बिहार की सियासत में पिछले हफ्ते तीन खबरें सुर्खियों में रहीं। लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सहयोगी जनता दल यूनाइटेड (JDU) ने संसद में तीन तलाक बिल (Triple Taiaq Bill) का विरोध करते हुए सदन का बहिष्कार किया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी के घर अचानक पहुंचकर गुफ्तगू की। तीसरी खबर पूर्व केंद्रीय मंत्री मो. अली अशरफ फातमी से जुड़ी है, जिन्होंने 28 जुलाई को उस पार्टी को छोड़कर जदयू का दामन थाम लिया, जिसने उन्हें चार बार लोकसभा भेजा और केंद्रीय मंत्री भी बनाया।
आरजेडी के मुस्लिम-यादव वोट बैंक पर विरोधी दलों की नजर
वैसे तो तीनों खबरों का संबंध प्रत्यक्ष तौर पर जेडीयू से है, किंतु सबका असर आरजेडी पर सीधा पड़ता नजर आ रहा है। हालात बता रहे हैं कि आरजेडी के परंपरागत मुस्लिम-यादव (MY) वोट बैंक पर विरोधी दलों की नजर है।
बात फातमी की, जिन्हें लोकसभा चुनाव से पहले तक लालू का बेहद करीबी बताया जाता था। आरजेडी के
नब्बे के दशक से लालू के माय समीकरण को ढो रहे थे फातमी
कार्यक्रमों में मंच पर अगली पंक्ति में बिठाए जाने वाले फातमी नब्बे के दशक से अबतक लालू के माय समीकरण (MY Equation) को संजीदगी से ढोते आ रहे थे। लालू ने उन्हें 1989-90 में खोजा था। फातमी तब अलीगढ़ विश्वविद्यालय में छात्र संघ के महासचिव थे।
लालू ने पार्टी में दिया बड़ा ओहदा, केंद्र सरकार में मंत्री भी बने
वर्ष 1990 में लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) जब मुख्यमंत्री बने तो फातमी को पार्टी में बड़ा ओहदा दे दिया। अगले ही साल लोकसभा का टिकट थमा दिया और वे जीतकर सांसद भी बन गए। 2004 में जब केंद्र में यूपीए की सरकार बनी तो आरजेडी कोटे से उन्हें मंत्री भी बना दिया गया।
2014 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद आरजेडी से मोहभंग
हालांकि, 2014 के लोकसभा चुनाव में दरभंगा से हारने के बाद उनका आरजेडी से मोहभंग हो गया। फिर भी लालू से कनेक्शन पूरी तरह कटा नहीं। 2015 के विधानसभा चुनाव में फातमी ने लालू की पार्टी से ही अपने बेटे फराज फातमी को टिकट दिलवाया और विधायक बनवाया। फराज अभी केवटी क्षेत्र को प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
भरपाई में जुटा आरजेडी, अब सिद्दीकी की हिफाजत की कोशिश
लालू को पता है कि बिहार में मुस्लिम नेताओं की लंबी सूची सिर्फ आरजेडी और कांग्रेस के पास है। जेडीयू के पास अभी तक कोई कद्दावर मुस्लिम नेता नहीं है। इसलिए विरोधियों की कोशिशों का अंदाजा उन्हें भी है। फातमी के जाने के परिणाम से भी वे अनजान नहीं हैं। इसलिए चेहरे की सियासत के लिए सिद्दीकी की हिफाजत की कोशिश की जा रही है। साथ ही जदयू से राजद में आए विधान परिषद के पूर्व सभापति सलीम परवेज की पूछ-परख बढ़ाई जा रही है।