आपातकाल के दौरान अस्तित्व में आई हरिद्वार लोकसभा सीट का चुनावी इतिहास खासा रोचक रहा है। मौजूदा समय में सियासत के दो दिग्गज बसपा सुप्रीमो मायावती और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने यहां कड़वे अनुभव लेकर अपनी सियासत को मुकाम तक पहुंचाया। जबकि कांग्रेस महासचिव व पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को हरिद्वार की चुनावी मिठास ने केंद्रीय मंत्री और उसके बाद उत्तराखंड के सीएम के ताज तक पहुंचाया।
हरिद्वार लोकसभा सीट पर 1984 के आम चुनावों में जीते कांग्रेस के सुंदरलाल के निधन के कारण 1987 में उपचुनाव कराए गए। इस उपचुनाव में बसपा सुप्रीमो मायावती और लोक जनशक्ति पार्टी के शीर्ष नेता व मौजूदा केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने हरिद्वार से ताल ठोकी। यह वह दौर था जब बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम पार्टी की जड़े मजबूत करने में जुटे हुए थे। चुनावी राजनीति में बसपा अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष कर रही थी। मायावती की सियासी पहचान भी आज की तरह दमदार नहीं थी।
दूसरी ओर रामविलास पासवान बोफोर्स कांड को लेकर कांग्रेस के खिलाफ बने माहौल का हथियार लेकर चुनाव मैदान में उतरे। चुनाव प्रचार के दौरान मायावती व रामविलास पासवान ने पूरी ताकत लगाई। कांग्र्रेस को भी इन दोनों नेताओं की चुनौती बड़ी लगी, लेकिन उपचुनाव के नतीजे जब सामने आए तो कांग्र्रेस प्रत्याशी राम सिंह 1,49,377 मत लेकर 23,978 वोटों के अंतर से चुनाव जीत गए। मायावती दूसरे स्थान पर रही और उन्हें 1,25,399 मत मिले। रामविलास पासवान चौथे स्थान पर खिसक गए। पासवान को महज 34,225 वोट ही मिल पाए। इस उपचुनाव में यह दिलचस्प रहा कि एक निर्दलीय प्रत्याशी 39,780 मत लेकर तीसरे स्थान पर रहा। हरिद्वार से भले ही मायावती चुनाव हार गई, लेकिन इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और अपनी सियासी हैसियत को राष्ट्रव्यापी बना दिया। रामविलास पासवान ने इसके बाद हरिद्वार से किनारा किया और राजनीति के सफर में एक के बाद एक मंजिल हासिल करते हुए आगे बढ़ते चले गए।
कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के लिए हरिद्वार लोकसभा सीट टर्निंग प्वाइंट साबित हुई। अल्मोड़ा संसदीय सीट से लगातार हार रहे हरीश रावत को 2009 में हरिद्वार से लोकसभा चुनाव जीत मिलने के बाद सभी समीकरण उनके मुफीद हो गए। केंद्र की यूपीए सरकार में कैबिनेट मंत्री बने और उसके बाद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने। वर्तमान में भी हरीश रावत की सियासी कौड़ियां हरिद्वार के ईद-गिर्द ही रहती है।