चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के अधिवेशन में राष्ट्रपति शी जिनपिंग की उस योजना पर हस्ताक्षर कर दिए गए जिसमें वह चीन के आधुनिकीकरण के अभियान को आगे बढ़ाते हए देश को घरेलू खर्च और तकनीक पर अपनी निर्भरता को मजबूती देते हुए विकसित करना चाहते हैं। लेकिन पार्टी ने इस दौरान एक असामान्य निर्णय लेते हुए साल 2035 के लिए विजन की रूपरेखा रखी। इस कदम से राष्ट्रपति जिनपिंग की स्वयं की भूमिका को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई हैं।
जिनपिंग ने अपने भविष्य को लेकर कभी कुछ नहीं कहा है, लेकिन पिछले कुछ सालों से ऐसे संकेत देते रहे हैं कि वह अपने दो कार्यकाल पूरे होने के बाद भी सत्ता छोड़ने वाले नहीं हैं। जिनपिंग का यह कार्यकाल साल 2022 में समाप्त हो रहा है। इन संकेतों में से एक साल 1982 में डेंग जियाओपिंग द्वारा लाए गए एक संवैधानिक मानक को हटाना था, जिसके अनुसार कोई भी व्यक्ति दो से अधिक कार्यकाल के लिए चीन का राष्ट्रपति नहीं बना रह सकता था।
इस कदम के बाद ऐसी चर्चाएं उठी थीं कि शी जिनपिंग आजीवन चीन के राष्ट्रपति बने रह सकते हैं। 67 वर्षीय शी जिनपिंग को पहले से ही कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक माओ जेडोंग के बाद पार्टी का सबसे ताकतवर नेता माना जाता है। राष्ट्रपति होने के साथ जिनपिंग के पास पार्टी महासचिव और सेना अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी है। डेंग जियाओपिंग सत्ता अवधि निर्धारण की यह व्यवस्था इसलिए लाए थे जिससे चीन की जनता निरंकुश शासन व्यवस्था से बची रहे।
राष्ट्रपति जिनपिंग को जब सामूहिक नेतृत्व की व्यवस्था को समाप्त करने के लिए पार्टी नेतृत्व मिला तो अधिवेशन में उन्होंने अपने अधिकार मजबूती से स्थापित किए थे। साल 2017 में हुई अधिवेशन बैठक में नेतृत्व की शक्तियां जिनपिंग के हवाले कर दी गई थीं। इस बैठक से पहले पार्टी और सेना में उनके कई विरोधियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। एक विश्लेषण के अनुसार, कमांडर इन चीफ जिनपिंग ने साल 2016 तक जनरल रैंक के 73 अधिकारियों को हटा दिया था और ऐसे अधिकारियों को आगे बढ़ाया था जो उनका समर्थन करते थे।
चीन की राजनीति के जानकार दक्षिण चीन सागर, हांगकांग, ताईवान और भारत के साथ सीमा पर उसकी आक्रमकता को जिनपिंग की महाशक्ति बनने की महात्वाकांक्षा से जोड़ते हैं। बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) जैसे महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट दूसरे देशों को चीन की अर्थव्यवस्था की ओर आकर्षित कर रहे हैं, जिसे चीन का अमेरिका को जवाब माना जा रहा है। इसके माध्यम से चीन के शहरों को 5जी और आर्टीफिशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से स्मार्ट सिटी में विकसित किया जा रहा है।
चीन की इस रणनीति की सफलता को पिछले सप्ताह प्रदर्शित किया गया था जब अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने श्रीलंका को चीन के खिलाफ गठबंधन में भागीदार बनाने का प्रयास किया था। इस संबंध में श्रीलंका के राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे ने कथित तौर पर अमेरिका से कहा था कि वह किसी एक देश का पक्ष नहीं लेना चाहते हैं, खास तौर पर तब जब चीन सालों से यहां अरबों डॉलर का निवेश कर रहा है।