राजनीति में बढ़ रहा महिलाओं का कारवां, पढ़ें- विशेष रिपोर्ट

देश में राष्ट्रपति पद के चुनाव की मतगणना और परिणाम आज सामने आना है। अनुमान के अनुसार राजग प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना लगभग तय माना जा रहा है। देश के शीर्ष संवैधानिक पद पर दूसरी बार एक महिला विराजमान होने जा रही है। लंबे समय तक सक्रिय राजनीति में रहीं मुर्मू आदिवासी समुदाय के प्रतिनिधित्व के साथ ही महिला राजनेताओं की भी नुमाइंदगी करती हैं।

राजनीति में महिलाओं का कारवां बढ़ रहा है, लेकिन विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) द्वारा जुलाई 2022 की रिपोर्ट कहती है कि लैंगिक समानता की विश्व रैंकिंग में भारत 146 देशों में 135वें स्थान पर खिसक गया है। डब्ल्यूईएफ ने इस गिरावट के पीछे भारत के राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति कमजोर होने को कारण बताया है। क्या वास्तव में ऐसा है? आंकड़ों और विशेषज्ञों से बातचीत पर आधारित दैनिक जागरण की विशेष रिपोर्ट:

राजनीतिक समझ अधिक महत्वपूर्ण

राजनीति में महिलाओं की भागीदारी के मामले में वर्ष 2016 में भारत विश्व मे नौवें स्थान पर था। वर्ष 2022 में 48वें स्थान पर है। डब्ल्यूईएफ द्वारा लैंगिक असमानता के लिए राजनीति में महिलाओं की कम भागीदारी का संदर्भ देने पर पूर्व लोकसभा अध्यक्ष और आठ बार सांसद रहीं सुमित्र महाजन ने कहा कि सिर्फ चुनाव लड़ना राजनीति नहीं है। राजनीतिक समझ रखना अधिक महत्वपूर्ण है। इस मामले में तो भारतीय महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। वह चर्चा करने लगी हैं कि देश, राज्य और शहर को कैसे चलाना है।

मतदान में महिलाओं का प्रतिशत बढ़ा है। कहीं-कहीं तो पुरुषों से ज्यादा भी है। जब राजनीति में महिलाओं की सहभागिता का प्रश्न देश के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त रहे ओपी रावत से किया गया तो उन्होंने कहा कि मैं मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में निवासरत हूं। प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव में अच्छी संख्या में महिलाएं लड़ी हैं और जीत हासिल की है। ग्वालियर और सिंगरौली में महिला प्रत्याशी जीतीं। महिलाओं को मौका मिल रहा है और वह आगे आ रही हैं। रावत ने कहा कि संभव है कि लोकसभा, राज्यसभा व विधानसभाओं में एक स्थिरता दिखती हो, लेकिन नगरीय व पंचायत स्तर पर महिला सीटों का आरक्षण है। इससे तस्वीर अलग है।

अटका हुआ है महिला आरक्षण बिल

लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं में सभी सीटों में 33 प्रतिशत महिलाओं के लिए आरक्षित करने का प्रस्ताव है। यह इस स्थिति को बेहतर बना सकता है लेकिन यह बिल अभी तक पास नहीं हुआ है। एसोसिएशन आफ डेमोक्रेटिक रिफार्म (एडीआर) से जुड़े मेजर जनरल अनिल वर्मा इस मुद्दे पर कहते हैं कि लोकसभा, राज्यसभा का आंकड़ा देखेंगे तो महिलाओं की भागीदारी में बीते एक-दो चुनाव से थोड़ी उछाल है, लेकिन बहुत बदलाव नहीं है। इसकी एक बड़ी वजह महिला आरक्षण बिल का पारित न होना है।

प्रमुख देशों की संसद में महिलाओं की स्थिति (प्रतिशत)

देश –           उच्च सदन     निम्न सदन

यूके –              26.4          32.0

आस्ट्रेलिया –     39.5          30

यूएसए –          25             23

यूएई –             0              22.5

(स्नोत: इंटर पार्लियामेंटरी यूनियन-2019 के अनुसार)

फैक्ट फाइल

  • 1926 में मद्रास प्रांतीय विधान परिषद चुनाव में कमलादेवी देश की पहली महिला प्रत्याशी बनीं।
  • 600 महिला लोकसभा सदस्य चुनी गई हैं वर्ष 1952 में पहले चुनाव से अब तक

भारतीय संसद में बढ़ती महिलाओं की संख्या

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में पिछले चुनाव के मुकाबले सबसे अधिक महिला सांसद चुनी गईं। इसमें कुल 78 महिला सांसद चुनी गईं जो कुल सदस्यों का 14.4 प्रतिशत है। 8,054 प्रत्याशियों में 726 महिलाएं थीं। वर्ष 2021 तक की स्थिति के अनुसार राज्यसभा में भी महिला सदस्यों की संख्या 12.24 प्रतिशत थी। हाल में हुए राज्यसभा के चुनाव में भाजपा ने 22 में छह महिलाओं को प्रत्याशी बनाया।

विधानसभा के मामले में उत्तर प्रदेश आगे

देश की सभी विधानसभाओं में 338 महिला विधायक हैं। वर्ष 2022 में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में सबसे अधिक महिलाएं उत्तर प्रदेश (11.66 प्रतिशत) से चुनी गईं। 33 महिला प्रत्याशी विधानसभा पहुंचीं। हालांकि यह आंकड़ा वर्ष 2017 की तुलना में कम है। तब 38 महिला विधायक बनी थीं।

महिलाओं की राजनीति में सक्रियता भी बढ़ी

संभव है कि संसद के भीतर महिलाओं की संख्या अपेक्षाकृत कम हो, लेकिन जितनी भी महिलाएं हैं, वह बहुत सशक्त भूमिका निभा रही हैं। आम महिलाओं की राजनीति में सक्रियता भी बढ़ी है।

– सुमित्र महाजन, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष

… जब राजनीति में महिलाएं ऊंचे पदों पर पहुंचती हैं

मैंने बतौर आइएएस 35 वर्ष फील्ड में बिताए और समझा कि जब राजनीति में महिलाएं ऊंचे पदों पर पहुंचती हैं तो जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने वाले कार्यो पर अधिक ध्यान देती हैं। पंचायत व निकाय स्तर पर स्थिति बेहतर हो रही है।

– ओपी रावत, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त, भारत

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