सभी सत्ताईस नक्षत्रों में सर्वश्रेष्ठ है ‘पुष्य’ नक्षत्र : धर्म

सभी कार्यों में संकल्पसिद्धि कराने वाली ‘पुष्य’ नक्षत्र का शुभकाल आज यानी 07 नवंबर, शनिवार की सुबह 08 बजकर 03 मिनट से आरंभ होकर रविवार को सुबह 08 बजकर 43 मिनट तक रहेगा। इस नक्षत्र के स्वामी शनि हैं और शनिवार को ही यह नक्षत्र पड़ने के प्रभाव स्वरूप 07 नवंबर को ‘अद्भुत योग’ का निर्माण हो रहा है। मुहूर्त ग्रंथों के अनुसार दिन-रात्रि के मध्य 30 मुहूर्त होते हैं जिनमें कई मुहूर्त ऐसे भी रहते हैं जिसमें कोई भी आवश्यक कार्य संपन्न किया जा सकता है किंतु, वार और नक्षत्र के संयोग से भी कई ऐसे अतिशुभ योग बनते हैं

पुष्य नक्षत्र उन्हीं नक्षत्रों में सर्वोपरि है। संहिता ज्योतिष में भी इन्हें सभी सत्ताईस नक्षत्रों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यद्यपि अभिजीत मुहूर्त को नारायण के ‘चक्रसुदर्शन’ के समान शक्तिशाली बताया गया है फिर भी ‘पुष्य’ नक्षत्र के संयोग से बनने वाले शुभ योगों का प्रभाव अन्य योगों की तुलना में श्रेष्ठ माना गया है क्योंकि यह नक्षत्र सभी अरिष्टों का नाशक और सर्व दिग्गामी है। पुराणों तथा ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार इस नक्षत्र में जन्मा जातक महान कर्म करने वाला, बलवान, कृपालु, धार्मिक, धनी, विविध कलाओं का ज्ञाता, दयालु और सत्यवादी होता है।

महिलाओं के लिए ये इस नक्षत्र को और भी प्रभावशाली माना गया है। इनमें जन्मी कन्याएं अपने कुल-खानदान का यश चारों दिशाओं में फैलाती हैं और कई महिलाओं को तो महान तपश्विनी की संज्ञा मिली है जैसा कि कहा भी  गया है कि- देवधर्म धनैर्युक्तः पुत्रयुक्तो विचक्षणः। पुष्ये च जायते लोकः शांतात्मा शुभगः सुखी। अर्थात- जिस कन्या की उतपत्ति पुष्य नक्षत्र में होती है वह शौभाग्य शालिनी, धर्म में रूचिरखने वाली, धन-धान्य एवं पुत्रों से युक्त सौन्दर्य शालिनी तथा पतिव्रता होती है। 

वैसे तो यह नक्षत्र हर सत्ताईसवें दिन आता है किन्तु हर बार रविवार ही हो ये तो संभव नही हैं। इसलिए इस नक्षत्र के दिन गुरु एवं सूर्य की होरा में भी कार्य आरंभ करके गुरुपुष्य और रविपुष्य जैसा परिणाम प्राप्त किया जा सकता हैं।

शनिवार पुष्य नक्षत्र की उपस्थिति के फलस्वरूप ‘अद्भुद’ योग बनता है। शास्त्रों में पुष्य नक्षत्र को ‘तिष्य’कहा गया है जिसका अर्थ होता है श्रेष्ठ एवं मंगलकारी। बृहस्पति भी इसी नक्षत्र में पैदा हुए थे। तैत्रीय ब्राह्मण में कहा गया है कि, बृहस्पतिं प्रथमं जायमानः तिष्यं नक्षत्रं अभिसं बभूव। बृहस्पति ग्रह की जननी को भी पुष्य ही कहा गया है। इसलिए बृहस्पति ग्रह जनित कार्यों जैसे मंत्र दीक्षा, धार्मिक ग्रंथों का दान करना, लेखन, पठन पाठन, संपादन, यज्ञ अनुष्ठान आदि आरंभ करना भी इस नक्षत्र में श्रेष्ठ फलदाई माना गया है। 

फलित ज्योतिष में बृहस्पति ग्रह को हीरे जवाहरात, सोने और इससे बने हुए आभूषणों का कारक माना गया है इसीलिए जिसकी जन्म कुंडली में बृहस्पति अशुभफल कारक अथवा बिल्कुल ही कमज़ोर होते हैं उन्हें सोना धारण करना, पीले पुखराज सोने की अंगूठी में धारण करना अथवा पीली वस्तुओं को धारण करने के लिए सलाह दिया जाता है।

इस नक्षत्र की उपस्थिति में सोने चांदी की खरीदारी करना अत्यंत शुभ फलदायक माना गया है। सोने से बनी हुई वस्तुओं का दान करना अथवा मांगलिक कार्यों के लिए आभूषण आदि का क्रय करना हो तो उस दृष्टि से भी यह संयोग श्रेष्ठ और मंगलकारी रहता है। इसीलिए इस नक्षत्र के आरंभ होते ही अधिकतर आभूषणों की दुकानों में खरीदारों की भीड़ लगी रहती है।

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