राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की बेटी रोहिणी आचार्य संसदीय चुनाव हार कर विदेश लौट चुकी हैं। कोई आश्चर्य नहीं होगा कि वह अगले साल बिहार विधानसभा चुनाव में कमर कसकर उतरें। पिता की एंजियोग्राफी के बाद रोहिणी ने क्या लिखा?
पूर्व मुख्यमंत्री व राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की बेटी रोहिणी आचार्या ने काफी लंबा पोस्ट लिखा है। पिता की एंजियोग्राफी के बाद रोहिणी आचार्य एक बार फिर से कमर कसती हुई नजर आ रही हैं। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि लोकसभा में हार के बाद रोहिणी विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमा सकती हैं। हालांकि, राजद या लालू परिवार की ओर से अब तक इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है लेकिन रोहिणी के सोशल मीडिया पोस्ट को पढ़कर लोग यह कयास लगा रहे हैं कि वह चुनावी मैदान में उतर सकती हैं। रोहिणी ने भाजपा और जदयू के नेताओं का नाम लिए बिना उन्हें सामंती सोच वाला बताकर उनपर हमला भी बोला।
रोहिणी ने लिखा कि सामाजिक, आर्थिक न्याय की अवधारणा के क्रियान्वयन के लिए हिमालय के समान अडिग और लोकतंत्र एवं आवाम की बेहतरी के लिए दृढ-प्रतिज्ञ देव-तुल्य मेरे पिता पर मेरी आस्था ईश्वर से भी अधिक है। मैं सौभाग्यशाली हूँ कि ईश्वर ने मुझे लालू जी जैसे विराट व्यक्तित्व की बेटी होने का सौभाग्य प्रदान किया है l राजनीतिक परिवेश में पलने-बढ़ने, अपने पिता के सानिध्य में और अपनी अल्प राजनीतिक सक्रियता के काल में मैंने ये बखूबी समझा है कि गरीबों, शोषितों वंचितों, दलितों और हाशिए पर खड़ी आबादी को 1990 के बाद से मिली ताकत का राजनीतिक इजहार ही मेरे पिता लालू जी की राजनीति का सार है।
सामंती सोच के संक्रमण से ग्रसित वर्ग को लालू पसंद नहीं
रोहिणी ने आगे लिखा कि लालू जी के प्रयासों की वजह से ही बिहार में लोकतंत्र से लोकतांत्रिक व्यवस्था से पिछड़ों का, वंचितों का, दलितों का गहरा जुड़ाव प्रभावी हुआ और ऐसे ही जुड़ाव के कारण हमारे देश में लोकतंत्र चल भी रहा हैl दीगर बात तो ये है कि जो संकुचित, सामंती सोच के संक्रमण से ग्रसित वर्ग है, जो बदलाव की दिखाऊ बातें तो करता है, लेकिन यथार्थ से भागता है। उसे यह बिल्कुल अच्छा नहीं लगता कि कोई भैंस चरानेवाला जन नेता बन देश, समाज व् राजनीति को नयी दिशा दे। हाशिए पर खड़े किए गए समूह-समुदाय से आने वालों को आमजनों की अगुवाई करने का मौका दे।
चप्पल-जूता सीने वाले के बेटे को विधायक-मंत्री बनाया
राजद नेत्री ने आगे लिखा कि लालू जी ने किसी चप्पल-जूता सीने वाले के बेटे को विधायक और मंत्री बनने का अवसर प्रदान किया। उन्हें मंत्रालय-शासन-सरकार के संचालन की जिम्मेदारी की। किसी पत्थर तोड़ने वाली महिला को सांसद बना वंचितों को मुख्यधारा से जोड़ने की कोशिश की। किसी कपड़ा इस्तरी करने वाली महिला को उच्च सदन की सदस्य के तौर पर नीति-निर्धारक की भूमिका निभाने का दायित्व दिया। इस यथार्थ से कोई विवेकशील इंसान इनकार नहीं कर सकता कि पिछड़े, दलित, गरीब वर्ग और अल्पसंख्यकों की सबसे बड़ी राजनैतिक जीत सांसद, नेता प्रतिपक्ष, मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री के रूप में लालू जी ही थे और आज भी लालू जी इनका गौरव बोध हैं।
पिछड़े-गरीब-दलित वर्ग को पहली बार पहचान दिलाया
उन्होंने लिखा कि लालू जी ने ही पिछड़े-गरीब-दलित वर्ग को पहली बार खुद के रूप में सत्ता व सियासत का वो चेहरा दिया, जो खुद एक गरीब और पिछड़े की संतान हैं। जो उनकी ही तरह जीते हैं, उनकी भाषा में ही बातें करते हैं, उनके बाजू में बैठ उनकी समस्याओं को सुनते हैं। अपने चुनाव अभियान और पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र में प्रचार-अभियान के दौरान आम जनता के बीच जा कर सीधे संवाद के क्रम में मैंने ये अच्छी तरह से जाना और समझा कि हाशिए और समाज के अंतिम पायदान पर खड़ी आबादी स्पष्ट तौर पर ये मानती है कि लालू जी के बगैर राजनीति में उनकी भागीदारी अधूरी हैl इस सच को भी नकारा नहीं जा सकता कि लालू जी ने ही ये साबित कर दिखाया कि राजनीति महज सत्ता तक ही सीमित नहीं है, बल्कि समाज को समझने और उसे बदलने का उपकरण भी है l
लालू जी का कद हिमालय की ऊंचाई के समान बरक़रार है
राजद नेत्री ने आगे लिखा कि आज के दौर की राजनीति का सबसे प्रचलित शब्द है ‘विकास’ लेकिन सतही विकास और यथार्थवादी विकास में बड़ा भेद है l व्यापक सन्दर्भ में विकास की परिभाषा पिछले चार दशकों के दौरान काफी बदल गई है। अब विकास को समाज में स्वतंत्रता के विस्तार के संदर्भ में ज्यादा समझने और देखने की जरूरत है । ऐसे में सड़क और संरचनाओं का निर्माण अगर विकास है, तो दबे और बुनियादी अधिकारों से वंचित समूहों की स्वतंत्रता में विस्तार उससे कहीं बड़ा विकास है। इसके मद्देनजर ही लालू जी की प्रासंगिकत , लालू जी का योगदान औरों से ज्यादा है और इसी सामाजिक, वैचारिक, राजनीतिक यथार्थ की वजह से तमाम दुष्प्रचारों, प्रतिशोधात्मक कानूनी पचड़ों में फंसाये जाने के बावजूद लालू जी का कद हिमालय की ऊंचाई के समान बरक़रार है l