आज के समय ऐसा कोई भी नहीं जिसे पैसे की जरुरत नहीं, दिन रात इन्सान अच्छे सुख सुवधा के लिए इन्सान पैसे कमाता और महनत करता है. मगर हर इन्सान की एक जैसी किस्मत नहीं होती. मगर आज हम आपको ऐसा सरल उपाय बताने जा रहे जिससे आप भी मालामाल बन सकते है. हर इंसान की श्रद्धा ईश्वर पर होती है और इसी विश्वास के कारण वह सभी ईश्वर की अराधना करते हैं। भगवान भी सबकी सुनते हैं और वह अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूरी करते हैं लेकिन वह व्यक्ति सच्चे दिल से ईश्वर की आराधना करता है तो उसे बहुत अच्छा फल मिलता है जिसकी वह कल्पना भी नहीं कर सकता है।
बताते चले घर के निर्माण का कार्य शुरू कराने से पहले भूमि पूजन और नींव पूजन किया जाता है। जब भूमि पूजन हो जाए तब सबसे पहले उत्तर, पूर्व या ईशान कोण में नल और भूमिगत टैंक का काम पूरा करना चाहिए। इसके बाद इसी नल के पानी से घर के निर्माण का काम शुरू करना चाहिए। माना जाता है कि ऐसा करने से घर के निर्माण कार्य के दौरान कभी पैसों की कमी नहीं होती है।
यहां रखें निर्माण सामग्री
भवन निर्माण में प्रयुक्त होनेवाली सामग्री जैसे, सीमेंट, ईंट, पत्थर, लोहा, टाइल्स आदि चीजें भूखंड के दक्षिण-पश्चिम या नैऋत्य भाग में रखें। उत्तर-पूर्व या ईशान कोण का प्रयोग इस काम के लिए कभी न करें।
नींव की खुदाई का काम
नींव खोदना हमेशा प्लॉट के ईशान कोण (उत्तर और पूर्व का कोना) से शुरू करना चाहिए। ईशान कोण से शुरू करके वायव्य कोण यानी उत्तर और पश्चिम के कोने तक जाना चाहिए। दूसरी तरफ ईशान से अग्नेय कोण यानी पूर्व और दक्षिण के कोने तक नींव खोदनी चाहिए। अंत में अग्नेय कोण से खुदाई शुरू कर नैऋत्य पर खत्म करें।
नींव की भराई का काम
नींव की भराई का काम नैऋत्य कोण (दक्षिण पश्चिम का कोना) से शुरू करें और फिर अग्नेय कोण तक ले जाएं। इसके बाद वायव्य कोण से भराई का काम शुरू करें और नैऋत्य कोण तक ले जाएं। इसके बाद अग्नेय कोण से ईशान की तरफ ले जाएं और फिर अंत में वायव्य कोण से ईशान की तरफ नींव की भराई का काम करें।
ऐसे करें भवन की दीवारों का निर्माण
भवन की दीवारों का निर्माण कार्य भी नींव के निर्माण के क्रम में ही करना चाहिए। जब शाम के समय चुनाई का काम बंद होने को हो तो इस बात का विशेष ध्यान रखें कि उत्तर और पूर्व दिशा की दीवारें कभी भी दक्षिण-पश्चिम की दीवारों से ऊंची ना हो।
इसे रखें सबसे ऊंचा और नीचा
भवन का निर्माण कार्य कराते समय ईशान कोण को हमेशा गहरा या नीचा रखना चाहिए और नैऋत्य कोण यानी दक्षिण और पश्चिम का कोना हमेशा बाकी कोनों से ऊंचा होना चाहिए।