हिंदू धर्मशास्त्रों में प्रकृति की पूजा का विधान बताया गया है। नदियों कों मां का दर्जा देकर उनको पूजनीय बनाया गया है। वृक्षों में देवता का वास बताकर उन संस्कृति का अहम हिस्सा बनाया और उनको काटने का निषेध किया है। कुछ ऐसा ही संदेश पर्वतों और प्रकृति से जुड़ी दूसरी वस्तुओं के लिए भी दिया गया है। सनातन संस्कृति में विभिन्न वृक्षों के रोपण और उनके संरक्षण से होने वाले फायदों के बारे में बताया गया है।
शिवपुराण में भीष्म को महर्षि पुलस्त्य ने विभिन्न वृक्षों के बारे में बताया है और कहा कि वृक्ष पुत्रहीन व्यक्ति को पुत्र होने का वरदान देते है।
अशोक के वृक्ष के रोपण से शोक का नाश होता है।
नीम के वृक्ष से दीर्घायु प्राप्त होती है।
अनार के वृक्ष से पत्नी की प्राप्ति होती है।
खैर का वृक्ष लगाने से आरोग्य की प्राप्ति होती है।
बेल के वृक्ष में भगवान शिव का वास होता है।
गुलाव के पौधे में देवी पार्वती का निवास है।
अशोक के वृक्ष में अप्सराओं और मोगरे की बेल में गंर्धव का निवास बताया गया है।
बेंत का वृक्ष लुटेरों को भय देता है।
चंदन के वृक्ष से पुण्य और कटहल के पेड़ से लक्ष्मी प्राप्त होती है।
ताड़ का वृक्ष संतान का नाश करता है।
मौलसिरी से कुल की वृद्धि होती है।
केवड़े के पौधे से शत्रु का नाश होता है।
इसके साथ ही जो लोग पौधे लगाकर उनकी देखभाल करते हैं उनको परलोक में सर्वश्रेष्ठ प्राप्त होता है।