लोग भावनाओं…को भी कैसे एक गलत बाजार का रूप दे देते हैं, सरोगेसी यानी किराए की कोख उसका एक साक्षात उदाहरण है। हमारे सामने कई ऐसी घटनाएं आई हैं, जहां लगता है कि यहां पैसे की गड़बड़ी के साथ किसी की जान से खिलवाड़ किया जा रहा है। दरअसल होता क्या है कई बार तो मेडिकल दिक्कतों के कारण महिला गर्भधारण नहीं कर सकती, तब डॉक्टर खुद उस महिला को सरोगेसी के लिए सलाह देती है।
कई बार ऐसा होता है कि जो महिला अपना परिवार पूरा कर चुकी है, वह अब किसी रिश्ते-नाते को निभाने के लिए या फिर अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए अपना गर्भ दूसरे के बच्चे को 9 महीने सुरक्षित रखने व पालने के लिए उधार देती है। यहां असली मुद्दा उसके अधिकार और सेहत का है।
सारा पैसा जो उसके नाम व उसकी परवरिश के नाम पर लिया जाता है, पर उन्हें मिलता नहीं। एजेंटों के हिस्से में चला जाता है। इस पर गौर किया जाना चाहिए। अन्य बिंदुओं में उनका खान-पान सही हो, सेहत ठीक रहे, चेकअप समय पर व सही मिले, इसका प्रावधान होना चाहिए।
जांच कमेटी में सरकारी विभाग के अधिकारी भी शामिल हों : अब बात आती है आइवीएफ सेंटर की। मुझे लगता है कि यहां आइवीएफ सेंटर पर सख्ताई से ज्यादा जरूरी उन परिस्थितियों पर गौर किया जाए, जिनसे इस प्रक्रिया का गलत इस्तेमाल हो रहा है। लोगों में जागरूकता की कमी है। पूरी तरह से स्वास्थ्य की जांच के बाद सरोगेसी होनी चाहिए। जांच कमेटी में सरकारी विभाग के अधिकारी भी शामिल हों।
आइवीएफ सेंटर की कोई कमी है, तो कार्रवाई होनी चाहिए। सख्त निगरानी न होने के चलते कई महिलाओं के जीवन के साथ खिलवाड़ हो जाता है। आजकल तो बहुत सी महिलाएं इसलिए सरोगेसी करवा रही हैं, उनके पास समय नहीं है, शरीर खराब नहीं करना चाहती। इन सब पहलुओं को ध्यान में रखते हुए ही कानून बने। सख्ती होगी, तो सुधार भी होगा। अब जिस तरह आगरा में सरोगेसी से जुड़े मामले सामने आए हैं, इनमें फरीदाबाद के तीन अस्पतालों के नाम भी जुड़े हैं। अभी तक की कार्रवाई को देखें, तो हालांकि आगरा पुलिस ने तीनों डॉक्टरों से बयान लेकर वापस भेज दिया था। उनकी कोई कमी नजर नहीं आ रही है। इसलिए संबंधित अस्पतालों के प्रबंधकों व डॉक्टरों को किसी भी रूप में कठघरे में खड़ा करना उचित नहीं। लेकिन यह भी सत्य है कि इस मामले में बड़ी गड़बड़ तो है, मामले के कई जगह तार जुड़े हैं। जिन महिलाओं की डिलीवरी कराई गई, क्या नियम अनुसार उनकी पहले मेडिकल जांच हुई थी? कम हो जाएगी
गड़बड़झाले की गुंजाइश
अगर कानून सख्त हों और रिकार्ड आनॅलाइन हों, तो डिलीवरी के साथ ही उस आइवीएफ सेंटर की जानकारी पहले ही मिल जाएगी, जहां सरोगेसी कराई गई है, तब सारी स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। कहां सरोगेसी हुई है, कहां डिलीवरी होनी है, इसका सारा रिकार्ड होगा, तो गड़बड़झाले खत्म हो जाएंगे। कई बार सरोगेसी कहीं होती है और डिलीवरी कहीं और। ऐसे में महिला रोग विशेषज्ञ बेवजह ही लपेटे में आ जाती हैं।
अब आगरा से जुड़े मामले में भी ऐसा ही कुछ नजर आ रहा है। नेपाल में कई महिलाओं की सरोगेसी कराए जाने की बात सामने आ रही है। मेरा सुझाव है कि सेरोगसी के मामले में केंद्र का अलग से ऐसा पोर्टल होना चाहिए, जिससे सरोगेसी के हर मामले की जानकारी पता चल सके। हर मामला आधार कार्ड से जुड़ा हो। आधार कार्ड से केस लिंक होगा, तो कोई भी अस्पताल किसी भी महिला की डिलीवरी से पहले जांच सकता है। कानून सख्त न होने के कारण बड़ा खेल खेला जा रहा है। बिचौलियों का खेल खत्म करने को यह बहुत ही जरूरी है।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन को भी आगे आकर केंद्र सरकार के समक्ष इस मुद्दे को रखना चाहिए, जिससे किसी तरह सरोगेसी के मामलों में चल रही गड़बड़ पर रोक लगे।
जीवन भर के लिए चिकित्सा बीमा भी आवश्यक
इसके अलावा सरोगेट मदर का जीवन भर का चिकित्सा बीमा भी आवश्यक है। अगर रक्तचाप व शुगर बढ़ जाती है, तो उसका असर जीवन भर रह सकता है। अगर बीमा होगा, तो उसके उपचार का बोझ उन कमजोर कंधों पर कम पड़ेगा। यहां एक बात ध्यान देने वाली यह भी है कि कई बार परिस्थितिवश महिला की गर्भवास्था के दौरान मृत्यु हो जाती है, तो जीवन बीमा होना भी जरूरी है।