पंजाब सरकार ने चार जुलाई को लैंड पूलिंग पाॅलिसी को लागू किया था। तब से इसका विरोध हो रहा है। 1600 से अधिक किसान और जमीन मालिक शपथ पत्र देकर सरकार का विरोध जता चुके हैं।
पंजाब की लैंड पूलिंग नीति के खिलाफ पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। याचिका में शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के नाम पर किसानों का शोषण करने का आरोप लगाया गया है।
मामले की गंभीरता को देखते हुए पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने 4 जुलाई को जारी की गई इस नीति को अगली सुनवाई पर अदालत में पेश करने का पंजाब सरकार को आदेश दिया है।
चार जुलाई को लागू की गई थी नीति
डेराबस्सी निवासी नविंदर सिंह ने बताया कि सरकार की 4 जुलाई को लागू की गई यह नीति कई कानूनी प्रावधानों की अवहेलना करती है, जिनमें सामाजिक व पर्यावरणीय प्रभाव आकलन, उचित मुआवजा और प्रभावित परिवारों के पुनर्वास जैसे अनिवार्य पहलू शामिल हैं। लुधियाना और मोहाली जिलों की उपजाऊ बहुफसली कृषि भूमि को शहरीकरण और विकास के नाम पर अधिग्रहित किया जा रहा है।
लुधियाना की 50 से अधिक गांवों की लगभग 24,000 एकड़ जमीन तथा औद्योगिक विस्तार के लिए 21,000 एकड़ भूमि को चिह्नित किया गया है। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह भूमि केवल किसानों की आजीविका का आधार नहीं है, बल्कि पंजाब की खाद्य सुरक्षा और राष्ट्रीय अन्न भंडार के लिए भी बेहद अहम है। नई नीति के जरिये भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में पारदर्शिता और उचित मुआवजा अधिनियम, 2013 के तहत निर्धारित प्रक्रियाओं को दरकिनार किया जा रहा है। सामाजिक व पर्यावरणीय मूल्यांकन और उपजाऊ भूमि की सुरक्षा की अनदेखी की गई है।
जबरन लागू कर रही सरकार
याची ने कहा कि ग्रेटर लुधियाना एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी जैसी एजेंसियां भारी विरोध के बावजूद जबरन इस नीति को लागू कर रही हैं। याचिकाकर्ताओं ने मांग की है कि हाईकोर्ट न केवल 4 जुलाई की अधिसूचना को रद्द करे, बल्कि 2013 की लैंड पूलिंग नीति को भी असांविधानिक घोषित करे। साथ ही कोर्ट से यह भी अपील की गई है कि राज्य सरकार को किसी भी प्रकार की नई कार्रवाई से रोका जाए। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस संजीव बेरी की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई 19 अगस्त तक स्थगित कर दी।