उत्तर प्रदेश सरकार औद्योगिक परियोजनाओं के लिए जमीन की तेजी से व्यवस्था के लिए भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन की तैयारी कर रही है। भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम-2013 में कारोबारी सहूलियत के नजरिए से महत्वपूर्ण संशोधन प्रस्तावित है। इसके तहत 80 फीसदी किसानों से सहमति लेने की व्यवस्था को आसान बनाया जाएगा। इससे जमीन के अधिग्रहण की कम से कम नौबत आएगी।
भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम-2013 में भूमि अधिग्रहण को लेकर दो महत्वपूर्ण प्रावधान हैं। पहला, निजी कंपनियों के लिए अर्जन की दशा में प्रभावित कुटुंबों के कम से कम 80 प्रतिशत कुटुंबों की पूर्व सहमति ली जाएगी। दूसरा, पब्लिक प्राइवेट भागीदारी वाली परियोजनाओं के लिए अर्जन की दशा में प्रभावित कुटुंब के कम से कम 70 फीसदी कुटुंबों की पूर्व सहमत ली जाएगी। सरकार बिना किसानों के हक में हस्तक्षेप किए इस प्रकिया को सहज बनाने पर विचार कर रही है।
जानकर बताते हैं कि परियोजना में जितनी जमीन होगी, यदि उससे जुड़े 80 प्रतिशत परिवारों की जमीन सहमति से क्रय कर ली गई तो बाकी 20 प्रतिशत की सहमति लेने की जरूरत नहीं होगी। अर्थात पहले अधिग्रहीत की जा रही जमीन में शामिल 80 प्रतिशत परिवारों से सहमति लेने की जरूरत थी अब पूरी परियोजना के लिए आवश्यक जमीन में 80 प्रतिशत परिवारों की सहमति की आवश्यकता होगी।
सरकार, परियोजना के लिए किसानों से सहमति पूर्वक जमीन खरीदने की समय सीमा भी तय करने जा रही है। यह सीमा अधिकतम 2 वर्ष करने का प्रस्ताव है। अफसरों का मानना है कि इससे कानून की मंशा अनुसार किसानों का हित भी प्रभावित नहीं होगा और विकास व औद्योगीकरण से जुड़ी परियोजनाओं को रफ्तार भी मिल सकेगी।
उद्योग जगत परियोजनाओं के लिए आसानी से भूमि उपलब्धता के लिए सरकार से ज्यादा सहूलियत चाहता था। भूमि अधिग्रहण कानून में तमाम बदलाव के सुझाव दिए गए थे लेकिन सरकार ने केवल प्रक्रिया को सहज बनाने से संबंधित एक संशोधन का ही मन बनाया है। प्रस्तावित संशोधन का मसौदा तैयार है। इस पर कैबिनेट की सहमति लेने की तैयारी चल रही है।
जानकर बताते हैं कि भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम 2013 एक केंद्रीय कानून है। ऐसे में राज्य सरकार को इस कानून में संशोधन संबंधी प्रस्ताव को सहमति के लिए केंद्र सरकार को भेजना होगा। बताया जा रहा है कैबिनेट की सहमति लेने के बाद इसे राज्यपाल के माध्यम से केंद्र सरकार को भेजा जाएगा। केंद्र की सहमति मिलने के बाद ही यह प्रदेश में लागू हो सकेगा।