सपा और बसपा के बीच गठबंधन तय दोनों दलों के सामने ये होंगी 7 चुनौतियां…

इन दलों का वोट बैंक (दलित, पिछड़ा व मुस्लिम) भाजपा के लिए बड़े खतरे की घंटी है। पर, भाजपा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शोहरत व मुख्यमंत्री के काम पर भरोसा है और वह पिछड़े व दलित वोटों को लुभाने की खासी कोशिश कर रही है। पर, इसके अलावा भी भाजपा को गठबंधन की काट के लिए कई जतन की जरूरत है।

चौबीस साल पहले सपा बसपा ने यूपी की सियासत में अपनी ताकत को सपा से जोड़कर दमखम दिखाया था। एक बार फिर नई सोशल इंजीनियरिंग के साथ यह दोनों पार्टियां भाजपा के खिलाफ आ रही हैं। इस बार चुनावी जंग में अखिलेश व मायावती संग नजर आएंगे। .

इस बार चुनावी जंग में अखिलेश व मायावती संग नजर आएंगे जैसा कि पिछले चुनाव में राहुल गांधी व अखिलेश साथ दिखे थे। चुनाव नतीजे इस बात की तस्दीक करते हैं कि इन दलों की मिलीजुली ताकत भाजपा की ताकत पर भारी पड़ सकती है। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 71 सीटें तो जीत लीं लेकिन सपा-बसपा को मिला वोट प्रतिशत भी करीब उतना ही है जितना भाजपा को मिला था। यह तब है जब कांग्रेस व रालोद का वोट इसमें शामिल नहीं है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 312 सीटें जीत कर पूरे यूपी में परचम जरूर फैलाया लेकिन सपा-बसपा का वोट भाजपा से ज्यादा ही रहा। सपा तो 403 के बजाए 311 पर ही लड़ी।

माना जा रहा है कि सपा को बसपा का साथ मिलने का खासा फायदा होगा। चूंकि बसपा अपने दलित वोट आसानी से सहयोगी दल को शिफ्ट करा सकती है। फूलपुर व गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव में सपा ने इसी का लाभ लेते हुए भाजपा से यह दोनों सीटें छीन लीं और यही सपा बसपा गठजोड़ की ताकत का अहसास भाजपा को हुआ।

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गठबंधन के सामने ये हैं चुनौतियां

– सपा बसपा का जिस वर्ग में मुख्य जनाधार है उसे अब एक साथ लाना मुश्किल। दोनों दलों के कार्यकर्ताओं को इसके लिए तैयार करना। क्योंकि यह अब तक एक दूसरे खिलाफ लड़ते रहे हैं। .

– सीटें बट जाने के बाद टिकट के दावेदारों के असंतोष का शांत करना चुनौती। दोनों दलों ऐसे कद्दावर नेताओं बागी होकर चुनाव लड़ सकते हैं या भाजपा का दामन थाम कर मुसीबत बन सकते हैं। .

– बसपा ने फूलपुर, गोरखपुर व कैराना के उपचुनाव में सपा को समर्थन देकर यह साबित किया है कि उसका वोट आसानी से ट्रांसफर हो जाता है लेकिन अब सपा को यह साबित करना है। पिछले विधानसभा में सपा कांग्रेस गठबंधन में भी यह समस्या दिखी थी। .

– गठबंधनकी मजबूती के लिए सपा-बसपा को कांग्रेस व रालोद का समर्थन लेना होगा। भाजपा ज्यादा सीटें देकर रालोद को साथ ला सकती है। .

– मुस्लिम बहुल सीटों पर ध्रुवीकरण की स्थिति में गठबंधन के मुकाबले भाजपा को फायदा.

पिछले तीन चुनावों में चार प्रमुख दलों का वोट प्रतिशत
चुनाव – भाजपा – सपा – बसपा – कांग्रेस

विधानसभा 2017 41.57 28.32 22.23 22.09.

लोकसभा 2014 42.63 22.35 19.77 7.53 .

विधानसभा 2012 15.21 29.29 25.95 13.26.

इन सीटों पर साफ है गठबंधन की तस्वीर

सपा बसपा के बीच बटवारें में सीटे तय होना बाकी है लेकिन दो दर्जन से ज्यादा सीटों पर तस्वीर साफ है। सपा बदायूं, कन्नौज, मैनपुरी व फिरोजाबाद जैसी सीटिंग सीटें तो लड़ेगी। उपचुनाव में जीती फूलपुर, गोरखपुर भी लड़ेगी। इसके अलावा भाजपा द्वारा जीती इटावा, बलिया, मुरादाबाद, रामपुर कैराना व संभल सीट पर सपा के पास जाना तय है। मथुरा, बागपत रालोद के खाते में जा सकती है। अमेठी व रायबरेली कांग्रेस के लिए छोड़ी गई है। बसपा सपा की सिटिंग आजमगढ़ पर लड़ने को इच्छुक है।

बसपा की दावेदारी तय

सूत्रों के मुताबिक बसपा आजमगढ़ सीट सपा से ले सकती है। इसके अलावा बसपा सुरक्षित सीटों में बड़ा हिस्सा चाहती है। बसपा पश्चिम यूपी की आगरा, बिजनौर, सहारनपुर तो खास तौर पर लड़ेगी। इसके अलावा बाकी हिस्से की लालगंज, मिश्रिख, अम्बेडकरनगर, मछलीशहर, संतकबीर नगर, भदोही, बस्ती, बाराबंकी, कौशाम्बी व बांसगांव लड़ेगी। दोनों दलों के बीच तय हुआ है कि पहले वह सीटें बांट ली जाएं जहां किसी दल का 2014 से पहले के चुनाव तक दबदबा रहा है।

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