कांग्रेस की सियासत में यह कोई पहला मौका नहीं जब चुनावी सरगर्मी के बीच पार्टी को अपने ही घर के दिग्गज नेताओं के साथ जूझना पड़ रहा हो. पिछले साल बिहार चुनाव से ठीक पहले जी-23 नेताओं ने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर कांग्रेस के पूर्णकालिक अध्यक्ष और संगठन के चुनाव कराने की मांग उठाई थी, जिसके बाद सियासी भूचाल आ गया था. वहीं, अब बंगाल सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव की सियासी तपिश के बीच गुलाम नबी आजाद की अगुवाई में जी-23 नेताओं में से आठ नेताओं ने जम्मू में बैठक साफ-साफ कहा है कि वो कांग्रेस के साथ हैं, पर पार्टी के मौजूदा हालात उन्हें मंजूर नहीं हैं. ऐसे में जी-23 नेताओं की बैठक की टाइमिंग को लेकर कांग्रेस ने सवाल खड़े कर हैं.
गुलाम नबी आजाद सहित जी-23 के आठ नेताओं ने जम्मू में शांति सम्मेलन में भगवा पगड़ी पहनकर एक तरह से नई हलचल पैदा कर दी है. गुलाम नबी के अलावा भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कपिल सिब्बल, आनंद शर्मा, राज बब्बर, मनीष तिवारी, विवेक तन्खा सहित कुछ और नेता भी इस बैठक में शामिल रहे. गांधी ग्लोबल के इस मंच पर सोनिया और राहुल गांधी की तस्वीरें नदारद थीं. राजनीति विश्लेषक मानते हैं कि यह महज संयोग नहीं था बल्कि सोची समझी रणनीति के तहत गांधी परिवार के खिलाफ के संकेत हैं.
कांग्रेस पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र और अध्यक्ष पद के लिए चुनाव का मुद्दा उठाकर सोनिया की आंखों की किरकिरी बनने वाले आजाद ने अपने समर्थकों के साथ शनिवार को जम्मू से सोनिया-राहुल के खिलाफ बिगुल फूंका था. गांधी ग्लोबल फैमिली की ओर से आयोजित शांति सम्मेलन में कांग्रेस के लगातार कमजोर होने की बात कही थी. खुलेआम कहा गया कि वे हैं तो कांग्रेस है, सम्मेलन में मंच से यह भी कहा गया कि जब प्रधानमंत्री मोदी आजाद की तारीफ कर सकते हैं तो पार्टी को उनके अनुभवों का लाभ लेने में क्या परहेज है.
लंबे वक़्त से बागी तेवर अपना रहे कपिल सिब्बल ने शनिवार को सम्मेलन में कहा कि यह सच बोलने का मौका है और हम सच ही बोलेंगे. सच्चाई तो ये है कि कांग्रेस हमें कमज़ोर होती दिख रही है और इसीलिए हम इकट्ठा हुए हैं और पहले भी इकट्ठा हुए थे और इकट्ठा होकर हमें इसे मजबूत करना है. कपिल सिब्बल के अलावा आनंद शर्मा तमाम कांग्रेसी नेताओं ने गुलाम नबी आजाद के समर्थन में खुलकर खड़े होने की बात कही.
वहीं, इस घटनाक्रम के अगले दिन स्वयं गुलाम नबी आजाद ने पीएम मोदी की तारीफ में कसीदे पढ़े. आजाद ने रविवार को कहा कि उन्हें बहुत सारे नेताओं की बहुत सी अच्छी-अच्छी बातें पसंद आती हैं. जैसे कि हमारे प्राइम मिनिस्टर हैं, वो कहते हैं कि मैं बर्तन मांजता था और चाय बेचता था. सियासी तौर पर हम उनके खिलाफ हैं, लेकिन कम से कम असलियत नहीं छिपाते हैं. आपने अपनी असलियत छिपाई तो आप एक ख्याली और बनावटी दुनिया में रहते हैं.
कांग्रेस नेता और राज्यसभा सदस्य अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि जो-जो लोग रैली को संबोधित करने जम्मू गए हैं, जिन्होंने भाषण दिए हैं, वे बहुत ही सम्मानित और आदरणीय व्यक्ति हैं. कांग्रेस उन सबका बहुत आदर करती है और हमें गर्व है कि उनका बहुत लंबा जीवन (समय) कांग्रेस पार्टी में बीता है. वे सभी हमारे कांग्रेस परिवार का अभिन्न हिस्सा हैं. हालांकि, उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि कांग्रेस पार्टी यह समझती है कि जब पांच राज्यों में (विधानसभा) चुनाव हो रहे हैं, जिसमें कांग्रेस संघर्ष कर रही है तो ज्यादा उपयुक्त होता कि आजाद सहित सभी नेता इन प्रांतों में प्रचार करते और कांग्रेस का हाथ मजबूत करते तथा पार्टी को आगे बढ़ाते. सच्ची निष्ठा कांग्रेस के प्रति तभी होती, जब (ये) सभी लोग चुनावी राज्यों में प्रचार कर पार्टी को मजबूत करते.
साथ ही पंजाब प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने रविवार को कहा कि जो लोग कांग्रेस संगठन में सुधार का विरोध कर रहे हैं, वह न केवल पार्टी बल्कि देश का अहित कर रहे हैं. देश चाहता है कि वो कांग्रेस के संघर्ष की राजनीति में शामिल हो और आम आदमी की आवाज बुलंद करे. साथ ही सुनील जाखड़ ने कहा कि राज्यसभा के आरामदायक वातावरण से दूर जमीन पर उतरकर पार्टी के लिए संघर्ष किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेता अवसरवाद की राजनीति कर रहे हैं और वह ऐसे समय कर रहे हैं जब पांच राज्यों के चुनाव हो रहे हैं और कांग्रेस का हर कार्यकर्ता, दमनकारी केंद्र सरकार से ‘भारत के विचार’ की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ रहा है.
वरिष्ठ पत्रकार युसूफ अंसारी कहते हैं कि यह आजाद और उनके समर्थकों की कांग्रेस पर दबाव बनाने की रणनीति है. वह पार्टी में सम्मान एवं स्थान पाने के लिए दबाव बना रहे हैं. गांधी-नेहरू परिवार का व्यक्तित्व पहले करिश्माई था. सरकार में रहने पर परिवारवाद का दोष छिप जाता है, लेकिन लगातार चुनावी असफलताओं पर कांग्रेस में आत्ममंथन, आत्मचिंतन की जरूरत है और सबसे पहले कांग्रेस को एक पूर्णकालिक अध्यक्ष चाहिए. हालांकि, जम्मू की बैठक के बाद कांग्रेस की तरफ से असंतुष्टों के खिलाफ कोई कार्रवाई करने की संभावना नहीं है.
दरअसल पार्टी नहीं चाहती है कि इससे आने वाले चुनावों से लोगों का ध्यान भंग हो, जबकि विद्रोही पार्टी से अलग होने की बात नहीं कर रहे हैं. जी-23 के नेता ऐसे समय बात उठा रहे हैं कि जब बंगाल सहित पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, जो कांग्रेस के लिए काफी अहम माने जा रहे है. ऐसे में समय कांग्रेस दो मोर्च पर घिरी हुई है. एक तरफ कांग्रेस को चुनावी रण में बीजेपी के साथ दो-दो हाथ करने पड़ रहे हैं तो दूसरी तरफ उसे घर में ही अपने नेताओं से जूझ पड़ रहा है. ऐसे में देखना है कि कांग्रेस क्या सियासी कदम उठाती है?