राजस्थान के एक ऐसा मतदान केंद्र जहां 15 किमी.पैदल चलकर वोट देते हैं लोग, रोटी व पानी साथ लेकर चलते ग्रामीण…

आधुनिक तकनीक के युग में भी राजस्थान के सिरोही जिले में एक मतदान केन्द्र ‘उतरज’ ऐसा भी है जहां पर मतदाताओं को 15 किलोमीटर लंबा रास्ता पांच से छह घंटे में पूरा करके मतदान करना पड़ता है। मतदाताओं को पैदल ही तीन पहाड़ी पार करके मतदान केंद्र तक पहुंचना पड़ता है। प्रत्येक चुनाव में मतदाता मतदान केंद्र तक जाते समय अपना रोटी और पानी साथ ले जाते है, क्योंकि उन्हें वापस घर पहुंचने में शाम हो जाती है। कई बार तो मतदाताओं को मतदान केंद्र पर ही रात गुजारनी होती है। दुर्गम पहाड़ियों और जंगल के बीच स्थित इस मतदान केंद्र के आसपास रात्रि में जंगली जानवरों का खतरा हमेशा बना रहता है।

कोई नहीं चाहता यहां ड्यूटी करना-  राजस्थान के सिरोही-जालौर लोकसभा क्षेत्र का मतदान केंद्र “उतरज” प्रदेश के पर्वतीय पर्यटन स्थल माउंट आबू से करीब 20 किलोमीटर दूर पहाड़ियों में ऊपर की तरफ है। ‘उतरज’ मतदान केन्द्र में कुल 354 मतदाता है। इस मतदान केन्द्र के दायरे में दो गांव आते है। इनमें एक उतरज गांव है तो दूसरा शेरगांव। दोनों गांवों के बीच 16 किलोमीटर की दूरी है। शेरगांव गांव के लोगों को मतदान करने के लिए उतरज पहुंचने के लिए पांच से छह घंटे पैदल चलना पड़ता है। दोनों गांवों के बीच तीन पहाड़ी आती है।

शेरगांव का इतिहास-  प्राचीन इतिहास के अनुसार महाराणा प्रताप अज्ञातवास के दौरान शेरगांव में काफी समय तक रहे थे। महाराणा प्रताप ने शेरगांव के भीलों के बीच रहकर मुगल सेना के खिलाफ लड़ाई की रणनीति बनाई थी। यहां के भील महाराणा प्रताप को काफी सम्मान देते है।

पहाड़ी और जंगल होने के कारण पैदल चलना लोगों की मजबूरी है। मतदाता ही नहीं यहां मतदान कराने के लिए तैनात होने वाले सरकारी कर्मचारियों की भी मतदान केंद्र तक पहुंचने और वापस जाने में सांसे फूल जाती है। इस मतदान केंद् पर बिजली-पानी की स्थाई सुविधा नहीं है। चुनाव के दिनों में अस्थाई प्रबंध किया जाता है। हालात यह है कि यहां लगनी वाली ड्यूटी को निरस्त कराने के लिए सरकारी कर्मचारी बड़े-बड़े अफसरों और नेताओं से सिफारिश कराते है।

शेरगांव और उतरज गांव के लोगों का कहना है कि उन्होंने आज तक अपने गांवों में लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने वाले कभी भी प्रत्याशी को नहीं देखा। दुर्गम पहाड़ी के बीच बसे होने के कारण यहां कोई आता ही नहीं है । प्रत्याशियों के कार्यकर्ता अवश्य पूरे चुनाव अभियान में एक बार आकर अपना पक्ष रखकर चले जाते है। इन दोनों गांवों के मतदाताओं को प्रत्याशियों के समर्थक यह विश्वास दिलाते हैं कि अगले चुनाव तक उनकी समस्या का समाधान होगा,लेकिन वादा पूरा नहीं होता है। लोगों का कहना है कि उतरज और शेरगांव गांव अगर कोई बीमार भी हो जाता है तो उसे खाट पर लिटाकर कई किलोमीटर पैदल ही पहाड़ी से नीचे लाना पड़ता है। उसके बाद कोई साधन तलाश कर उसे अस्पताल ले जाया जाता है।

 

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