पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि आयुर्वेद शल्य (सर्जरी) को लेकर शंका करना सिर्फ अज्ञानता और समाज में भ्रम फैलाना है। महर्षि सुश्रुत को शल्य चिकित्सा का जनक कहा जाता है। इसलिए आयुर्वेदिक चिकित्सकों को मरीजों को ठीक करने के लिए प्रयास करना चाहिए।
बता दें, सरकार द्वारा आयुर्वेद डाॅक्टरों को सर्जरी की इजाजत देने के विरोध में शुक्रवार को देशभर के डाॅक्टरों की हड़ताल के बाद आचार्य बालाकृष्ण का यह बयान महत्वपूर्ण है। इसमें उन्होंने आयुर्वेद में सर्जरी की प्राचीन पद्धतियों व उनके महत्व के बारे में विस्तार से जानकारी दी है।
आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि शल्य चिकित्सा आयुर्वेद में वर्णित प्राचीन चिकित्सा विधि है। प्राचीन अष्टांग आयुर्वेद में सर्जरी को मुख्य चिकित्सा विधि के रूप में उल्लेख किया गया है। इनमें शल्य, शालक्य, काय चिकित्सा, भूतविद्या, कौमारभृत्य, अगदतंत्रा, रसायनतंत्र, वाजीकरणतंत्र जैसी शल्य चिकित्सा हैं।
आयुर्वेद में हर मर्ज का इलाज, एनेस्थिसिया ऐलोपैथी चिकित्सा का अंग नहीं – आयुर्वेद विवि कुलपति डॉ. सुनील जोशी
उन्होंने बताया कि प्लास्टिक शल्य चिकित्सा, संधन क्रिया, जिह्ना, नेत्र, कर्ण, दंत, नासा और मुख से संबंधित सभी रोगों की शल्य चिकित्सा भी आचार्य सुश्रुत द्वारा वर्णित विधाओं का ही प्रचलन मात्र है।
पतंजलि योगपीठ में पिछले दस वर्षों में हजारों रोगियों का शल्य चिकित्सा से इलाज किया गया
उन्होंने कहा कि पतंजलि योगपीठ में पिछले दस वर्षों में हजारों रोगियों का शल्य चिकित्सा से इलाज किया गया है। इसमें बवासीर, भगंदर, परिकर्तिका, नाड़ीव्रण, पिनोडिनल, हर्निया, हाइड्रोसिल, मूत्र ग्रंथि रोग आदि की सर्जरी की जाती है।
उन्होंने कहा कि यानी भगंदर यानी फिश्चुला का आधुनिक चिकित्सा में एलोपैथी में भी इलाज नहीं है। एम्स, मेदांता, अपोलो, मैक्स, फोर्टिस जैसे अस्पतालों से मरीज पतंजलि अस्पताल में इलाज करवाने आते हैं।
उन्होंने कहा कि पतंजलि आयुर्वेद महाविद्यालय में परास्नातक सर्जरी शिक्षा दी जाती है। कई योग्य डॉक्टर रोगियों की सेवा कर रहे हैं। आयुर्वेद में एनेस्थीसिया और एंटीबायोटिक के सवाल पर आचार्य ने कहा कि एलोपैथी में भी एनेस्थीसिया नहीं है और वह अलग विभाग है। जबकि आयुर्वेदिक में कारगर एंटीबायोटिक हैं।