राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चुनाव नतीजो के खिलाफ कानूनी प्रचार अभियान छेड़ा

डोनाल्ड ट्रंप और उनकी रिपब्लिकन पार्टी राष्ट्रपति चुनाव में अपनी हार ना मानने पर अड़े हुए हैं। पहले कुछ विश्लेषकों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया था। लेकिन जिस तरह ट्रंप ने चुनाव नतीजे के खिलाफ कानूनी और प्रचार अभियान छेड़ दिया है और अमेरिका में जैसा सामाजिक तनाव का माहौल बनता जा रहा है, उसे देखते हुए अब ट्रंप के तौर-तरीकों से गंभीर चिंता पैदा होने लगी है। पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा है कि अपनी ऐसी हरकतों से ट्रंप ने अमेरिकी लोकतंत्र की छवि को जितना नुकसान पहुंचाया है, उतना इसके पहले किसी ने नहीं किया।  

   अब ये अंदेशा गहरा गया है कि ट्रंप सचमुच सत्ता में बने रहने की कोशिश करेंगे। चुनाव नतीजा सामने आने के तुरंत बाद ट्रंप के अटार्नी जनरल विलियम बार ने सरकारी अभियोजकों को चुनाव धांधली की जांच करने का अधिकार दे दिया था। इससे नाराज होकर अमेरिका के न्याय मंत्रालय के चुनाव अपराध शाखा प्रमुख ने इस पद का त्याग कर दिया है।

जबकि रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से अलग- अलग राज्यों में बड़ी संख्या में चुनावी धांधली की जांच कराने की याचिकाएं दायर कर दी गई हैं। कानून विशेषज्ञों का मानना है कि इसके बावजूद ट्रंप के राष्ट्रपति बने रहने की संभावना न्यूनतम है। ये दीगर बात है कि उनके इस जिद्दी रुख से समाज में तनाव बढ़ रहा है।

अमेरिका की चुनाव प्रणाली के मुताबिक इलेक्ट्रोरल कॉलेज की बैठक 14 दिसंबर को होती है, जिस रोज औपचारिक रूप से राष्ट्रपति का चुनाव होता है। इलेक्ट्रोरल कॉलेज के लिए हर राज्य से सदस्य वहां उम्मीदवारों को मिले वोट के हिसाब से तय होते हैं। इलेक्ट्रोरल कॉलेज में 538 सदस्य होते हैं। यानी किसी उम्मीदवार को विजयी होने के लिए कम से कम 270 सदस्यों के समर्थन की जरूरत होती है। अब सभी राज्यों से परिणाम सामने आ चुके हैं। इसके मुताबिक डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडन के समर्थक 306 सदस्य चुने गए हैं।

विश्लेषकों का कहना है कि बाइडन का निर्वाचन तभी रुक सकता है, अगर ट्रंप की याचिकाओं की वजह से कम से कम तीन प्रमुख राज्यों के नतीजे पलट जाएं। लेकिन इसकी संभावना नहीं है। लेकिन रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से ये तर्क आगे बढ़ाया गया है कि अगर मतदान विवादास्पद साबित हो जाता है, तो फिर इलेक्ट्रोरल कॉलेज के सदस्य मनोनीत करने की जिम्मेदारी राज्य की विधायिका पर आ जाएगी।

मिशिगन, विस्कोंसिन और पेनिसिल्वेनिया राज्यों से बाइडन जीते हैं, लेकिन वहां की विधायिकाओं में रिपब्लिकन पार्टी का बहुत है। यानी ये विधायिकाएं उस हाल में ट्रंप समर्थक सदस्य मनोनीत कर सकती हैं। लेकिन पर्यवेक्षकों का कहना है कि चुनावी धांधली के ऐसे कोई संकेत नहीं हैं, जिनके आधार पर ऐसा होने की गुंजाइश दिखे।

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में कानून के प्रोफेसर रिचर्ड हसन ने अखबार द गार्जियन से कहा- अगर ये देश कानून के शासन के मुताबिक चलता रहता है, तो मुझे ऐसा कोई विश्वसनीय संवैधानिक तरीका नजर नहीं आता, जिससे ट्रंप राष्ट्रपति बने रह सकें। चुनाव संबंधी नियमों के विशेषज्ञ प्रो. हासेन ने कहा कि अगर विधायिकाएं इलेक्ट्रोरल कॉलेज के सदस्य नियुक्त करती हैं, तो उसे लोकतंत्र विरोधी ढंग से सत्ता हथियाने का नंगा नाच कहा जाएगा।

न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में कानून के प्रोफेसर रिचर्ड पाइल्ड्स ने इसी अखबार से कहा कि विधायिकाएं क्या कर सकती हैं, इस बारे में बहुत से काल्पनिक बातें की जा रही हैं। लेकिन ये बातें हकीकत में संभव नहीं हैं। पाइल्ड्स ने कहा कि सच यह है कि अमेरिका में बेहद सहज ढंग से चुनाव हुआ जिसमें रिकॉर्ड संख्या में मतदान हुआ। ऐसा बेहद कठिन परिस्थितियों के बावजूद हुआ। इसे विडंबना या एक ट्रैजेडी ही कहा जाएगा कि राष्ट्रपति ने अपने समर्थकों को यह समझा दिया है कि पूरी चुनाव प्रक्रिया दोषपूर्ण थी।

अलग-अलग राज्यों में चुनाव प्रक्रिया को प्रमाणित करने का काम 20 नवंबर से शुरू हो जाएगा। इसके लिए अलग-अलग राज्यों में अलग समयसीमा तय है। ये काम 8 दिसंबर तक पूरा होगा। ट्रंप और उनके समर्थकों ने ये हालत बना दी है कि कम से कम तब तक अनिश्चिय बना रहेगा।

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