वोटिंग के समय लगाईं जाने वाली स्याही के पीछे का असली सच, क्या है आप जानते है…

चुनाव के दौरान मतदान करते समय मतदाताओं की ऊंगली पर एक खास तरह की स्याही लगाई जाती है। ऐसे में सभी राजनीतिक पार्टियां अपनी जीत दर्ज कराने के लिए पूरे ज़ोर-शोर से जुट गयी हैं।
लेकिन इन सब चीजों में सबसे जो खास चीज होती हैं वो वोट डालने के बाद अंगुली पर लगने वाला स्याही हैं।  तो आज हम आपको बताने जा रहे है वोटिंग के समय लगाईं जाने वाली स्याही के पीछे का असली सच। देश का पहला आम चुनाव 1952 में हुआ था और उस समय तक उंगली में स्याही लगाने का कोई रिवाज नहीं था|
लेकिन जब चुनाव आयोग को इस बात की शिकायत मिली की कुछ लोग एक बार वोट देने के बावजूद दोबारा वोट दे रहे हैं तो फिर चुनाव आयोग इसे रोकने के लिए एक विकल्प के बारे में सोचने लगी और फिर चुनाव आयोग ने अमिट स्याही के इस्तेमाल के बारे में सोचा और फिर चुनाव आयोग ने नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी ऑफ इंडिया से एक ऐसी स्याही बनाने की बात कि जिसे पानी या फिर किसी अन्य केमिकल से ना मिटाया जा सके। साल 1962 के चुनाव में पहली बार अमिट स्याही का इस्तेमाल किया गया और तब से लेकर अब तक उस स्याही का इस्तेमाल किया जाता हैं। यह स्याही ही इस बात की गारंटी होता हैं कि वोटर ने वोट डाला हैं और यह निशान 15 दिनों से पहले नहीं मिटता हैं। बता दें कि इस स्याही को बनाने का तरीका गुप्त रखा गया था ताकि कोई इसे मिटाने का तरीका ना निकाल सके। यह स्याही धूप ले संपर्क में आने के बाद और भी पक्की हो जाती हैं| इस स्याही का इस्तेमाल सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि कई देशो में किया जाता हैं। इनमें तुर्की, नाइजीरिया, अफगानिस्तान, दक्षिण अफ्रीका, नेपाल, घाना, कनाडा, मालदीव, कंबोडिया और मलेशिया देश भी शामिल हैं।

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