लखनऊ में ‘चिकन’ को मिली उड़ान तो ‘रेवड़ी’ को मिलेगी पहचान

संक्रमण काल में स्थानीय लोकल उत्पाद को बढ़ावा देने और उसके प्रचार को बढ़ाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान के बाद चिकन उद्योग को जहां एक नई उड़ान मिलने की उम्मीद है तो पारंपरिक लघु उद्याेग की श्रेणी में फल फूल रही रेवड़ी को भी इस एक नई पहचान मिली है। एक जिला एक उत्पाद में पहले से ही जगह बना चुके चिकन और जरदोजी से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीके से जुड़े करीब एक लाख से अधिक लोगों को इसका फायदा होगा। जिला उद्याेग केंद्र की ओर से युवाओं से आवेदन मांगे जा रहे हैं। स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए उन्हें प्राथमिकता दी जाएगी।

चिकन से जुड़े हैं एक लाख लोग

चिकन अौर जरजोदी का कारोबार राजधानी के मुख्य कारोबार में से एक है। एक जिला एक उत्पाद में न केवल इसे शामिल किया गया बल्कि इससे जुड़े एक लाख लोगों को फायदा पहुचाने का काम भी उद्योग विभाग से किया जा रहा है। लखनऊ का चिकन अपने आप में एक ब्रांड है। छोटे ओर बड़े व्यापारियों के साथ घरों में काम करने वाली महिलाएं भी कहीं न कहीं इससे जुड़ी हुई हैं। जिला उद्योग केंद्र के उपायुक्त मनोज चौरसिया ने बताया कि कैसरबाग स्थित कार्यालय में नई डिजाइनिंग के साथ ही बदलते चिकन के स्वरूप को संग्रहालय के रूप मेें संरक्षित किया गया है। उद्योग लगाने के लिए जिला उद्योग केंद्र की वेबसाइट जीएमडीआइसीएनयूसी.एनआइसी.आइएन पर आॅनलाइन आवेदन कया जा सकता है। युवा बेरोजगार ऑनलाइन स्वरोजगार की स्कीम के लिए भी आवेदन कर सकते हैं।

बंद कारखानों को मिलेगी संजीवनी

रकाबगंज, चारबाग और चौक सहित कई इलाके कभी रेवड़ी की कुंटाई से गुंजायमान हो उठते थे। स्थानीय स्तर पर उद्याेग का दर्जा न मिल पाने और सरकारी सहूलियत के अभाव में यह उद्योग अंतिम सांसे गिन रहा है। चारबाग के कारोबारी संजय कुमार ने बताया कि शहर में रेवड़ी बनाने के 150 छोटे बड़े कारखाने थे, लेकिन अब इनकी संख्या दो दर्जन के करीब ही बची है। रेवड़ी के काराेबारी अब दूसरे का काम करने लगे हैं। चारबाग मेें ही कारखाने बंद कर कारोबारियों ने होटल व लाॅज खोल लिए हैं।उपायुक्त ने बताया कि रेवड़ी के उद्योग को बढ़ावा देने के लिए उन्हें ट्रेनिंग के साथी आर्थिक मदद भी की जाएगी।

बंद कारखानों को मिलेगी संजीवनी

रकाबगंज, चारबाग और चौक सहित कई इलाके कभी रेवड़ी की कुंटाई से गुंजायमान हो उठते थे। स्थानीय स्तर पर उद्याेग का दर्जा न मिल पाने और सरकारी सहूलियत के अभाव में यह उद्योग अंतिम सांसे गिन रहा है। चारबाग के कारोबारी संजय कुमार ने बताया कि शहर में रेवड़ी बनाने के 150 छोटे बड़े कारखाने थे, लेकिन अब इनकी संख्या दो दर्जन के करीब ही बची है। रेवड़ी के काराेबारी अब दूसरे का काम करने लगे हैं। चारबाग मेें ही कारखाने बंद कर कारोबारियों ने होटल व लाॅज खोल लिए हैं।उपायुक्त ने बताया कि रेवड़ी के उद्योग को बढ़ावा देने के लिए उन्हें ट्रेनिंग के साथी आर्थिक मदद भी की जाएगी।

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