भारत की विदेश नीति में बदलाव की चर्चा के बीच सूत्रों के हवाले से खबर मिली है कि पीएम नरेंद्र मोदी अगले महीने वेनेजुएला में होने जा रही गुट निरपेक्ष आंदोलन की बैठक में हिस्सा नहीं लेंगे। केंद्र सरकार के सूत्रों का कहना है कि इस बैठक में भाग लेने के लिए पीएम मोदी को कई हफ्ते पहले निमंत्रण मिल गया था, लेकिन मोदी की ओर से इसका कोई जवाब नहीं दिया गया है।
इससे पहले चरण सिंह भी नही हुए थे बैठक में शामिल
गुट निरपेक्ष आंदोलन में भारत की अहम भूमिका होने की वजह से अब गुरुवार को मेजबान देश वेनेजुएला की विदेश मंत्री डेल्सी रोड्रिगेज भारत आकर मोदी को फिर से बैठक में शामिल होने का न्योता देंगी। उनके साथ वेनेजुएला के तेल मंत्री भी होंगे।
अगर मोदी इस बैठक में शामिल नहीं होते हैं तो यह दूसरा मौका होगा कि भारत का पीएम इस बैठक में हिस्सा नहीं लेगा। इससे पहले 1979 में (कार्यवाहक पीएम) चरण सिंह ने हवाना में हुई गुट निरपेक्ष आंदोलन की बैठक में हिस्सा नहीं लिया था। 55 साल के इस आंदोलन में भारत की अहम भागीदारी रही है। इसकी शुरुआत में भी भारत के पहले पीएम जवाहरलाल नेहरू का बड़ा योगदान था।
गुट निरपेक्ष आंदोलन की शुरुआत 1961 में बेलग्रेड में हुई थी। इसका मकसद दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत संघ के बीच दो ध्रुवों में बंटी दुनिया में से किसी का पक्ष लेने की बजाए अविकसित और विकासशील देशों को एक झंडे के नीचे जमा करना था। सोवियत संघ के विघटन के बाद इस समूह का भी महत्व कम हो गया।
इस बार वेनेजुएला के मार्गरीटा द्वीप पर 17-18 सितंबर को गुट निरपेक्ष आंदोलन का 17वां सम्मेलन होने जा रहा है। भारत के शामिल होने के बारे में पूछने पर भारत में मौजूद वेनेजुएला के राजदूत ऑगुस्टो मोनट्येल ने बताया भारत ने संकेत दिया है कि बैठक में उसकी ओर से उच्च स्तरीय सहभागिता रहेगी। उन्होंने कहा, ‘भारत और वेनेजुएला की बहुपक्षीय मामलों पर समान रुख रहता है। हमें उम्मीद है कि गुट निरपेक्ष आंदोलन का सम्मेलन काफी सफल रहेगा।’
मोदी के पीएम बनने के बाद पहली बार गुट निरपेक्ष आंदोलन की बैठक हो रही है। भारत सरकार इसमें विदेश मंत्री सुषमा स्वराज या उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को भेज सकती है। इससे इस सम्मेलन में मोदी की गैरहाजिरी को केवल महसूस ही नहीं किया जाएगा, बल्कि भारत की विदेश नीति पर नजर रखने वाले लोग भी इसकी समीक्षा भी करेंगे।
मोदी का इस सम्मेलन में न जाना इसलिए भी भारत की नीति में बड़ा बदलाव माना जा रहा है क्योंकि पूर्ववर्ती एनडीए सरकार में पीएम रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने इन सम्मेलनों में हिस्सा लिया था। उनके कार्यकाल में 1998 और 2003 में दो बार गुट निरपेक्ष आंदोलन की बैठक हुई थी।
मोदी के बैठक में भाग न लेने की वजह अमेरिका और उससे बढ़ती भारत की करीबी है। इस आंदोलन को अमेरिका के खिलाफ माना जाता है, इसलिए भी भारत इससे किनारा कर रहा है। बैठक के मेजबान देश वेनेजुएला के भी अमेरिका के साथ अच्छे संबंध नहीं हैं। अमेरिका इस देश को अपने लिए खतरा भी बता चुका है। पिछले पीएम मनमोहन सिंह ने 2012 में ईरान में गुट निरपेक्ष आंदोलन की बैठक में हिस्सा लिया था। तब ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर उसका अमेरिका से विवाद चरम पर था। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि मोदी नेहरू की शुरू की गई अंतरराष्ट्रीय परंपराओं को कमजोर करना चाहते हैं।