देवियों को समर्पित है शुक्रवार
शुक्रवार का दिन मां दुर्गा का दिन है। इस दिन मां दुर्गा की पूजा करने और उनके मंत्रों का जाप करने का विशेष महत्व होता है। आप शुक्रवार के दिन का आरंभ ‘ऊं श्री दुर्गाय नमः’ के जाप के साथ कर सकते हैं। मां दुर्गा का यह मंत्र मां लक्ष्मी, सरस्वती और काली तीनों शक्तियों की उपासना के लिए है। दुर्गा जी की पूजा के लिए सबसे पहले माता दुर्गा की मूर्ति उनका आवाहन करें। अब माता दुर्गा को स्नान कराएं। स्नान पहले जल से फिर पंचामृत से और वापिस जल से स्नान कराएं। अब माता दुर्गा को वस्त्र अर्पित करें। इसके बाद उन्हें आसन पर स्थापित करें, फिर आभूषण और पुष्पमाला पहनाएं। अब इत्र अर्पित करें व तिलक करें। तिलक के लिए कुमकुम, अष्टगंध का प्रयोग करें। इसके बाद धूप व दीप अर्पित करें। ध्यान रहे कि मां दुर्गा के पूजन में दूर्वा अर्पित नहीं की जाती है। मां को लाल गुड़हल के फूल अर्पित करें। 11 या 21 चावल चढ़ायें और श्रद्धानुसार घी या तेल के दीपक से आरती करें। अब नेवैद्य अर्पित करें। पूजन के पूरा होने पर नारियल का भोग अवश्य लगाएं।10-15 मिनट के बाद नारियल को फोड़े और उसका प्रसाद देवी को अर्पित करने के बाद सबमें बांट कर स्वयं भी ग्रहण करें।
मां लक्ष्मी की भी करें उपासना
शुक्रवार के दिन ही धन और सम्पन्नता की देवी मां लक्ष्मी की भी पूजा होती है। मां लक्ष्मी की पूजा सफेद या गुलाबी वस्त्र पहनकर करनी चाहिए। इनकी पूजा का उत्तम समय मध्य रात्रि होता है। मां लक्ष्मी की उसी प्रतिकृति की पूजा करनी चाहिए, जिसमें वह गुलाबी कमल के पुष्प पर बैठी हों। साथ ही उनके हाथों से धन बरस रहा हो। मां लक्ष्मी को गुलाबी पुष्प, विशेषकर कमल चढ़ाना सर्वोत्तम रहता है। कहते हैं मां लक्ष्मी के मन्त्रों का जाप स्फटिक की माला से करने पर वह तुरंत प्रभावशाली होता है। शुक्रवार को लक्ष्मी जी उपासना करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है।
संतोषी मां की पूजा से भी मिलेगा उत्तम फल
शुक्रवार को देवी के इस स्वरूप की भी पूजा होती है। सुख-सौभाग्य की कामना से संतोषी मां के 16 शुक्रवार तक व्रत किए जाने का विधान है। इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर घर की सफ़ाई इत्यादि पूर्ण कर लें। स्नानादि के बाद घर में किसी पवित्र जगह पर माता संतोषी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। उनके सम्मुख जल से भरा कलश रखें और उस के ऊपर एक कटोरा गुड़ चना भर कर रखें। माता के समक्ष घी का दीपक जलाएं, फिर अक्षत, फ़ूल, इत्र, नारियल, लाल वस्त्र या चुनरी अर्पित करें। देवी को गुड़ चने का भोग लगायें और कथा पढ़ कर आरती करें। कथा समाप्त होने पर हाथ का गुड़ चना गाय को खिला दें। कलश पर रखे गुड़ चने का प्रसाद सभी को बांटें। कलश के जल को घर में सब जगहों पर छिड़कें और बचा हुआ जल तुलसी की क्यारी में डाल दें। ध्यान रहे इस व्रत को करने वाले को ना तो खट्टी चीजें हाथ लगाना है और ना ही खाना है।