पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पौष पुत्रदा एकादशी एकादशी के नाम से जाना जाता है। जो आज 6 जनवरी को है। इस दिन व्रत रखने और विधिपूर्वक पूजा करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है। संतान को हुई समस्याओं से निजात भी मिलता है। इस दिन व्रत रखने से धन और आरोग्य भी प्राप्त होता है। इस दिन भगवान विष्णु की आराधना करने का विधान है।
एकादशी तिथि का प्रारंभ 6 जनवरी दिन सोमवार को सुबह 03:06 बजे से हो गया है, जो 7 जनवरी दिन मंगलवार को सुबह 04:02 बजे तक रहेगी।
प्रात:काल स्नान आदि करने के बाद पति और पत्नी दोनों साथ में पूजा स्थल पर भगवान विष्णु या बाल गोपाल की प्रतिमा को स्थापित करें और उनको पंचामृत से स्नान कराएं। फिर चंदन से तिलक लगाएं और वस्त्र पहनाएं। इसके पश्चात पीले पुष्प, पीले फल, तुलसी दल अर्पित करें और धूप-दीप आदि से आरती करें। पूजा के समय संतान गोपाल मन्त्र का जाप करें।
इस दिन पति-पत्नी दोनों को व्रत रहना चाहिए। शाम के समय पुत्रदा एकादशी व्रत कथा सुनें और फलाहार करें। फिर अगले दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर पूजा करें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं तथा दान दक्षिणा दें। फिर पारण के समय व्रत खोलें।
भद्रावतीपुरी नगर में एक राजा सुकेतुमान थे। उनकी संतान नहीं थी, जिससे राजा और रानी दोनों दुखी थे। राजा इस बात से चिंतित थे कि उनका अंतिम संस्कार कौन करेगा और उनके पितरों का तर्पण कौन करेगा?
एक दिन वे वन की ओर गए। वे घने जंगल के बीच पहुंचे। उस समय वे प्यास से व्याकुल थे, जल की तलाश में एक तालाब किनारे पहुंचे। वहां उनको ऋषियों का एक आश्रम दिखा। जल ग्रहण करने के बाद वे आश्रम में गए और ऋषि-मुनियों को प्रणाम किया।
राजा ने ऋषियों से वेदपाठ करने का कारण पूछा। तब उन्होंने बताया कि आज पुत्रदा एकादशी है, जो व्यक्ति व्रत रखकर पूजा करता है, उसे संतान सुख की प्राप्ति होती है। तब राजा ने पुत्रदा एकादशी व्रत करने का निश्चय किया। पुत्रदा एकादशी को राजा ने व्रत रखा, बाल गोपाल विधिपूर्वक पूजा की। फिर उन्होंने द्वादशी को पारण किया। व्रत के परिणाम स्वरूप उनको एक सुंदर संतान की प्राप्ति हुई।