उत्तर प्रदेश की विधानसभा में मंगलवार को जो हुआ वो सूबे की राजनीति की एक ऐसी घटना थी जिसे हमेशा याद रखा जाएगा. याद इस लिहाज से कि एक तरफ उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार भ्रष्टाचार और सुरक्षा के मुद्दे पर विधानसभा में सरकार की उपलब्धियां गिना रही थी, दूसरी तरफ बीजेपी के ही विधायक नंद किशोर गुर्जर अपनी सरकार से सवाल कर रहे थे कि आखिर क्यों उन्हें पुलिस और प्रशासन की तरफ से प्रताड़ित किया जा रहा है.
नंद किशोर गुर्जर गाजियाबाद के लोनी विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं. नंद किशोर विधानसभा में अपनी आवाज नहीं उठा पाए, जिसके बाद वह सदन में ही धरने पर बैठ गए और उनके समर्थन में बीजेपी के करीब 200 और विधायक भी धरने पर बैठ गए. शाम 6 बजे के बाद किसी तरह उन्हें न्याय का आश्वासन देकर विधानसभा से उठाया गया, लेकिन विधानसभा के इतिहास की ये अभूतपूर्व घटना अपने आप मे बहुत कुछ बयां कर गई.
क्या हैं घटना के मायने?
इस घटना के गंभीर मायने हैं. लेकिन उसपर नजर डाले इससे पहले ये समझना जरूरी है कि आखिरकार विधायक नंद किशोर गुर्जर की व्यथा क्या है, जिसके सहारे किसी बड़े मकसद का ये सारा माहौल पैदा हुआ. विधायक धरने पर बैठे और सरकार के लिए असहज हालात पैदा किए. यहां सवाल ये नहीं है कि सत्तापक्ष के एक विधायक ने अपनी सरकार में व्यवस्था पर सवाल उठा दिया. सवाल उससे आगे ये भी है कि आखिर इतने बड़े पैमाने पर ऐसा क्यों हुआ और इसके वास्तविक मायने क्या हैं?
नंद किशोर गुर्जर की तकलीफ के मुताबिक, लोनी इलाके में एक फूड इंस्पेक्टर ने गलत लोगों को गलत तरीके से मीट व्यवसाय के लिए लाइसेंस दिया था. उन्होंने इसके लिए आवाज उठाई. आरोप है कि विधायक ने फूड इंस्पेक्टर के साथ मारपीट की. इसी आरोप में विधायक और उनके समर्थकों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया गया.
विधायक की शिकायत है कि इस मामले में उनकी बात ही नहीं सुनी गई और प्रशासन ने उन्हें निशाने पर ले लिया. नंद किशोर का आरोप ये भी है कि जब इस बारे में उन्होंने विधानसभा में अपनी बात रखने की कोशिश की तो उन्हें बोलने नहीं दिया गया.
विधायक के गंभीर आरोप
नंद किशोर बताते हैं कि इलाके के अधिकारी पूरी तरह से भ्रष्टचार में डूबे हैं और खुलेआम कहते हैं कि पहले की सपा-बसपा की सरकारों मे सरकारी कार्यो में चौबीस परसेंट का कमीशन चलता था और अब ये कमीशन अट्ठारह परसेंट हो गया है. ये बात उन्होंने बुधवार को सदन में भी कही.
विधायक के ये आरोप गंभीर भी हैं और सरकार की भ्रष्टाचार पर ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति पर धब्बा भी. लेकिन बात यहीं नहीं खत्म होती. बात इससे भी आगे बढ़ गई जब नंद किशोर गुर्जर को विधानसभा में ना बोलने देने पर बीजेपी के करीब 200 विधायक धरने पर बैठ गए. ये बेहद गंभीर इशारा है.
इससे कई सवाल उठते हैं जो योगी आदित्यनाथ के लिए बेचैनी का सबब हो सकते हैं. इस मामले में विपक्ष को किसी बड़ी योजना की बू आ रही है.
क्या कहते हैं विपक्ष के नेता
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू को लगता है कि ये सरकार के अंदर की खींचतान का नतीजा है. भ्रष्टाचार, महिलाओं की सुरक्षा समेत तमाम महत्वपूर्ण मुद्दों पर योगी सरकार फेल हुई है लिहाजा उनके नेता अब खुलकर आवाज उठा रहे हैं. अजय कुमार लल्लू ने ऐसे माहौल मे नैतिक आधार पर योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे तक की मांग कर डाली. नेता विपक्ष और समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता राम गोविंद चौधरी तो इससे आगे की बात कहते हैं.
200 विधायकों के एकसाथ सरकार के खिलाफ धरने पर बैठ जाने की घटना को ऐतिहासिक कहते हुए उन्होंने कहा कि ये बगावत के सुर हैं जो साफतौर पर इशारा करते हैं कि बीजेपी के ज्यादातर विधायक योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री के तौर पर नहीं देखना चाहते.
उन्होंने कहा कि कई विधायक उनके खिलाफ धरने पर बैठ गए, मतलब साफ है कि सरकार अल्पमत मे आ गई. राम गोविंद चौधरी ने कहा कि कहा कि ये पूरी तरह से योगी आदित्यनाथ के खिलाफ एक और कदम आगे जाने का मामला है. जिसका असर आनेवाले दिनों में देखने को मिलेगा.
धरने पर बैठने की किसकी प्लानिंग?
अब सवाल ये उठता है कि अगर इतनी बडी संख्या में विधायक इस तरह विधानसभा में किसी बड़ी प्लानिंग के तहत धरने पर बैठ गए थे तो आखिरकार ये प्लानिंग किसकी है? सरकार के भीतर ही कौन है ऐसा है जो योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री नहीं देखना चाहता? कहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और सरकार के ही एक ताकतवर मंत्री के बीच की तनातनी का ये अगला कदम तो नहीं है?
वैसे सरकार के भीतर के जानकार ये बताते हैं कि सरकार के भीतर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा. ज्यादातर विधायक सरकार में अपनी बात ना सुने जाने को लेकर नाराज हैं. तो कहीं ये नाराज़गी अब लामबंदी के रूप में तख्तापलट की ओर तो नहीं बढ़ रही? इन सब क़यासों के बीच नाराज और धरने पर बैठे कुछ विधायकों को योगी आदित्यनाथ ने मिलने के लिए बुलाया. मिलनेवाले बीजेपी विधायकों में से एक हर्ष वाजपेई हैं.
वह कहते हैं कि हम सब नंद किशोर गुर्जर के समर्थन में हैं. लेकिन ये बगावत नहीं है. कम से कम हमारी सरकार में हमें लोकतांत्रिक तरीके से अपनी बात कहने का मौका मिला. लेकिन इस सवाल पर कि अगर सरकार आपकी बात सुनती है तो आखिरकार क्यों इतनी बड़ी संख्या में सरकार के खिलाफ आप लोगों को धरने पर बैठना पडा? इसपर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.
हर्ष वाजपेयी समेत धरने पर बैठे तमात विधायकों में से ज्यादातर को योगी आदित्यनाथ के विरोधी खेमे का माना जाता है. जाहिर है विधायकों ने एकजुट होकर सरकार को संदेश तो दिया है कि संख्याबल में बड़ी ताकत होती है.
वैसे सूत्र ये भी बताते हैं धरने पर बैठे ज्यादातर विधायकों ने उत्तर प्रदेश सरकार के एक सबसे ज्यादा रसूखवाले मंत्री के जन्मदिन पर घर जाकर बधाई दी थी और खुशी के उस मौके पर उत्साह में ये भी कहा था कि आप अगर इशारा कर दें तो आपका अगला जन्मदिन हम मुख्यमंत्री के तौर पर मनाना चाहते हैं