मुहर्रम : यजीदी ने की इमाम हुसैन की ह्त्या, जानिए मुहर्रम का इतिहास

मुहर्रम : मुस्लिम धर्म के प्रमुख त्यौहारों में यह त्यौहार शुमार है. ऐसा कहा जाता है कि 30 रोजों के बराबर मुहर्रम का एक रोजा होता है. अर्थात जितना फल मुहर्रम के 1 रोजे में मिलता है, उतना फल 30 रोजे रखने पर प्राप्त होता है. इस दौरान ताजिया निकालने की भी परंपरा है. लकड़ी और कपड़ों से गुंबदनुमा ताजिया का निर्माण होता है. इसमें इमाम हुसैन की कब्र रखी जाती है, जुलूस निकालते हुए इसे कर्बला में दफ़न कर दिया जाता है.

मुहर्रम का इतिहास…

मुहर्रम का इतिहास इमाम हुसैन से संबंध रखता है. आज के सीरिया को कर्बला के नाम से जाना जाता है. सन् 60 हिजरी को यजीद इस्लाम का ख़लीफ़ा बन गया था और वह पूरे अरब में खुद की धाक जमाना चाहता था. हालांकि उसके रस्ते में बड़ा रोड़ा थे इमाम हुसैन. इमाम हुसैन यजीद का यह स्वप्न पूरा नहीं होने देना चाहते थे. सन् 61 हिजरी से यजीद ने अपने अत्याचारों को बढ़ा दिया और फिर इमाम ने यहां से निकलने का मन बनाकर अपने परिवार के साथ मदीना से इराक के शहर कुफा जाना उचित समझा. लेकिन इस दौरान यजीद की सेना ने इमाम का रास्ता रोक लिया. इस समय 2 मुहर्रम का दिन था.

2 मुहर्रम के दिन इमाम को यजीद ने कर्बला के तपते रेगिस्तान पर रोक दिया. वहीं 6 मुहर्रम से हुसैन के पूरे काफिले पर पानी हेतु रोक लगा दी गई. पानी का एक मात्र जरिया इस दौरान फरात नदी थी, हालांकि फिर भी इमाम यजीद के आगे झुकने को तैयार नहीं थे. ऐसे में दोनों पक्षों के बीच युद्ध की घोषणा हुई. यजीद की 80 हजार की फौज के आगे हुसैन के 72 लोग लड़ते रहे. एक के बाद एक हुसैन अपने साथियों और परिवार के लोगों के शव को दफन करते रहे, वहीं भूख, प्यास और दर्द के आगे भी वे विजयी रहे. अपना सब कुछ लूटने के बाद भी हुसैन ने अकेले ही युद्ध लड़ा, दुश्मन उनका कुछ बिगड़ नहीं सके. लेकिन एक दिन नमाज के दौरान एक यजीदी ने इमाम को मौत के घाट उतार दिया. यह मुहर्रम का 10वां दिन था. इसी दिन से यह त्यौहार संबंध रखता है.

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