा को ले डूबी। बसपा और रालोद से चुनावी गठबंधन के बाद मजबूत दिखते जातीय समीकरण बेदम साबित हुए।
एक पूर्व विधायक का कहना है कि चुनाव में अपेक्षित नतीजे नहीं मिलने से अधिक घातक बसपा प्रमुख की रणनीति को नहीं समझ पाना रहा। बसपा गठबंधन कर सपा को बौना साबित करने में सफल रही। इसका नुकसान विधानसभा की रिक्त 13 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में ही नहीं त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में भी होगा।
उपचुनाव में होगी परीक्षा
राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव द्वारा विधानसभा क्षेत्र स्तर तक कमेटियां भंग करने के अलावा फ्रंटल संगठनों को नए सिरे से तैयार करने का निर्णय लिया गया है। अखिलेश भाजपा के अलावा बसपा से भी अपना बराबर का मुकाबला मान रहे है। अखिलेश व प्रमुख नेताओं की बैठक में उपचुनाव में मजबूती से उतरने का फैसला किया गया है।
उपचुनाव में सभी वरिष्ठ नेताओं की डयूटी लगायी जाएगी। परिणाम के आधार पर संगठनात्मक जिम्मेदारी दी जाएगी। अखिलेश की युवा टोली के एक सदस्य का कहना है कि ऐसे वक्त में जब सपा छोड़ने वालों का सिलसिला जारी है तब केवल युवा नेता ही अखिलेश के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं।
बसपा के वोटबैंक पर नजर
उपचुनाव में सपा के आगे बसपा से बेहतर प्रदर्शन की चुनौती है क्योंकि बसपा भी पहली बार उपचुनाव में उतरेगी। दोनों में से जो पार्टी बेहतर प्रदर्शन करेगी, 2022 के विधानसभा चुनाव में उसी की बढ़त की उम्मीद जगेगी। वर्ष 2022 के लिए संगठन तैयार करते समय सपा एम वाई समीकरण (मुस्लिम यादव) के अलावा अगड़ों और दलितों को जोड़ने की कोशिश भी करेगी। सपा प्रमुख ने दिल्ली के तुगलकाबाद का मंदिर प्रकरण जिस मजबूती से उठाया है, उससे जाहिर है कि सपा अब बसपा के वोटबैंक पर भी निगाह लगाए है।