पुलिस द्वारा लगातार स्कूलों में जन जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। छोटे बच्चों को ट्रैफिक नियम के सबन्ध में जानकारी दे रहे हैं। इसके बाद भी नाबालिग मोटरसाइकिल से फर्राटे भर रहे।दोपहिया चलाने की अनुमति नाबालिगों को सबसे पहले तो पालक देते हैं। फिर कार्यवाही न कर पुलिस प्रशासन और स्कूल प्रबंधन उस अनुमति को मौन सहमति दे देता है। इसका दुष्प्ररिनम सड़क हादसे में नाबालिगों को जान से हाथ गंवाना पड़ता है।
जागरुकता केवल कागजों में
पुलिस महकमे के अधिकारी स्कूलों की मदद से यातायात जागरूकता सप्ताह मनाते हैं। इस सप्ताह में सड़क के अलावा स्कूलों में नियम पालन करने का जागरूकता अभियान चलाया जाता है, लेकिन शिक्षा और पुलिस विभाग की सभी कवायद कागजों में चल रही है और सड़कों पर खुलेआम नियमों का उल्लंघन हो रहा है।
नियम का उल्लंघन कर रहे नाबालिग
नाबालिग गाड़ी लेकर स्कूल ना पहुंचे, इस संबंध में स्कूल संचालकों को स्पष्ट निर्देश दिया है। जिन स्कूलों में नियमों का उल्लंघन हो रहा है, वहां जांच कराकर गलती पाए जाने पर स्कूल प्रबंधन को नोटिस जारी करके स्पष्टीकरण लिया जाएगा।
लगभग सभी स्कूलों में यह नजारा
बाइक व स्कूटी से छात्र-छात्राओं के स्कूल पहुंचने का नजारा सभी स्कूलों में देखा जा रहा है। लेकिन शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने नाबालिग वाहन चालकों पर जब से सख्ती करने का निर्देश दिया है, स्कूल संचालक गाड़ी लाने वाले नाबालिगों को स्कूल परिसर के बाहर ही गाड़ी खड़ी करवा देते हैं। पुलिस जब भी कार्रवाई करने पहुंचती है, तो स्कूल संचालक अपना पल्ला झाड़कर कार्रवाई करने की खुली छूट दे देते हैं।
कुछ स्कूल संचालक पालकों का सहमति पत्र लेकर छात्रों को गाड़ी लाने की अनुमति देते हैं। जब भी कुछ विवाद होता है, तो सहमति पत्र विभागीय अधिकारियों को दिखाकर पालकों के सिर पर ठीकरा फोड़ दिया जाता है। जबकि स्कूल प्रबंधन को भी यह पता होता है कि जो बच्चे बाइक या स्कूटी से आ रहे हैं, वे नाबालिग हैं।