कहते हैं कि श्रीकृष्ण के तीसरे गुरु घोर अंगिरस थे। ऐसा कहा जाता है कि घोर अंगिरस ने देवकी पुत्र कृष्ण को जो उपदेश दिया था वही उपदेश श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र में दिया था जो गीता के नाम से प्रसिद्ध हुआ। छांदोग्य उपनिषद में उल्लेख मिलता है कि देवकी पुत्र कृष्ण घोर अंगिरस के शिष्य हैं और वे गुरु से ऐसा ज्ञान अर्जित करते हैं जिससे फिर कुछ भी ज्ञातव्य नहीं रह जाता है। परंतु श्रीकृष्ण अर्जुन को गीता के अलावा और भी कई उपदेश दिए थे।
कहते हैं कि अनु गीता नाम से एक गीता है। इस गीता का ज्ञान श्रीकृष्ण ने तब दिया था जब पांडव युद्ध जीत गए थे। यह गीता भी श्रीकृष्ण द्वार अर्जुन को दिया गया वह ज्ञान है तो युद्ध के बाद दिया गया था। यह ज्ञान उस वक्त दिया गया था जब पांडव हस्तिनापुर में राज कर रहे थे।
अनुगीता एक प्राचीन संस्कृत ग्रंथ है जो महाभारत का ही एक हिस्सा है। अनुगीता का शाब्दिक अर्थ है गीता का अनु अर्थात गीता के परिशिष्ट के रूप में गीता। यह भगवद्गीता के नैतिक आधार पर आधारित है। कई ऐसे प्रश्न, संदेश और बातें हैं जो गीता में छूट गए थे उसका समावेश अनुगीता में मिलेगा।यह गीता वैशम्पायनजी जनमेजय को बताते हैं। जिन्होंने युद्ध की समाप्ति के बाद अर्जुन और श्रीकृष्ण को सुनकर याद किया था। वे महाभारत के कई संवादों और विवादों का उल्लेख करते हैं।
इस गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन को आत्मा, बुद्धि, इंद्रियरूप, ध्यान, पंचभूत, ऋषियों के संवाद, इतिहास की बातें आदि बताना। अनुगीता सिर्फ अर्जुन और श्रीकृष्ण का संवाद ही नहीं है। इसमें श्रीकृष्ण वसुदेव को महाभारत का प्रसंग और घटनाक्रम को बताते हैं। इसके अलावा इस गीता में युद्ध के बाद के कई घटनाक्राम जुड़े हैं जिस दौरान श्रीकृष्ण उपदेश देते हैं। इस गीता को पढ़ना भी रोचक है क्योंकि इसमें सिर्फ उपदेश नहीं है और भी बहुत कुछ है।
संदर्भ : महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 51