रुद्रप्रयाग में स्थित ‘त्रियुगी नारायण’ एक पवित्र जगह है, माना जाता है कि सतयुग में जब भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया था तब यह ‘हिमवत’ की राजधानी था. इस जगह पर आज भी हर साल देश भर से लोग संतान प्राप्ति के लिए इकट्ठा होते हैं और हर साल सितंबर महीने में बावन द्वादशी के दिन यहां पर मेले का आयोजन किया जाता है.
आज भी प्रज्वलित है विवाह मंडप की अग्नि
मान्यता है कि भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए त्रियुगीनारायण मंदिर से आगे गौरी कुंड कहे जाने वाले स्थान माता पार्वती ने तपस्या की थी जिसके बाद भगवान शिव ने इसी मंदिर में मां से विवाह किया था. कहते हैं कि उस हवन कुंड में आज भी वही अग्नि जल रही है.
हिंदू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार पर्वतराज हिमावत या हिमावन की पुत्री थी. पार्वती के रूप में सती का पुनर्जन्म हुआ था. पार्वती ने त्रियुगीनारायण से पांच किलोमीटर दूर गौरीकुंड कठिन ध्यान और साधना से उन्होंने शिव का मन जीता. जो श्रद्धालु त्रियुगीनारायण जाते हैं वे गौरीकुंड के दर्शन भी करते हैं. पौराणिक ग्रंथ बताते हैं कि शिव ने पार्वती के समक्ष केदारनाथ के मार्ग में पड़ने वाले गुप्तकाशी में विवाह प्रस्ताव रखा था. इसके बाद उन दोनों का विवाह त्रियुगीनारायण गांव में मंदाकिनी सोन और गंगा के मिलन स्थल पर संपन्न हुआ.
ऐसा भी कहा जाता है कि त्रियुगीनारायण हिमावत की राजधानी थी. यहां शिव पार्वती के विवाह में विष्णु ने पार्वती के भाई के रूप में सभी रीतियों का पालन किया था जबकि ब्रह्मा इस विवाह में पुरोहित बने थे. उस समय सभी संत-मुनियों ने इस समारोह में भाग लिया था. विवाह स्थल के नियत स्थान को ब्रहम शिला कहा जाता है जो कि मंदिर के ठीक सामने स्थित है. इस मंदिर के महात्म्य का वर्णन स्थल पुराण में भी मिलता है.
जो भी श्रद्धालु इस पवित्र स्थान की यात्रा करते हैं वे यहां प्रज्वलित अखंड ज्योति की भभूत अपने साथ ले जाते हैं ताकि उनका वैवाहिक जीवन शिव और पार्वती के आशीष से हमेशा मंगलमय बना रहे.