विकास दुबे एनकाउंटर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जांच कमेटी के गठन का आदेश दे दिया है. कोर्ट ने कहा कि जल्द से जल्द सरकार नोटिफिकेशन जारी करें और कमेटी एक हफ्ते में जांच शुरू कर दे. जांच कमेटी दो महीने के अंदर अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंप दे.
सबसे पहले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हमने रिटायर्ड जस्टिस बीएस चौहान से इलाहाबाद से कानपुर जाने की अपील की थी, ताकि वह जांच कमेटी की अध्यक्षता कर सके.
उन्होंने कोरोना के खतरे को दरकिनार करते हुए कानपुर जाने की अपील मान ली है. इस कमेटी में पूर्व आईपीएस अफसर केएल गुप्ता को भी शामिल किया गया है.
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि हमने जांच समिति के संदर्भ की शर्तों को बदल दिया है. अब पुलिस अधिकारियों की हत्या की घटनाओं में पूछताछ करना है.
इस पर सीजेआई एसए बोबडे ने कहा कि क्या आप कह रहे हैं दुबे को मारा गया. इस पर एसजी ने कहा कि हम इसे कथित हत्या में बदल देंगे. 2, 8 और 10 जुलाई की घटनाओं में पूछताछ की जाएगी.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जिन परिस्थितियों में विकास दुबे को जमानत या पैरोल पर रिहा किया गया था, इसमें अधिकारियों की भूमिका का पता लगाने के लिए जांच की जाएगी. सीजेआई ने कहा कि हम इसे सभी का सबसे महत्वपूर्ण कारक मानते हैं. उसे जेल से कैसे रिहा किया गया.
सुप्रीम कोर्ट को सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि अगर कोर्ट चाहे तो हम संदर्भ की शर्तों को व्यापक बना सकते हैं. इस पर सीजेआई एसए बोबडे ने कहा कि इस मामले में अधिकारियों की भूमिका और निष्क्रियता की जाँच करें. इस पर एसजी ने कहा कि पूछताछ की जाएगी कि क्या जमानत रद्द करने के प्रयास किए गए थे.
सीजेआई एसए बोबडे ने पूछा कि वह घटना जिसमें विकास दुबे पर पुलिसकर्मियों की हत्या करने का आरोप लगाया गया है, अन्य आरोपी भी हैं, उनकी सुनवाई नहीं होनी चाहिए? इस पर एसजी ने कहा कि उनमें से कुछ भाग गए हैं और उन्हें गिरफ्तार किया जाना बाकी है. ये जांच आयोग को प्रभावित नहीं करेगा.
याचिकाकर्ता के वकील घनश्याम उपाध्याय ने कहा कि राज्य के पदाधिकारियों की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं. जस्टिस चौहान का नाम क्यों सुझाया गया है. हमने 12 जजों के नाम सुझाए थे. इस पर सीजेआई ने कहा कि हम जस्टिस की पसंद खोजने के लिए उन्हें दोष नहीं दे सकते.
याचिकाकर्ता के वकील घनश्याम उपाध्याय ने कहा कि हमें जांच कमेटी में जस्टिस शशिकांत और डीजीपी को शामिल करने पर आपत्ति है.
राज्य के अधिकारियों को कमेटी का हिस्सा नहीं होना चाहिए. समिति में केवल बाहर के लोग हों. इस पर सीजेआई ने कहा कि हैदराबाद मामले में यही समस्या थी, जो हम चाहते थे कि आयोग दिल्ली में बैठे, लेकिन हमने पाया कि सारे सबूत तेलंगाना में हैं. जब यूपी में सबूत हैं तो आयोग को दिल्ली में क्यों बैठना चाहिए?