सप्त ऋषियों की पूजा से मिलेगा अद्भुत फल, पढ़ें ऋषि पंचमी की प्राचीन कथा

ऋषि पंचमी २०२० (Rishi Panchami 2020): सुचित्र की पत्नी किसी काम से बाहर गई हुई थी और रसोई में कई नहीं था तब रसोई में रखी खीर के बर्तन में एक सांप ने जहर उगल दिया…

ऋषि पंचमी २०२० (Rishi Panchami 2020): आज ऋषि पंचमी है. ऋषि पंचमी पर आज लोगों ने सप्त-ऋषियों की पूजा की. पौराणिक मान्यता है कि ऋषि पंचमी पर ऋषियों की पूजा करने से सभी प्रकार के पाप और दोषों का नाश हो जाता है. इसके साथ ही साधक का शुद्धिकरण हो जाता है. इस व्रत के प्रभाव से स्त्रियों को रजस्वला दोष से मुक्ति मिलती है. ऋषि पंचमी मुख्यतः नेपाल का त्योहार है लेकिन सनातन धर्म में ऋषि पंचमी को काफी महत्व दिया गया है. आइए जानते हैं ऋषि पंचमी की पावन कथा…

ऋषि पंचमी की व्रत कथा:

पौराणिक कथाओं के अनुसार, सतयुग में श्येनजित नामक एक राजा था जो राजाविदर्भ नगर में राज करता था. वह ऋषियों की तरह ही तेजस्वी था. श्येनजित के राज में ही एक किसान था जिसका नाम सुमित्र था. उसकी पत्नी का नाम जयश्री था. एक दिन बारिश हो रही थी. इसी समय वो खेत में भी काम कर रही थी. काम करते समय ही वे रजस्वला हो गई. उसे इस बात का पता चल गया था. इसके बाद भी वो काम में लगी रही. कुछ समय बीता और वो दोनों पति-पत्नी अपना-अपना जीवन जीकर मृत्यु को प्राप्त हो गए.
अगले जन्म में जयश्री कुतिया बनी तो सुमित्र को रजस्वला स्त्री के सम्पर्क में आने की वजह से बैल की योनी मिली. हालांकि, दोनों का ही कोई दोष नहीं था, दोष केवल ऋतु का था. यही कारण है कि दोनों को ही अपना पुराना जन्म याद रहा. वे दोनों कुतिया और बैल बनकर वापस उसी नगरी में गए और अपने बेटे सुचित्र के यहां पर रहने लगे. धर्मात्मा सुचित्र अपने अतिथियों को पूरा आदर और सम्मान देता था. उसने अपने पिता के श्राद्ध के दिन ब्राह्मणों के लिए कई तरह के व्यंजन बनवाए.

जब सुचित्र की पत्नी किसी काम से बाहर गई हुई थी और रसोई में कई नहीं था तब रसोई में रखी खीर के बर्तन में एक सांप ने जहर उगल दिया. यह सब सुचित्र की मां जिसने कुतिया का रूप लिया था, दूर बैठी खीर के बर्तन में जहर उगल दिया. कुतिया के रूप में सुचित्र की मां कुछ दूर से बैठकर सब कुछ देख रही थी. उसने अपने पुत्र को बह्म हत्या से बचाने के लिए अपनी पुत्रवधु के आने पर उस बर्तन में मुंह डाल दिया. यह देख सुचित्र की पत्नी चन्द्रवती बहुत नाराज हुई. क्रोध में चन्द्रवती ने चूल्हे में से जलती लकड़ी निकाली और कुतिया को मार दी. जलने से कुतिया इधर-उधर भागने लगी. चन्द्रवती हमेशा ही उसे चौके में जो कुछ बच जाता था वो खाने के लिए दे देती थी. लेकिन इस घटना के बाद उसने वह सब बाहर फिकवा दिया. फिर बर्तनों को अच्छे से साफ कर दोबारा खाना बनाया और ब्राह्मणों को खिलाया.

कुतिया को खाना नहीं मिला था और वो बहुत भूखी थी. वह परेशान होकर बैल के रूप में रह रहे अपने पूर्व पति के पास गई. उसने कहा, हे स्वामी! आज तो मैं भूख से मरी जा रही हूं. वैसे तो मुझे रोज खाना मिल जाता था लेकिन सांप के विष वाली खीर के बर्तन में मुंह डालकर मैंने अपने बेटे को अनेक ब्रह्म हत्या के पाप से बचा लिया. इसी वजह से बहू ने मुझे मारा और खाना भी नहीं दिया. तब बैल ने कहा, हे भद्रे! तेरे पापों की वजह से मुझे भी इस योनी में जन्म मिला है. आज तो मेरी कमर टूट गई बोझा ढोते-ढोते. आज दिन में पूरे दिन मैंने हल चलाया है. आज तो मुझे भी भोजन नहीं मिला. यही नहीं, उसने मुझे बहुत मारा. इस तरह से उसने मेरे श्राद्ध को निष्फल कर दिया.

यह सब उनका बेटा सुचित्र सुन रहा था. उसने तुरंत ही दोनों को भरपेट खाना खिलाया. फिर उनके दुख में दुखी होकर वो वन की तरफ चल पड़ा. जंगल में उसने ऋषियों से पूछा कि मेरे माता-पिता को कौन-से कर्मों की वजह से यह फल मिला है कि वो नीच योनी को प्राप्त हुए हैं. उन्हें इससे किस तरह छुटकारा मिल सकता है. इस पर सर्वतमा ऋषि ने कहा, तुम इनकी मुक्ति के लिए पत्नी सहित ऋषि पंचमी का व्रत करो. इसका फल तुम्हारे माता-पिता को प्राप्त होगा.

भाद्रपद महीने की शुक्ल पंचमी के दिन दोपहर के समय नदी के पवित्र जल में स्नान करना. फिर नए रेशमी वस्त्र पहनकर अरूधन्ती सहित सप्तऋषियों का पूजन करना. यह सुनकर वह घर वापस आया और अपनी पत्नी सहित ऋषि पंचमी का विधिपूर्वक व्रत किया. इस व्रत के फल से उसके माता-पिता पशु योनियों से छूट गए. मान्यता है कि जो भी महिला श्रद्धापूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत करती है वो सभी सांसारिक सुखों को भोग कर बैकुंठ को जाती है. (Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य जानकारी पर आधारित हैं. Hindi news18 इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.)

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