सरकार सब्सिडी के समूचे गणित को बदलने का मन बना चुकी है। बजट में इसकी साफ झलक दिखी है। सब्सिडी पर सरकार को चालू वित्त वर्ष के दौरान कुल 5.96 लाख करोड़ रुपये की रिकार्ड राशि खर्च करनी पड़ी है, लेकिन यह कोरोना से उपजी स्थिति की वजह से हुआ है। अगर बजटीय प्रविधानों की बात करें, तो 2020-21 में सब्सिडी के लिए 3,27,794 करोड़ रुपये की राशि आवंटित थी, जिसे अगले वित्त वर्ष के लिए 3,35,361 करोड़ रुपये किया गया है, यानी 7567 करोड़ रुपये की वृद्धि।
पेट्रोलियम सब्सिडी में बड़ी कटौती, एलपीजी की कीमत का बोझ आम जनता पर पड़ेगा
गौर से देखें तो स्पष्ट है कि अब जिसको जरूरत होगी, सरकार उसे ही सब्सिडी देगी। कभी राजनीतिक तौर पर बेहद संवेदनशील रहने वाली पेट्रोलियम सब्सिडी में एकमुश्त 27,920 करोड़ रुपये की कमी की गई है। इसमें एक संदेश यह भी है कि घरेलू रसोई गैस यानी एलपीजी पर अब ज्यादातर लोगों को सब्सिडी नहीं मिलेगी। वहीं खाद्य सब्सिडी में बढ़ोतरी इस बात का संकेत है कि खाद्य सुरक्षा को लेकर सरकार कोई जोखिम उठाना नहीं चाहती। सुधार तो जारी रहेंगे, लेकिन राजनीतिक संतुलन के साथ।
सब्सिडी में से बड़ी राशि का इस्तेमाल उज्ज्वला के नए कनेक्शन देने में होगा
वित्त मंत्री ने 2021-22 के दौरान पेट्रोलियम सब्सिडी की राशि को चालू वित्त वर्ष के बजटीय अनुमान 40,915 करोड़ रुपये की तुलना में घटाकर 12,995 करोड़ रुपये किया है। सब्सिडी सिर्फ दूरदराज के इलाकों में रहने वालों या ग्रामीण क्षेत्र की गरीब जनता को मिलेगी। बड़ी राशि एक करोड़ नए उज्ज्वला कनेक्शन पर खर्च होगी। इसका दूसरा मतलब यह भी है कि आने वाले दिनों में अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड महंगा होता है तो आम जनता को महंगे पेट्रोल व डीजल के साथ महंगी रसोई गैस भी खरीदनी पड़ेगी।
वित्त मंत्री ने कहा- अब केरोसिन सब्सिडी नहीं दी जाएगी
पिछले कुछ महीनों के दौरान एलपीजी सिलेंडर की कीमतों में कई बार इजाफा हो चुका है। इसी तरह से वित्त मंत्री ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि अब केरोसिन सब्सिडी नहीं दी जाएगी। सरकार का तर्क है कि पहले खाना बनाने के लिए केरोसिन सब्सिडी दी जाती थी, लेकिन अब हर गरीब को एलपीजी कनेक्शन दिया जा रहा है, इसलिए इसकी जरूरत नहीं है।
खाद्य सुरक्षा पर आंच नहीं
वित्त मंत्री ने खाद्य सब्सिडी के लिए 2,42,836 करोड़ का आवंटन किया है। चालू वित्त वर्ष में आवंटित राशि तो 1,15,570 करोड़ रुपये की थी, लेकिन कोरोना की वजह से सरकार ने जिस तरह से आठ महीने बहुत ही सस्ती दरों पर अनाज वितरित किए, उसकी वजह से वास्तविक खर्च 4,22,618 करोड़ रुपये होने का अनुमान है। सरकार मानकर चल रही है कि कोरोना काल में जितने लोगों को मदद पहुंचाने की जरूरत पड़ी, उसे अगले वित्त वर्ष में भी जारी रखना पड़ सकता है। अप्रैल से नवंबर, 2020 के दौरान केंद्र सरकार की मदद से 80 करोड़ लोगों को मुफ्त या बहुत ही कम कीमत पर अनाज दिया गया। खाद्य सब्सिडी में भारी वृद्धि की वजह से ही सरकार को चालू वित्त वर्ष के दौरान कुल 5.96 लाख करोड़ रुपये की सब्सिडी देनी पड़ी है, जो सब्सिडी के तौर पर अभी तक की सबसे बड़ी राशि है। उर्वरक सब्सिडी की राशि को 71,309 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 79,530 करोड़ रुपये किया गया है।