ज्यादा तापमान और धूप में वायरस का असर खत्म होने के अनुमान गलत साबित होने के बाद अब मानसून में संक्रमण ज्यादा फैलने की आशंका जताई जा रही है।
अभी तक चिकित्सकीय अध्ययनों में यह स्पष्ट नहीं है कि कोरोना बारिश या ठंड में ज्यादा फैलता है, लेकिन केंद्र सरकार ने मानसून को देखते हुए प्रभावित राज्यों को सतर्कता की सलाह दी है।
डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया जैसे मच्छरजनित रोगाें के लक्षण भी कोरोना की तरह बुखार, सर्दी, गले में दर्द, उल्टी ही हैं। राज्यों से कहा गया है कि वे मच्छरजनित रोग और संक्रमण को लेकर भ्रम में न पड़ें। निगरानी जारी रखकर बारिश में रणनीति बनाकर जमीनी स्तर पर ध्यान दें।
ये जिले दिल्ली, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, गुजरात, तेलंगाना, मध्यप्रदेश, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में हैं। नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल का कहना है कि मानसून में उमस की वजह से नाक और मुंह से निकलने वाले ड्रॉपलेट्स का आकार बढ़ जाता है।
आम दिनों में विषाणु किसी सतह पर छह से आठ घंटे तक आैर उमस या नमी में 12 घंटे तक जीवित रह सकते हैं। कोरोना के फैलाव की मुख्य वजह यही ड्रॉपलेट्स हैं।
दरअसल 35 से 40 डिग्री से. तापमान में कोरोना खत्म होने की उम्मीदें निर्मूल साबित हुईं। आईसीएमआर की एनआईवी पुणे लैब में ही वैज्ञानिकों ने कोरोना के अलग-अलग देशों से आए 17 रूपाें की पहचान की हैं। इसलिए कौन सा स्ट्रेन गर्मी में खत्म होगा और कौन सा मानसून या ठंड में, विज्ञान अब तक इसे साबित नहीं कर पाया है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी ने बताया कि देश अनलॉक के दूसरे चरण की ओर बढ़ रहा है। एक जुलाई से नए केंद्रीय दिशा-निर्देश लागू होंगे, लेकिन मानसून के कारण अनलॉक में बड़ा बदलाव नहीं होगा। स्कूल, कॉलेज व सिनेमा घर को बंद रखे जा सकते हैं।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने देश में डॉक्टर, बुनियादी ढाचे, मरीजों के दस्तावेज और उनकी यूनिक आईडी इत्यादि को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर जोड़ने के निर्देश दिए हैं।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण निगरानी कर रहा है। सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ प्रोफेसर अनंत भानका के मुताबिक, स्वास्थ्य दस्तावेज डिजिटल होने से योजनाएं बनाने में मदद मिल सकती है। भौगोलिक स्थिति और वहां की स्वास्थ्य सेवाएं व मरीजों के अनुरूप सरकारें नई-नई योजनाओं पर काम कर सकती हैं।