विधि आयोग ने आपराधिक मानहानि का कानून बनाए रखने की सिफारिश की है। आयोग ने कहा है कि यह महत्वपूर्ण बात ध्यान रखने वाली है कि प्रतिष्ठा का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आता है, जो कि जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का एक पहलू है। इसे अपमानजनक भाषण और आरोपों से संरक्षित किया जाना चाहिए।
आयोग ने यह बात आपराधिक मानहानि के कानून पर गुरुवार को सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कही है। मालूम हो कि आपराधिक मानहानि के मुकदमों में देश के कई नेता अदालतों का चक्कर लगा रहे हैं। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को आपराधिक मानहानि में ही गुजरात की अदालत से सजा हुई थी, जिसके बाद उनकी संसद सदस्यता चली गई थी और सुप्रीम कोर्ट के दोषसिद्धि पर स्थगन आदेश के बाद बहाल हुई है।
आपराधिक मानहानि के कई केस अदालतों में लंबित
राहुल गांधी के खिलाफ आपराधिक मानहानि के कई केस अदालतों में लंबित हैं। इसके अलावा आम आदमी पार्टी के नेता भी आपराधिक मानहानि के मुकदमों का सामना कर रहे हैं। विपक्षी दलों के नेताओं के खिलाफ आपराधिक मानहानि के मुकदमे दर्ज होने के बाद इस कानून पर कई बार सवाल उठाए गए। अभिव्यक्ति की आजादी के मौलिक अधिकार पर हमला कह कर भी इसका विरोध हुआ है।
हालांकि विधि आयोग ने आपराधिक मानहानि के कानून पर गुरुवार को सरकार को सौंपी अपनी 285वीं रिपोर्ट में देश के आपराधिक कानून में इसे बनाए रखने की सिफारिश करते हुए प्रतिष्ठा के अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी के बीच संतुलन बनाने पर भी विचार किया है।
मानहानि के बयान पर आपराधिक मुकदमा चलाना अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ
कानून मंत्रालय ने अगस्त 2017 में यह मामला विचार के लिए विधि आयोग को भेजा था, जिस पर व्यापक विचार के बाद आयोग ने अपनी रिपोर्ट दी है। आयोग ने कहा है कि यह तर्क दिया जाता है कि मानहानि के बयान पर आपराधिक मुकदमा चलाना अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ है। हालांकि, मानहानि को अपराध बनाने के पीछे सिर्फ प्रतिष्ठा की सुरक्षा ही एकमात्र प्रेरणा नहीं है, बल्कि सामाजिक अराजकता को रोकना भी महत्वपूर्ण चीज है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रतिष्ठा अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) का अभिन्न पहलू है। इसे सिर्फ इसलिए खराब करने की इजाजत नहीं दी जा सकती कि किसी के पास अभिव्यक्ति की आजादी है। अभिव्यक्ति की आजादी की कीमत पर दूसरे की भावनाएं नहीं आहत की जा सकतीं। रिपोर्ट में कहा गया है कि कोई भी अधिकार संपूर्ण नहीं है। दोनों अधिकारों के बीच संतुलन बनाया जाना चाहिए, ताकि समाज शांति और सौहार्द से रह सके।
भाषण का कोई रूप आमतौर पर अवैध नहीं होना चाहिए
भारत में विभिन्न भाषाओं और विचारों के लोग रहते हैं। प्रतिष्ठा एक ऐसी चीज है जो देखी नहीं जा सकती, सिर्फ अर्जित की जाती है। यह एक ऐसी संपत्ति है जो जीवनभर में अर्जित होती है और एक सेकेंड में नष्ट हो जाती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भाषण का कोई रूप आमतौर पर अवैध नहीं होना चाहिए जब तक कि बहुत विशिष्ट परिस्थितियां न हों। वास्तव में ऐसा करते समय बहुत सावधानी बरतने की जरूरत है। बयान केवल तभी अवैध होना चाहिए जहां इसका उद्देश्य पर्याप्त नुकसान पहुंचाना हो और जब ऐसा नुकसान हो।
आयोग ने इसकी सजा के बारे में कहा है कि भारतीय न्याय संहिता 2023 में अतिरिक्त सजा के रूप में सामुदायिक सेवा का प्रविधान जोड़ा गया है। यह कानून अपने आप में एक संतुलनकारी ²ष्टिकोण देता है, जिसमें इसने पीडि़त के हितों की रक्षा की है और सामुदायिक सेवा की वैकल्पिक सजा देकर दुरुपयोग की गुंजाइश को भी खत्म कर दिया है।
22वें विधि आयोग ने रिपोर्ट में कही ये बात
जस्टिस ऋतुराज अवस्थी की अध्यक्षता वाले 22वें विधि आयोग ने रिपोर्ट में कहा है कि कानून मानता है कि प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाना न केवल एक व्यक्ति पर हमला है बल्कि पूरे समाज पर आरोप है। इसके लिए अपराधी को पश्चाताप के रूप में समुदाय की सेवा करने का दंड दिया जा सकता है।
आयोग ने कहा है कि कानून में इस सजा को शुरू करके भारतीय कानून ने किसी की प्रतिष्ठा और अभिव्यक्ति की आजादी के बीच संतुलित दृष्टिकोण दिखाया है। इसलिए आयोग आपराधिक मानहानि को एक अपराध के रूप में कानून में बरकरार रखने की सिफारिश करता है।
भारी पड़ सकता है सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना
सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना अब उपद्रवियों को भारी पड़ सकता है। विधि आयोग सिफारिश कर सकता है कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने में शामिल लोगों को नुकसान के बराबर धनराशि जमा करने के बाद ही जमानत मिलनी चाहिए। समझा जाता है कि कानून में बदलाव की सिफारिश करते हुए विधि आयोग सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने में शामिल लोगों के लिए कड़े जमानत प्रविधानों का प्रस्ताव कर सकता है।
आयोग का मानना है कि यदि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने में शामिल लोग नष्ट की गई संपत्ति के मूल्य के बराबर राशि का भुगतान करते हैं, तो यह दूसरों को इस तरह का काम करने से रोकेगा। 2015 में सरकार ने कानून में संशोधन का प्रस्ताव दिया था, लेकिन बिल नहीं लाया जा सका। विधि आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के कुछ निर्देशों और कुछ उच्च न्यायालयों के निर्णयों की पृष्ठभूमि में इस विषय पर विचार-विमर्श शुरू किया है।