यह रोचक प्रसंग महाभारत में उल्लेखित है। बात द्वापरयुग में उस समय की है जब पांडव वनवास में थे, एक बार दुर्योधन को किसी शत्रु ने बंदी बनाए जाने की खबर सुन युधिष्ठिर चिंतित हो गए।
उन्होंने भीम से कहा, हमें दुर्योधन की रक्षा करनी चाहिए। लेकिन भीम यह बात सुनकर नाराज हो गए। उन्होनें कहा, आप उस व्यक्ति की रक्षा की बात कह रहे हैं, जिसने हमारे साथ कई तरह से बुरा व्यवहार किया। द्रोपदी चीरहरण और फिर वनवास आप भूल गए।
इस तरह भीम ने दुर्योधन के बारे में काफी भला बुरा कहा, लेकिन युधिष्ठिर चुप रहे। अर्जुन भी वहां मौजूद थे। यही बात युधिष्ठिर ने अर्जुन से कही, तो वह समझ गए और अपने गाण्डीव उठाकर दुर्योधन की रक्षा के लिए चले गए।
अर्जुन कुछ देर बाद आए और उन्होंने युधिष्ठिर से कहा, शत्रु को पराजित कर दिया गया है। और दुर्योधन अब मुक्त हैं। तब युधिष्ठिर ने हंसते हुए भीम से कहा, भाई! कौरवों और पांडवों में भले ही आपस में बैर हो, लेकिन संसार की दृष्टि में तो हम भाई-भाई हैं। भले ही वो 100 हैं और हम 5 तो हम मिलकर 105 हुए ना।
ऐसे में हममें से किसी एक का भी अपमान 105 लोगों का अपमान है। यह बात तुम नहीं अर्जुन समझ गए। यह बात सुनकर भीम युधिष्ठिर के सामने नतमस्तक हो गए।