बात 2007 की है. तब योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से बीजेपी के सांसद थे और मुलायम सिंह यादव यूपी के मुख्यमंत्री. तभी एक रोज़ योगी आदित्यनाथ अचानक लोकसभा में बोलते-बोलते रो पड़े. फिर रोत-रोते उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष से कहा कि यूपी सरकार जानबूझ कर उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमे दर्ज कर रही है इसलिए उन्हें संरक्षण दिलाया जाए. अब 11 साल बाद योगी उसी यूपी के मुख्यमंत्री है और उनके राज में अब यूपी के अपराधी उनसे और उनकी पुलिस से संरक्षण मांग रहे हैं.
11 महिने में 1350 एनकाउंटर
उत्तर प्रदेश पुलिस ने पिछले 11 महीने में करीब 1350 एनकाउंटर किए हैं. यानी हर महीने सौ से भी ज़्यादा एनकाउंटर. इस दौरान 3091 वॉन्टेड अपराधी गिरफ्तार किए गए. जबकि 43 अपराधियों को मार गिराया गया. यूपी पुलिस का दावा है कि मरने वालों बदमाशों में 50 फीसदी इनामी अपराधी थे. जिन्हें पुलिस शिद्दत से तलाश रही थी.
कभी न चलने वाली सरकारी बंदूकें उगल रही हैं गोली!
यूपी पुलिस के इन आंकड़ों ने अपराधियों में इस कदर खौफ भर दिया कि पुलिस एक्शन के डर से पिछले 10 महीने में 5409 अपराधियों ने बाकायदा अदालत से अपनी ज़मानत ही रद्द कराई है. ताकि ना वो बाहर आएं और ना गोली खाएं. है ना कमाल? एक तरफ़ यूपी की सरकारी बंदूकें चलती ही नहीं थी, और अब अचानक वही बंदूकें दनादन गोलियां उगल रही हैं. उगले भी क्यों ना? जब ट्रिगर पर ऊंगली योगी के फरमान की हो और एनकाउंटर सरकारी आदेश तो गोलियां तो चलेंगी ही.
अपराध पर लगाम नहीं तो एनकाउंटर!
सवाल ये है कि अचानक यूपी में एकाउंटर की झड़ी क्यों लग गई? क्या य़ूपी में क़ानून व्यवस्था इस कदर चरमरा गई है कि एनकाउंटर के अलावा कोई रास्ता ही नहीं बचा? क्या यूपी में अपराधी इस कदर बेलगाम हो चुके हैं कि अचानक पूरे सोसायटी के लिए खतरा बन गए? क्या यूपी की पुलिस इन 11 महीनों में इस कदर बेबस हो गई कि क्राइम पर कंट्रोल ही नहीं कर पा रही है? या फिर सरकार ने सबसे आसान रास्ता चुन लिया है कि क्राइम खत्म करना है, तो क्रिमिनल को ही खत्म कर दो.
क्या एनकाउंटर ही है एकमात्र उपाय?
पर क्या ये रास्ता सही है? क्या यूपी की कानून व्यवस्था को सुधारने के लिए एनकाउंटर ही एकमात्र रास्ता और आखिरी हथियार है? अगर हां, तो फिर जब तक ये एनकाउंटर जारी है, तब तक के लिए क्यों ना यूपी की तमाम अदालतों पर ताला लगा देना चाहिए? वैसे भी अदालतों की जगह इंसाफ़ तो अब सड़क पर ही हो रहा है, वो भी गोलियों से.
1982 में हुआ था पहला एनकाउंटर
एनकाउंटर यानी मुठभेड़ शब्द का इस्तेमाल हिंदुस्तान और पाकिस्तान में बीसवीं सदी में शुरू हुआ. एनकाउंटर का सीधा सीधा मतलब होता है. बदमाशों के साथ पुलिस की मुठभेड़. हालांकि बहुत से लोग एनकाउंटर को सरकारी क़त्ल भी कहते हैं. हिंदुस्तान में पहला एनकाउंटर 11 जनवरी 1982 को मुंबई के वडाला कॉलेज में हुआ था, जब मुंबई पुलिस की एक स्पेशल टीम ने गैंगस्टर मान्या सुरवे को छह गोलियां मारी थी. कहते हैं कि पुलिस गोली मारने के बाद उसे गाड़ी में डाल कर तब तक मुंबई की सड़कों पर घुमाती रही, जब तक कि वो मर नहीं गया. इसके बाद उसे अस्पताल ले गई. आज़ाद हिंदुस्तान का ये पहला एनकाउंटर ही विवादों में घिर गया था.
यूपी में 455 फर्जी एनकाउंटर
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक एक जनवरी 2005 से लेकर 31 अक्टूबर 2017 तक यानी पिछले 12 सालों में देश भर में 1241 फर्जी एनकाउंटर के मामले सामने आए. इनमें से अकेले 455 मामले यूपी पुलिस के खिलाफ़ थे. मानवाधिकार आयोग के मुताबिक इन्हीं 12 सालों में यूपी पुलिस की हिरासत में 492 लोगों की भी मौत हुई. आइए आंकड़ों की नज़र में आपको पिछले 12 सालों में देश भर में हुए फर्ज़ी एनकाउंटर की तस्वीर दिखाते हैं.
पिछले 12 वर्षों में हुए इतने फर्जी एनकाउंटर!
यूपी- 455
असम- 65
आंध्र प्रदेश- 63
मणिपुर- 63
झारखंड- 58
छत्तीसगढ़- 56
मध्य प्रदेश- 49
तामिलनाडु- 44
दिल्ली- 36
हरियाणा- 35
बिहार- 32
प. बंगाल- 30
उत्तराखंड- 20
राजस्थान-19
महाराष्ट्र- 19
कर्नाटक- 18
गुजरात- 17
जम्मू-कश्मीर- 17
केरल- 03
हिमाचल- 02
फर्जी एनकाउंटर के डरावने आंकड़े
इसमें कोई शक नहीं कि आबादी के लिहाज़ से यूपी देश का सबसे बड़ा राज्य है, मगर इसके बावजूद फर्ज़ी एनकाउंटर ये आंकड़े बाकी राज्यों के मुकाबले कहीं ज़्यादा डरावने हैं. 12 साल के इन आंकड़ों से बाहर निकले तो अकेले पिछले 11 महीनों में ही साढ़े 12 सौ एनकाउंटर यूपी में हो चुके हैं. हालांकि इनमें 41 बदमाश ही मारे गए. लेकिन ये तमाम एनकाउंटर इसलिए सवाल खड़े करते हैं कि इनमें से हर एनकाउंटर ऐलानिया कह कर किया गया. सूत्रों के मुताबिक यूपी एसटीएफ और तमाम ज़िला पुलिस को बाक़ायदा घोषित अपराधियों की लिस्ट भेजी गई है और उसी लिस्ट के हिसाब से यूपी में एनकाउंटर जारी है.
कभी यूपी सरकार पर लगाया था ये आरोप
वैसे इसे पता नहीं इत्तेफाक कहेंगे या कुछ और कि अब से 11 साल पहले खुद योगी आदित्यनाथ को यूपी सरकार और यूपी पुलिस से खुद के लिए संरक्षण मांगना पड़ा था. वो भी संसद भवन के अंदर. तब उन्होंने बाकायदा रोते हुए कहा था कि यूपी सरकार उन्हें झूठे आपराधिक मामलों में फंसा रही है. 11 सालों में वक्त बदल चुका है. अब वही योगी यूपी की सरकार के सरदार हैं और यूपी पुलिस उनके आधीन. अब संरक्षण कोई और मांग रहा है.
सोशल मीडिया के जरिए छवि सुधारने की कोशिश
जिस सोशल मीडिया के ज़रिए यूपी पुलिस पर फर्ज़ी एनकाउंटर करने के इल्ज़ाम लग रहे थे पुलिस ने उसी का सहारा लेकर कार्रवाई को सही ठहराना शुरू कर दिया. एक वायरल वीडियो हिस्ट्रीशीटर संजय की मौत के बाद उसकी लाश के अंतिम संस्कार के लिए बुलाए गए परिवारवालों से बातचीत का है. जिसे पुलिस ने जारी किया है. ताकि ये साबित हो सके कि एनकाउंटर के बाद न सिर्फ इलाके के लोग बल्कि खुद परिवारवाले भी राहत महसूस कर रहे हैं.
यूपी पुलिस के साथ बहुत सारे इत्तेफाक
ऐसे ही शामली के नौशाद उर्फ डैनी के एनकाउंटर पर सवाल उठे तो पुलिस ने एक ऑडियो क्लिप जारी कर दी. ताकि ये बता सकें कि एनकाउंटर से पहले उसे सरेंडर की सलाह दी गई थी. हर एनकाउंटर के बाद पुलिस की दलील होती है कि एनकाउंटर में अपराधी इत्तेफाक से मारा गया. मगर सवाल ये है कि यूपी पुलिस के साथ इतने सारे इत्तेफाक एक साथ कैसे हो रहे हैं?