राजस्थान में राम मंदिर बनाने को लेकर वीएचपी से लेकर लार्सन एंड टूब्रो कंपनी सक्रिय हो गई

अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास के साथ ही मंदिर बनाने की तैयारियां भी जोरों पर हैं. राजस्थान में मंदिर बनाने को लेकर विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) से लेकर लार्सन एंड टूब्रो कंपनी तक सक्रिय हो गई है. वीएचपी और कंपनी के पदाधिकारी भरतपुर से लेकर सिरोही के पिंडवाड़ा तक के दौरे कर रहे हैं. अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण में राजस्थान के भरतपुर का महत्वपूर्ण योगदान है क्योंकि यही के 60 फीसदी से ज्यादा बंसी पहाड़पुर के सैंड स्टोन से राम मंदिर बनाया जा रहा है.

अयोध्या में 1992 से लेकर अब तक 1.75 लाख घन फीट पत्थर भेजा जा चुका है. इसके आगे के निर्माण के लिए इसी तरह की मैचिंग पत्थर की तलाश है. मंदिर निर्माण में लगे लोगों के अनुसार अभी करीब 1.25 लाख घन फीट पत्थर की और जरूरत है जिसके लिए विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय मंत्री जुगल किशोर पिछले 1 सप्ताह में तीन बार भरतपुर का दौरा कर चुके हैं.

उनके साथ मंदिर निर्माण के काम में लगे लार्सन एंड टूब्रो के अधिकारी भी आए थे. कार्यकर्ताओं को कहा गया है कि मैचिंग पत्थर की तलाश कर बताएं ताकि जल्दी से जल्दी पत्थरों को अयोध्या भिजवाया जाए. मंदिर निर्माण के अलावा अयोध्या में दूसरे निर्माण के लिए भी कहा जा रहा है कि 5 लाख घन फीट पत्थर की जरूरत होगी जिसमें से 3 लाख घन फीट पत्थर केवल बंसी पहाड़पुर का सैंड स्टोन चाहिए.

बंसी पहाड़पुर के पत्थरों की खोज विश्व हिंदू परिषद के नेता रहे अशोक सिंघल ने की थी. तब 1990 में अशोक सिंघल और आचार्य गिरिराज किशोर ने भरतपुर के कई दौरे किए थे और उसके बाद यहां के पत्थरों का चुनाव हुआ था. बंसी पहाड़पुर के खान से पत्थर निकालने के बाद सिरोही जिले के आबूरोड के पिंडवाड़ा भेजा गया था जहां पर गुजरात के कारीगरों ने इस पर कढ़ाई और नक्काशी किए थे.

उसके बाद ट्रकों से इन पत्थरों को अयोध्या भेजा गया था. आर्किटेक्ट सोमपुरा ने विश्व हिंदू परिषद के नेताओं को भरतपुर के बंसीपुर पहाड़ के पत्थर के बारे में बताया था. सोमपुरा ने अक्षरधाम और इस्कॉन के मंदिरों का डिजाइन किया है जिनमें इन पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है.

विश्व हिंदू परिषद के नेता मधुसूदन शर्मा बताते हैं कि किस तरह से आचार्य गिरिराज किशोर और अशोक सिंघल यहां पर इंजीनियरों को लेकर आए थे और वे यहां से पत्थर लेकर गए थे. यहां पत्थरों को टेस्ट किया गया था उसके बाद ऑर्डर देने के लिए कहा गया था.

भरतपुर के बंसी पहाड़पुर के सैंड स्टोन के बारे में कहा जाता है कि इसमें स्टेबिलिटी और बाइंडिंग बाकी पत्थरों के अनुपात में ज्यादा होती है. इसमें भी दो तरह के पत्थर होते हैं. एक पूरी तरह लाल और एक लालिमा में भी सफेदी लिए हुए. जो सफेद पत्थर होते हैं उन्हें सबसे अच्छा पत्थर माना जाता है. खान में काफी खुदाई करने के बाद सफेद पत्थर निकलते हैं. पत्थर की लाइफ करीब 1000 साल की होती है यह बेहद खूबसूरत भी लगते हैं.

इन पत्थरों में भार सहने की क्षमता भी होती है. कारीगरों के लिए नक्काशी और डिजाइन के हिसाब से यह काफी सरल होते हैं जिस पर गहन से गहन कारीगरी आसानी से हो जाती है. अंग्रेजों ने इस पत्थर को काफी प्रयोग में लिया था. संसद भवन, इंडिया गेट से लेकर ब्रिटिश आर्किटेक्ट लुटियन ने कई जगह इन पत्थरों से राष्ट्रीय स्मारक तक बनाए हैं. बारिश होने के बाद यह पत्थर निखर जाता है और अपने रंग भी बदलते रहते हैं.

राम मंदिर का नक्शा 1989 में बनकर तैयार हो गया था. उसके बाद से ही मंदिर बनाने का काम शुरू कर दिया गया था. अब तक यहां पर सैंड स्टोन के 126 खंभे बनकर तैयार हुए हैं जिनकी ऊंचाई 16 फीट की है. इसके अलावा सिंहद्वार रंग मंडप, नृत्य मंडप, गर्भ गृह, शिखर और परिक्रमा के लिए भी खंभे, दीवार, छज्जे, मेहराब, झरोखे, छत के लिए पत्थर भेजे गए हैं.

बंसी पहाड़पुर के पत्थरों को सिरोही जिले के पिंडवाड़ा में ही तराशा गया है और वहीं से ट्रकों में भरकर अयोध्या के कारसेवकपुरम में ले जाया गया है. मंदिर निर्माण में लगी कंपनियों ने पिंडवाड़ा का दौरा किया है और एक बार फिर से यहां पर काम शुरू होने की उम्मीद है. 1995 में पिंडवाड़ा में पत्थर तराशने का काम शुरू हुआ था. इसके लिए तीन कार्यशाला लगाई गई थी और 6 साल तक काम चला था. तब यहां पर विश्व हिंदू परिषद नेता अशोक सिंघल, चंपत राय और राम बाबू जी ने कार्यशाला का उद्घाटन किया था.

अब एक बार फिर से कहा जा रहा है कि राम मंदिर के मॉडल में बदलाव किया गया है और उसे बड़े स्तर पर बनाया जा रहा है. ऐसे में आगे यहां पर करीब 3 लाख घन फीट पत्थर को तराशा जाएगा और कार्यशाला की शुरुआत होगी. अकेले पिंडवाड़ा से 1996 से 2002 के बीच अब तक 75 हजार घन फीट पत्थर तराश कर भेजा जा चुका है.

दरअसल जिन खदानों से भरतपुर के बंसी पहाड़पुर में राम मंदिर के लिए पत्थर निकाले गए थे, उन सभी खदानों पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने रोक लगा दी है. 2003 से ही यहां के खानों में पत्थर निकालने का काम बंद है. हालांकि अवैध रूप से यहां पर आज भी पत्थर निकाले जा रहे हैं. बंसी पहाड़पुर के खान व्यवसाय से जुड़े लोगों का कहना है कि केंद्र सरकार राम मंदिर के लिए बंसी पहाड़पुर के पत्थर की खदानों को शुरू करने की दोबारा इजाजत दे, वरना लोग चोरी के पत्थरों को राम मंदिर के लिए भेजेंगे. माइंस के मालिक भगवान सिंह का कहना है कि जितना ज्यादा पत्थर चाहिए, उतना ज्यादा पत्थर इस इलाके में बिना खदानों पर रोक हटे संभव नहीं है. इसलिए भारत सरकार को कोई रास्ता निकालना चाहिए.

आगरा का ताजमहल, इंग्लैंड का विक्टोरिया महल और आबू धाबी की दुनिया की सबसे बड़ी जायद मस्जिद जिस मकराना पत्थरों से बने हैं, उसी मकराना पत्थर से अयोध्या के भव्य राम मंदिर के फर्श और पिलर कंगूरे भी बनाए जा रहे हैं.

दुनिया के सबसे बेहतरीन पत्थरों में शुमार मकराना का सफेद संगमरमर अपनी मजबूती और बेहतरीन चमक के लिए जाना जाता है. मकराना के करीब एक लाख घन फीट पत्थर का उपयोग राम मंदिर में होने जा रहा है. पिछले कई साल से राम मंदिर के लिए यहां पत्थरों को निकाले जाने का काम चल रहा था. मगर पिछले कई साल से यह काम बंद हो गया था.

मकराना के सफेद पत्थर अयोध्या भेजने वालों का कहना है कि एक बार फिर से अब पत्थर भेजे जाने की उम्मीद बंधी है. लिहाजा बड़ी संख्या में पत्थर निकाले जाने और तलाशी का काम शुरू हो गया है. माना जाता है कि मकराना के पत्थर में कैल्शियम कार्बोनेट ज्यादा होता है और आयरन कम होता है. लिहाजा इसकी उम्र ज्यादा होती है.

राजस्थान के अजमेर जिले के मकराना में एक छोटे से कस्बे में यह पत्थर पाया जाता है. इसकी खोज सबसे पहले मुगलों ने की थी. इस पत्थर को तराश कर घिस दिया जाए तो कहते हैं कि शीशे जैसा नजर आता है. पिछले कई साल से यहां से पत्थर भेज रहे अशोक का कहना है कि हमारे लिए नहीं बल्कि पूरे मकराना के लिए गर्व की बात है कि हमारे पत्थर से अयोध्या का राम मंदिर बन रहा है. इससे पहले आबू धाबी के जायद मस्जिद के लिए भी मकराना का सफेद मार्बल भेज चुके हैं.

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