प्रकृति ने शिवपुरी को कुछ ऐसी हरियाली से नवाजा है कि भीषण गर्मी में भी आपको वहां खूब सुकून मिलता है। यही कारण है कि ग्वालियर चंबल संभाग में शिवपुरी को ‘मिनी शिमला’ का नाम दिया गया। घने जंगल, हरे-भरे पेड़, पहाड़ और नदियों की वजह से रियासत काल में ग्वालियर के सिंधिया राजवंश ने शिवपुरी को अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया।
प्रकृति और पुरातत्व का वैभव माधव राष्ट्रीय उद्यान
प्रकृति और पुरातत्व का वैभव शिवपुरी का माधव राष्ट्रीय उद्यान पर्वत श्रेणियों, सुरम्य घाटियों, झीलों, झरनों और खोह को समेटे हुए है। यह उद्यान अपने आप में अनूठा है। वन्य प्राणियों और हरियाली से आच्छादित यह उद्यान 355-276 स्क्वायर किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। यहां सन 1919 में तैयार सांख्यसागर चांदपाठा झील है, जिसमें वोटिंग का लुत्फ पर्यटक उठा सकते हैं। यहां सेलिंग क्लब और बारहदरी भी पर्यटकों का मन मोह लेता है इतना ही नहीं यहां पर्यटकों के रूकने के लिए भी सूट बनाए गए हैं जिससे पर्यटक प्राकृतिक और मनोहारी दृश्य में रहकर पर्यटन का लुत्फ उठा सकते हैं।
मां-बेटे के प्रेम की अनूठी मिसाल शिवपुरी की संगमरमरी छत्रियां
शहर में स्थित ताजमहल सी खूबसूरत सिंधिया राजवंश की संगमरमरी छत्रियां मां बेटे के प्रेम की अनूठी मिसाल हैं, जो देखते ही बनती हैं। रात को जगमग प्रकाश में ये खिल उठती हैं। स्वर्गीय माधवराव प्रथम ने अपनी मां की याद में छत्री का निर्माण कराया था और उसके बाद उनकी इच्छा थी कि जब उनकी मृत्यु हो तब उनकी छत्री भी उनकी मां की छत्री के ठीक सामने इस तरह से स्थापित की जाएं कि वह उनकी मां के दर्शन कर सकें। यहीं कारण हैं कि मां बेटे की छत्रियों को इस तरह से बनाया गया है कि एक छत्री से दूसरी छत्री को साफ देखा जा सकता है। पहली छत्री के निमरण में जहां स्थापत्य कला का अनूठा उदाहरण देखने को मिलता है, तो छत्री का निमरण सफेद पत्थरों से कराया गया है। वहीं दूसरी छत्री का निर्माण पूरी तरह से संगमरमर से कराया गया है। सुबह आरती व शाम भजन भी प्रस्तुत किए जाते हैं।
राजा नल की नगरी नरवर भी है अद्भुत
शहर से 28 किमी दूर एबी रोड सतनवाडा से होकर नरवर तक पहुंच सकते हैं। रियासत काल में नरवर जिला हुआ करता था और बाद में शिवपुरी को जिला बनाया गया। राजा नल और दमयंती की नगरी नरवर का इतिहास काफी पुराना है, राजा नल का किला पहाड़ी पर इस तरह से बनाया गया था कि यहां पर कोई आक्रमण करें तो उसे परेशानियों का सामना करना पड़े। राजा नल जब सारा राजपाठ जुए में हार गए थे तो और राजपाठा छोड़कर जा रहे थे तभी वहां मंदिर में देवी की प्रतिमा पसर गई और वह आज भी राजा नल के खजाने की रक्षा कर रही हैं। किले में पत्थर की विशाल सीप भी हैं जिसमें बड़ी मात्रा में चंदन को घोला जाता था। किले की तलहटी में मां लोढी का मंदिर है, मान्यता है कियहां पूजा करके प्रसाद ग्रहण करने वाली कन्याओं को शादी के बाद पूजा करने जरूर आना होता है।
सुरवाया की गढ़ी
शिवपुरी झांसी फोरलेन पर शिवपुरी से 22 किमी दूर सुरवाया की गढ़ी स्थित है। यह गढ़ी काफी प्राचीन है और उसमें मंदिर हैं और यहां एक विशाल चक्की है। ऐसी किवदंती हैं कि जब पांडव कौरवों से जुए में अपना राजपाठ हार गए थे और उन्हें अज्ञातवास दिया गया था उस दौरान वह इस इलाके में रहे थे। विशालकाय चक्की को भीम की चक्की कहा जाता है जिसे भीम चलाया करते थे। इतना ही नहीं पांडवों ने शिवपुरी में बाणगंगा और बैराड़ में कीचक की मढ़ी में अपना अज्ञातवास काटा था।
चुडैल छज्जे में स्थापित है शैल चित्र
शिवपुरी के माधव नेशनल पार्क स्थित टुण्डा भरका झरने के समीप स्थित चुडैल छाज में शैल चित्र (भित्ती चित्र) भी हैं। यह काफी पुराने हैं और यह गुफा के अंदर स्थित हैं। इन शैल चित्रों को टार्च से देखा जा सकता है और पानी से दीवार को साफ करने पर जब टार्च की रोशनी दिखाते हैं तो यह चित्र स्पष्ट रूप से उभरकर दिखने लगते हैं।
जल प्रपात भी मोहते हैं पर्यटकों का मन
झीलों और झरनों की नगरी शिवपुरी में झरनों की भरमार है। यहां भूरा खो, टुण्डा भरका, भदैया कुंड, पवा, भरका खो सहित कई अन्य जल प्रपात हैं जो बारिश के दिनों में अपने शबाव पर होते हैं और यहां दूर दराज से सैलानी बारिश के दिनों में इन प्राकृतिक झरनों को देखने आते हैं और कल कल बहते यह झरने पर्यटकों को बरबस ही मन मोह लेते हैं।
कैसे पहुंचे
श्योपुर राजस्थान की सीमा पर है। जयपुर और ग्वालियर से करीब 220 किमी है। यहां पहुंचने के लिए सड़क मार्ग ही सबसे उचित है। अगर समय की परवाह किए बिना यात्रा का आनंद लेना है तो ग्वालियर से नैरोगेज में बैठकर श्योपुर आ सकते हैं।
शिवपुरी पहुंचने के लिए सड़क के साथ रेलमार्ग भी है, जहां ग्वालियर, भोपाल, इंदौर से सीधी ट्रेनें आती हैं। आगरा-मुंबई-देवास हाइवे से जुड़ा है। ग्वालियर से शिवपुरी की दूरी 110 किमी है।