यहां नोटबंदी से भुखमरी की कगार पर लाखों गरीब श्रमिक

वर्तमान में सिडकुल में रेगुलर बेस पर 50 हजार, अस्थायी 80 हजार और दिहाड़ी पर करीब 20 हजार मजदूर कार्यरत हैं। इसमें से रेगुलर बेस पर काम करने वाले आधे कर्मचारियों के खाते बैंकों में है लेकिन कैश न होने के कारण उनका उपयोग नहीं हो पा रहा है जबकि अस्थायी काम करने वाले श्रमिकों के बैंकों में खाते ही नहीं है।

दिहाड़ी मजदूर साप्ताहिक मजदूरी लेकर अपना घर चलाते हैं, लेकिन अब जब ठेकेदारों को नई करेंसी नहीं मिल पा रही है तो ऐसे में वह श्रमिकों को उनके वेतन का भुगतान नहीं कर पा रहे हैं। बाहरी प्रदेशों से सिडकुल में काम करने आए कर्मचारियों की हालत इसलिए अधिक खराब हो गई है कि वह किराये पर रहकर अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं।

नोटबंदी के बाद से कैश के अभाव में ठेकेदारों के सामने श्रमिकों को उनके वेतन का भुगतान करने का संकट खड़ा हो गया है। इससे श्रमिकों के साथ ही ठेकेदार भी परेशान हैं। अगर जल्द ही नोटबंदी की समस्या से निजात नहीं मिला तो यहां काम करने वाले श्रमिकों के लिए पलायन करना मजबूरी होगी जो सिडकुल के लिए गंभीर संकट खड़ा कर सकता है। 
– सीपी शर्मा, सिडकुल कांट्रेक्टर एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष

अभी तक नहीं हुआ सर्वे सिडकुल में लगातार गिरते उत्पादन को शासन ने भी गंभीरता से लेते हुए पांच से सात दिसंबर के बीच सर्वे के लिए तीन विभागों को जिम्मेदारी दी थी, लेकिन उनका सर्वे कितना हुआ इसका कुछ पता नहीं चल रहा है। इस पर अभी कोई अधिकारी बोलने को तैयार नहीं है। 

चेन्नई और महाराष्ट्र से आने वाले ट्रकों के पहिये भी जाम पंतनगर सिडकुल में रोजाना चेन्नई और महाराष्ट्र से 1500 से दो हजार ट्रक माल लेकर आते-जाते हैं, लेकिन नोटबंदी ने इनके पहियों को सिडकुल में ही जाम कर दिया है। कैश नहीं मिलने के कारण ट्रक मालिक न ही ट्रकों में डीजल डलवा पा रहे हैं और न ही चालकों का उनका वेतन दे पा रहे हैं। ट्रक मालिकों की मानें तो पंतनगर सिडकुल से एक ट्रक का चेन्नई और महाराष्ट्र तक जाने में कम से कम 10 से 12 हजार रुपए का खर्चा डीजल और टोल भाड़े का होता है।

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com