सालभर दीवाली का बेसब्री से इंतजार किया जाता है और दीवाली की तैयारियों की जिम्मेदारी आमतौर पर महिलाएं ही निभाती हैं। बात चाहे रिश्तेदारों और परिचितों को गिफ्ट देने की हो, या घर के लिए नई खरीदारी करने की और इससे भी अहम लक्ष्मी पूजन की, इन सभी चीजों में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वैसे भारतीय परंपरा में जहां गृहणी को लक्ष्मी माना जाता है, वहां भला इस जिम्मेदारी को गृहणी से बेहतर और निभा भी कौन सकता है। हर महिला चाहती है कि दीपावली पर उसके घर में पूजा विधि-विधान से संपन्न हो और मां लक्ष्मी की कृपा उनके परिवार पर बनी रहे।
हम अच्छी तरह जानते हैं कि इस बार अपनी दीवाली को स्पेशल बनाने के लिए आप जोर-शोर से तैयारियों में जुट गयी हैं। घर की साफ-सफाई के साथ आपने घर की सजावट और मेहमानों की अच्छी आवाभगत की आपने पूरी तैयारी कर ली होगी। आपको यह जानकर खुशी होगी कि कुछ आसान से वास्तु टिप्स अपनाने से आपकी यह दीवाली और भी खास हो सकती है। इससे आप वैभव देने वाले मां लक्ष्मी को प्रसन्नी कर अपने पूजन को और फलदाई बना सकती हैं।
मां लक्ष्मी की पूजा को बनाएं सफल
धन और वैभव देने वाली देवी लक्ष्मी की कृपा पाना भला कौन नहीं चाहता। जहां धन-धान्य और समृद्धि निवास करते हैं, वहां सुख और खुशियां खुद-ब-खुद आ जाते हैं। लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए महिलाएं दीवाली पर पूजन करती हैं, इस बार आपका पूजन फलदाई बने और आपके घर में वैभव विराजे, इसके लिए आइए वास्तु एक्सपर्ट नरेश सिंगल से जानते हैं कुछ अहम वास्तु टिप्स –
घर से अवांछित सामान जैसे कि पुराने कपडे़, जूते, डिब्बे आदि हटा दें। यह सामान नकारात्मक ऊर्जा का स्रोत होता है और आर्थिक अवसरों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए भली प्रकार से पूजन करना भी आवश्यक है। जिस कक्ष में पूजा स्थल बनाएं, वहां ताजा हवा व रोशनी का पर्याप्त प्रबंध होना चाहिए।
अपने प्रेम व देखरेख से मकान को घर बनाने वाली होती हैं महिलाएं। शास्त्रों में भी वर्णित है कि जिस घर में स्त्री का आदर-मान नहीं होता, वहां दरिद्रता वास करती है। ऐसे में अगर आप लक्ष्मी को प्रसन्न करना चाहती हैं तो सबसे पहले अपने घर की महिलाओं विशेष रूप से बुजुर्ग महिलाओं को पूरा आदर और सम्मान दें।
पूजन कक्ष में चमडे़ का सामान, जूते-चप्पस आदि न ले जाएं।
पूजा स्थल के लिए सर्वोत्तम स्थान ईशान कोण अर्थात उत्तर व पूर्व का समागम स्थल है।
पूजन में देवी-देवताओं की प्रतिमाओं के चित्रों को मृतकों और पूर्वजों के चित्रों के साथ ना रखें।
पूजन में अर्पण करने के लिए जहां तक संभव हो सके, ताजे फल व फूलों का ही उपयोग करें। भूमि पर गिरा हुआ फूल, जिसकी पंखुडियां टूटी हुई हों, आग में झुलसा हुआ फुल व सूंघा हुआ फूल पूजा में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
इन बातों का भी रखें ध्यान
अगर आप चाहती हैं कि पूजा भली प्रकार से संपन्न हो तो ध्यान दें कि बासी फूल, पत्ते व जल पूजा में इस्तेमाल नहीं करें। इस बात पर ध्यान दें कि तुलसी और गंगाजल कभी बासी नहीं होते।
वास्तु के अनुसार फल-फूल जैसे उगते हैं, उन्हें वैसे ही चढ़ाएं यानी उन्हें तोड़ें या काटें नहीं।
पूजन के दौरान ध्वनि का विशेष महत्वं है। शंख व घंटानाद न सिर्फ देवों को प्रिय है, बल्कि इससे वावावरण की शुद्धि भी होती है। यह वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित हो चुका है कि शंख की ध्वनि से बैक्टीरिया नष्ट होते हैं।
बड़ी प्रतिमाओं की स्थापना पूजा स्थल में न करें। गृहस्थ महिलाओं को अंगूठे के एक पर्व से लेकर एक बालिस्त तक की प्रतिमा की स्थापना घर में करनी चाहिए।
महिलाएं जब मासिक धर्म से हों, तो उन्हें रसोई बनाने से परहेज रखना चाहिए। अगर ऐसा संभव न हो तो, कोशिश करें कि वे चूल्हा कम से कम जलाएं यानी कि वे सब्जी काटने, आटा गूंछने जैसे कार्य कर लें और भोजन बनाने का कार्य कोई अन्य कर ले।
शास्त्रों में पूजा के पांच प्रकारों का वर्णन आता है- अभिगमन, उपादान, योग, स्वाध्याय व इज्या। पूजा स्थल की साफ-सफाई, देव प्रतिमा का प्रच्छाकल आदि अभिगमन कहलाता है। पूजन सामग्री फल-फुल, रोली, सुपारी अगरबत्ती जुटाने को उपादान कहते हैं। अपने इष्ट के ध्यान व स्मरण को योग, तथा जाप, मंत्रोच्चापर, शास्त्रों के अध्ययन को स्वाध्याय कहते हैं। उपरोक्त सभी प्रकारों से विधि पूर्वक अपने इष्ट का पूजन करना इज्या कहलाता है। इस प्रकार पूजन करना फलदाई होता है।