आज भगवन बुद्धा जयंती है जिसे बुद्धा पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है. गौतम बुद्ध का जन्म ईसा से 563 साल पहले नेपाल के लुम्बिनी वन में हुआ. उनकी माता कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी जब अपने नैहर देवदह जा रही थीं तो उन्होंने रास्ते में लुम्बिनी वन में बुद्ध को जन्म दिया. कपिलवस्तु और देवदह के बीच नौतनवा स्टेशन से 8 मील दूर पश्चिम में रुक्मिनदेई नामक स्थान के पास उस काल में लुम्बिनी वन हुआ करता था.उनका जन्म नाम सिद्धार्थ रखा गया. सिद्धार्थ के पिता शुद्धोदन कपिलवस्तु के राजा थे और उनका सम्मान नेपाल ही नहीं, समूचे भारत में था. सिद्धार्थ की मौसी गौतमी ने उनका लालन-पालन किया, क्योंकि सिद्धार्थ के जन्म के 7 दिन बाद ही उनकी मां का देहांत हो गया था.
गौतम बुद्ध का मूल नाम सिद्धार्थ है. गौतम उनका गोत्र था. शाक्य वंश में जन्मे सिद्धार्थ का 16 वर्ष की उम्र में दंडपाणि शाक्य की कन्या यशोधरा के साथ विवाह हुआ. यशोधरा से उनको एक पुत्र मिला जिसका नाम राहुल रखा गया. बाद में यशोधरा और राहुल दोनों बुद्ध के भिक्षु हो गए थे. कहते हैं श्रीमद्भागवत महापुराण और विष्णुपुराण में हमें शाक्यों की वंशावली के बारे में उल्लेख पढ़ने को मिलता है. श्रीराम के 2 पुत्रों लव और कुश में से कुश का वंश ही आगे चल पाया. इसके अलावा कुश के वंश में ही आगे चलकर शल्य हुए, जो कि कुश की 50वीं पीढ़ी में महाभारत काल में उपस्थित थे. इन्हीं शल्य की लगभग 25वीं पीढ़ी में ही गौतम बुद्ध हुए थे. शल्य के बाद बहत्क्षय, ऊरुक्षय, बत्सद्रोह, प्रतिव्योम, दिवाकर, सहदेव, ध्रुवाश्च, भानुरथ, प्रतीताश्व, सुप्रतीप, मरुदेव, सुनक्षत्र, किन्नराश्रव, अंतरिक्ष, सुषेण, सुमित्र, बृहद्रज, धर्म, कृतज्जय, व्रात, रणज्जय, संजय, शाक्य, शुद्धोधन और फिर सिद्धार्थ हुए, जो आगे चलकर गौतम बुद्ध कहलाए. इन्हीं सिद्धार्थ के पुत्र राहुल थे. राहुल को कहीं-कहीं लांगल लिखा गया है. राहुल के बाद प्रसेनजित, क्षुद्रक, कुलक, सुरथ, सुमित्र हुए. इस तरह का उल्लेख शाक्यवंशी समाज की पुस्तकों में मिलता है. शाक्यवार समाज भी ऐसा ही मानता है.