यूपी के जेल के खेल निराले आप को जेल जेल नही ​बल्कि अय्याशी का अड्डा लगेंगा

मगर आज हम जो कुछ आप को बताने और दिखाने जा रहे हैं, उसके बाद आप अच्छी तरह समझ जाएंगे कि जेल का ये खेल चलता कैसे है? पता नहीं कितनी बार आप सबने सुना होगा कि कोई जेल से गैंग चला रहा है. कोई जेल से वसूली कर रहा है. कोई जेल से सुपारी ले रहा है. तो कोई जेल से ही लोगों को धमका रहा है. ये सब सुन कर हमेशा यही ख्याल आता है कि भला जेल के अंदर से ये सब कैसे मुमकिन है?


वो कैदी जेल की बैरक से बाहर किसी को फोन कर रहा है. वो फोन पर बोलता है- ‘अबे हम बोल रहे हैं. अंशु दीक्षित बोल रहे हैं. हां एक काम करो. क्या मंगवाएं? क्या मंगा लें मुर्गे में? बिरयानी. एक काम करो. कम से कम दस डिब्बे बिरयानी. एक सिगनेचर की बोतल, दो रोस्टेड, एक बड़ी वाली बिस्लेरी और ये दारू कैसी ला के दे दिया है? ये थोड़ी हल्की है. इतनी दारू में कैसे काम चल पाएगा. और तिवारी से कह देना शाम को एक बोतल और लेता आएगा.’

वो साथी कैदियों से पूछते हुए कहचा है ‘और कुछ भी चाहिए तो बोल दीजिए. दिन की दावत तो चल ही रही है. रात की रंगीन महफिल का भी इंतज़ाम किया जा रहा है. चिकन-मटन, रोस्टेड और बिरयानी. मिनिरल वाटर और शराब सब का आर्डर दे दिया गया है. कोई कमीं नहीं रहनी चाहिए. वरना अंशू भाई की पार्टी का मज़ा किरकिरा हो जाएगा. टेंशन मत लीजिए. सब इतेज़ाम कर दिया गया है.’

वो फिर फोन पर कहता है- “जेलर को पैसा दिया गया है ना? हां पैसा दिया गया है. साहब भी तो पैसा लेते हैं अपने. साहब को तो पैसा दिया गया था 20 हज़ार रुपये. किससे तुम लोग यार इतना डर रहे हो. जब साहब को पैसा दिया गया है तो क्यों डर रहे हो. फोन कर दो उसको पैसे मंगा लो कुछ. जेलर भाई साहब को भी पैसे पहुंचा दिए गए हैं. डिप्टी साहब को भी 20 हज़ार दे दिया गया है. बस फिर किस बात की टेंशन. एंजॉय कीजिए. फिर भी कोई दिक्कत हुई. तो असलहा और कारतूस तो है ही. कारतूस है. असलहा जो है धरा ही है.”

“बस बस और क्या चाहिए. सारा इंतज़ाम तगड़ा कर दिया गया है. इंजॉयमेंट में कोई कमी नहीं आएगी. आएगी भी तो जेलर और डिप्टी जेलर सब सेट हैं. वैसे भी अंशु भैय्या की बात है. जिनकी सीतापुर, लखीमपुर, लखनऊ, हरदोई, प्रतापगढ़ और इलाहाबाद तक तूती बोलती है. लूट, हत्या और सुपारी किलिंग तो इनके बाएं हाथ का खेल है. हां मगर ये जेल है. यूपी की जेल में यहां सिर्फ पैसा चलता है. इसलिए पैसे फेंकते जाइये तमाशा देखते जाइये.”

कहने को तो वो रायबरेली की जेल है. मगर यहां कत्ल के आरोपियों की महफिल सज़ी है. रात में जो होगा. वो होगा. पहले दिन की महफिल पर गौर फरमाइए. शराब रखी है, बढ़िया सा चखना है, सिगरेट है. रजनीगंधा है. मोबाइल फोन है. और तो और कारतूस और तमंचा भी है. रायबरेली की बैरक नंबर 10 में ये दिन के वक्त का वीडियो है. जहां सुबह से ही संगीन जुर्मों में बंद आरोपियों ने माहौल सजा रखा है.

सुनिए क्या कह रहे हैं ये. अंशू दीक्षित फिर फोन पर किसी कहता है “चिकन मंगवाया है, हां चिकन-मटन मंगवाया है.. वो ले के आ रहा है. राम चंदर तिवारी को कहा है. अबे हम बोल रहे हैं. सुनो, कैश 5 हज़ार रुपये रखे रहना. गेट पर पहुंचकर 5 हज़ार रुपये दे देना”

इनकी आगे की बाते सुनेंगे तो आपको मालूम चलेगा कि कैसे इन संगीन अपराधियों के आगे नतमस्तक था जेल प्रशासन. और कैसे जेल में ही बैठकर अपराधी जेल अधिकारियों की बोली लगाते हैं. मसलन जेलर दस हजार में बिकेगा, डिप्टी जेलर की कीमत पांच हजार भी बहुत है. 10 हज़ार रुपये कल जाकर जेलर को दे देना आवास परउसके बाद 5 हज़ार रुपये, जब सारा सामान लेकर आना तो गेट पर ही डिप्टी को फोन कर लेना. फोन करने के बाद डिप्टी को 5 हज़ार रुपये दे देना.

अल-मुख्तसर सब बिके हुए हैं जी. जेलर, डिप्टी जेलर, और जेल का एक-एक पुलिसकर्मी तक. और जब सब बिक गए हों. तो जेल से ही अपराधी फोन पर उगाही करें तो हैरानी कैसी. एक बार फिर वो किसी को फोन करके धमकी दे रहे हैं. “गवाह-पवाह की… जो तुमको परेशान कर रहे हैं. अरे गुप्ता बोल रहे हो? ये रायबरेली जेल है. ….दी जाएगी. समझे ना.यहां खुलेआम घूमते हैं हम लोग. जिस दिन बुलाएंगे. इसी जेल में दफ्न कर देंगे. मरना है. …मरवा ही देंगे.”

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समझ तो गए ही होंगे आप. अब सवाल ये कि जो अपराधी जेल के बाहर एनकाउंटर से डरते हैं. वो जेल के अंदर इतने बेखौफ कैसे हो जाते हैं कि बैरक के अंदर ही महफिल जमा लेते हैं. और जेलर-डिप्टी जेलर पर ऐसे संगीन इल्ज़ाम लगाने लगते हैं. क्या कहीं. सच में तो नहीं बिक गए जेलर और डिप्टी जेलर. पड़ताल अभी बाकी है.

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